मिथिला हिन्दी न्यूज :- एक पत्रकार आजीवन समय और समाज का सच लिखता है कुछ बेहतर लिखता है तो पहचान बन जाती है लोग वाहवाही देते हैं लेकिन वही कलम का सिपाही जब इस दुनिया से विदा होता है तो लोग दो लाइन की संवेदनाएं लिख कर उसकी यादों को भुला जाते हैं आइए हम आपको बता रहे हैं कि बिहार के पत्रकारिता से आज हमेशा के लिए अलविदा कह गए कलम के सशक्त सिपाही विनायक विजेता जी क्यों खास थे।आज कुछ बेहद जरूरी काम से पटना सचिवालय गया हुआ था इसी बीच एक पत्रकार मित्र ने फोन कर जानकारी दी कि विनायक विजेता जी नहीं रहे दिमाग सन्न रह गया करोना काल के दौरान उनकी स्थिति काफी खराब हो गई थी पीएमसीएच में उन्हें एडमिट किया गया था यह खबर फेसबुक के माध्यम से पता चली उनके बेहद करीबी मित्र चर्चित कार्टूनिस्ट पवन भाई से उनकी पुत्री का नंबर लेकर मैंने फोन किया था और कहा था कि अगर कुछ संभव हो पाएगा पीएमसीएच में हम लोग भी मदद के लिए तत्पर रहेंगे विनायक जी सात आठ महीनों से जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे अंतिम दम तक लिखना नहीं छोड़ा बिहार की पत्रकारिता में क्राइम रिपोर्टिंग में इनका कोई जोड़ीदार नहीं रहा यह क्राइम की केमिस्ट्री जानते थे कई बड़े अखबारों में काम की पर अपने शर्त पर उन्हें किसी की अधीनता स्वीकार नहीं थी और स्व के स्वाभिमान को चोट लगा नौकरी को लात मारी दिल्ली से लेकर पटना तक सैकड़ों पत्रकारों की फौज खड़ी कर दी उनके आज बिहार की पत्रकारिता में उनके कई शिष्य बड़ा नाम है मेरा उनसे परिचय वर्ष 2003 के करीब पटना से सप्ताहिक अखबार रिपोर्टर निकाल रहे थे उन दिनों में आज अखबार में था और रिपोर्टर सप्ताहिक के लिए स्वतंत्र रूप से लिखता था जान पहचान हुई तो घनिष्ठता बढ़ने लगी बाद के दिनों में पटना में एक सैटलाइट चैनल की शुरुआत उनके नेतृत्व में हुई संभवत 2004 की बात रही होगी उन दिनों मै दूरदर्शन के लिए आईना नाम से एक साप्ताहिक कार्यक्रम बना रहा था।वे अनिसाबाद पुलिस कॉलोनी इलाके में रहते थे उनकी अपनी विशिष्ट पहचान थी।जब भी सवाल पूछते थे जवाब देने वाले चेहरे पर शिकन आ जाती थी।बिहार के बाहुबलियों के बीच जबरदस्त पैठ थी। 90 के दशक में बिहार के नरसंहारों के ऊपर उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट देशभर के पत्र पत्रिकाओं में लिखा था आईपीएफ रणवीर सेना व अन्य जातीय सेनाओं के बारे में उनके पास पूरी फाइल थी।हिंदुस्तान में अपराध संवाददाता के रूप में पटना में आ गए तब और ज्यादा सक्रिय हो गए बाद के दिनों में कई सारे पत्र-पत्रिकाओं न्यूज़ पोर्टल अखबारों के लिए लिखते रहें जब कोई जानकारी चाहिए थी उनके पास सबसे सटीक सबसे पहले जानकारी होती थी विनायक विजेता जी का असमय चला जाना बिहार की पत्रकारिता में ऐसा रिक्त स्थान छोड़ गया जो कभी पूरा नहीं किया जा सकता।