मिथिला से आए हजारों की संख्या में ये कांवड़िया बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाते हैं । ये लोग महादेव को मिथिला का दामाद मानते हैं। विदित हो कि मिथिला के विभिन्न जिलों दरभंगा, मधुबनी ,सीतामढ़ी, समस्तीपुर ,बेगूसराय ,मोतिहारी ,मुजफ्फरपुर, नेपाल के जनकपुर, सप्तरी ,धनुषा आदि जगहों से पैदल चल कर सुल्तानगंज में गंगाजल भरकर मनोकामना लिंग बाबा बैद्यनाथ पर जलाभिषेक करते हैं । बताया जाता है कि मधुबनी जिले के बेनीपट्टी अनुमंडल स्थित जरैल गांव के लोग सर्वप्रथम बाबा वैद्यनाथ के लिए कांवर लेकर देवघर आए थे। तब से ही प्रत्येक वर्ष मिथिला के कांवरिया बाबा को तिलक चढ़ाने के लिए कांवर लेकर देवघर आते हैं। ये कांवरिया अपने साथ में धान का शीश ,अबीर, भांग,घी आदि पूजन सामग्री अपने साथ लेकर आते हैं।
पिछले त तैंतीस वर्षों से दरभंगा से कांवर लेकर आने वाले मैथिली के सुप्रसिद्ध साहित्यकार तथा चकौती कैंप खजांची बम मणिकांत झा ने बताया कि माघ महीने में अत्यधिक ठंडा रहने के बावजूद लोग पूरे नियम निष्ठा से कांवर लेकर देवघर आते हैं। उन्होंनेे बताया कि मिथिला को यह सौभाग्य प्राप्त है कि देवाधिदेव महादेव और भगवान श्रीराम यहां के दामाद हुए हैं । आज भी यहाँ के लोग गौरी को दाइ और सिया को धिया ही कहते हैं ।श्री झा ने बताया कि इस महीने कांवरिया बाबा के लिए अलग अलग दो डब्बों में गंगाजल भरकर लाते हैं जिसे सलामी और खजाना के नाम से जाना जाता है । सलामी देवघर पहुंचते ही बाबा को अर्पण करते हैं जबकि खजाना वसन्त पंचमी के दिन अर्पित किया जाता है।
ये कांवरिया अपने अपने गाँव से बीस से पचीस दिन पूर्व ही कांवर लेकर निकलते हैं। ये लोग दिन में दही चूड़ा खाते हैं तथा रात में भात दाल शब्जी आदि स्वयं बनाकर भोजन करते हैं। कड़ाके की ठंड में भी कपड़ा उतार कर भोजन बनाते हैं और खाते भी हैं। माघ मास में आने वाले कांवरिया न तो कुर्सी पर बैठते हैं न ही चौकी पर सोते हैं । इनका जमीन पर ही बैठना और जमीन पर ही सोना होता है । सभी कैंप में एक जमादार बम जिनका काम नेतृत्व करना है, एक खजांची बम जो सम्पूर्ण व्यवस्था को देखते हैं और सिपाही बम का कार्य सुरक्षा का होता है । सम्पूर्ण कामरिया का नेतृत्