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महुआ फूल चुनने तथा किमती पेड़ों की कटाई के लिए जंगलों में लगाई जा रही आग

दिनेश कुमार पिंकू/ आलोक वर्मा 
रजौली(नवादा): गर्मी का मौसम आते ही महुआ के फूल को प्राप्त करने के लिए वनक्षेत्र रजौली के जंगलों में आग लगा दी जा रही है।धमनी, हरदिया, चितरकोली, सवैयाटांड़ पंचायत समेत कई गांव के लोगों का कहना है पतझड़ के बाद जंगल में काफी सूखे पत्ते पड़े रहते हैं इससे महुआ के फूल को चुनने में परेशानी होती है। 

रजौली प्रखंड में गर्मी में महुआ के मौसम शुरू होते हीं महुआ चुनने के क्रम में जंगलों में आग लगा दिए जाने की घटनाएं लगातार जारी हैं। गर्मी की तपिश बढ़ने के साथ पहाड़ों के जंगलों में आग की लपटें भी तेज हो रही है। जंगलों से कमोवेश हरेक क्षेत्र में सुबह शाम आग की लपटें देखी जा सकती है।दरअसल महुआ चुनने की कार्य शुरु होने के साथ ही जंगलों में आग लगा दी जाती है।लोगों की माने तो वन विभाग की लापरवाही से मिट रही है, जंगल की हरियाली सिमट रही है।रजौली वन क्षेत्र में आए दिन हरे भरे जंगलों में महुआ चुनने वाले तथा पेड़ों की कटाई कर तस्करी करने वाले माफियाओं के द्वारा आग लगा दिया जाता है।जंगल की लकड़ी काटे जाने तथा पेड़ों से गिरकर सूखे पत्ते को लेकर जंगल में आग तेजी से फैलती है।जिससे पर्यावरण पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।वन विभाग के द्वारा इस दिशा में किसी भी प्रकार की सार्थक पहल नहीं हो पा रही है।इधर अवैध पत्थर खदान की संचालित अवैध खनन की संचालित धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं और जंगल माफियाओं के द्वारा इस दिनों में आग भी लगाकर रास्ता बनाा दिया जा रहा हैै।माफिया के द्वारा पर्यावरण का जो नुकसान किया जा रहा है,जिसका पूरा परिणाम दिखने लगा है।गांव समेत मुख्यलयमें में गर्मी आते ही पानी की गंभीर समस्या उत्पन्न होने लगती है।पानी का लेवल दिन प्रतिदिन नीचे घटता जा रहा है।पहले रजौली अनुमंडल क्षेत्र में 30 फीट से 50 फीट के अंदर बोरिंग कर पानी निकाल दिया जाता था।लेकिन इन दिनों पर्यावरण पर मंडराते खतरे के कारण 125 फीट से 200 फीट तक बोरिंग करवाना पड़ रहा है।पेड़ पौधे के नुकसान पहुंचाने का असर गांव और शहर में आना शुरू हो गया है।जंगलों में अवैध रूप से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है।लोगों को जंगल और पेड़ का महत्व को समझाते हुए इसे बचाने का प्रयास अगर नहीं किया गया तो आने वाले समय में पानी का घोर समस्या उत्पन्न हो जाएगी।सच्चाई है कि जंगलों में आग लगने से पेड़-पौधे तो नष्ट होते ही हैं इसके साथ-साथ वन्य जीवों पर भी असर पड़ता है।लेकिन वन विभाग आज भी कोई ठोस योजना इसपर नहीं बना पा रही है।इधर जल जीवन हरियाली कार्यक्रम का असर कुछ भी धरातल पर नहीं दिखाई दे रहा है।कई पंचायतों में जल जीवन हरियाली मनरेगा के द्वारा बरसातों में पेड़ तो लगा दिया जाता है।लेकिन उसका देखरेख नहीं करने के कारण पेड़ खत्म हो जाते हैं।ऐसे भी जल जीवन हरियाली के तहत पौधे पर देखरेख नहीं किया गया तो जल स्तर तेजी से गिरावट आ सकती है।जलछाजन से जंगली क्षेत्रों में ऐसे जगहों पर काम कराया जाता है।जहां बंदरबांट कर राशि को गवन कर दिया जाता है।60% कमीशन 40% किसान मजदूर के नाम पर ठेकेदार के द्वारा गड्ढे नालों को घेरकर तालाब दिखाया जाता है।ऐसे में हरदिया पंचायत, सवैयाटांड़ पंचायत में सैकड़ों ऐसा जगह है।जहां बीते 5 वर्ष में नये तालाब बनाया नहीं गया है।लेकिन नये तालाब के नाम पर पुराने तालाब में काम करवा कर राशि को हजम किया जा रहा है।जंगल में लगी आग को लेकर डीएफओ अवधेश कुमार ओझा से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि अगलगी की घटना करने वाले लोगों के ऊपर विधि सम्मत कार्रवाई एवं प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है।लेकिन उन्होंने ने दो महीने इस तरह की घटना किये जाने के ऊपर कितने लोगों पर कार्रवाई हुई पूछे जाने पर उन्होंने कहां की अभी तक किसी भी क्षेत्रीय पदाधिकारी के द्वारा जानकारी नहीं दी गई है।साथ ही आग बुझाने या फिर उसकी रोकथाम की जानकारी पर गोल मटोल सा जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया। 

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