शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का एक महान पर्व है, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। ऐसे में इस साल महाशिवरात्रि का पावन पर्व 11 मार्च, गुरुवार 2021 के दिन है। सहर के जाने माने पंडित पंकज झा शास्त्री के अनुसार इस दिन सुबह 09 बजकर 22 मिनट तक महान कल्याणकारी ‘शिवयोग’ भी विद्यामान रहेगा। इसके बाद ‘सिद्धयोग’ आरम्भ हो जाएगा।
ज्योतिष में ‘सिद्धयोग’ को काफी शुभ माना जाता है और इस योग के दौरान किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। इन योगों के दौरान शिव भगवान की पूजा करने से फल की प्राप्ति जरूर होती है और मन चाहे चीज भी मिल सकती है। इन योगों के दौरान रुद्राभिषेक, शिव नाम कीर्तन, शिवपुराण का पाठ व शिव जी के मंत्रों का जाप करने से उत्तम फल मिलता है। इतना ही नहीं इस दौरान दान पुण्य करना व ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करना अतिशुभ माना गया है। श्री पंकज झा शास्त्री ने बताया
शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है और शिव का अर्थ है– कल्याणकारी और-लिंग का अर्थ है सृजन, सर्जनहार के रूप में-लिंग की पूजा होती है. संस्कृत में—लिंग का अर्थ है प्रतीक। भगवान शिव अनंत काल के प्रतीक हैं मान्यताओं के अनुसार, लिंग-एक विशाल लौकिक अंडाशय है, जिसका अर्थ है ब्रह्माण्ड, इसे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है।
महाशिवरात्रि का दिन कुवांरी कन्याओं के लिए शुभ माना जाता है और इस दिन व्रत करने से सच्चा जीवन साथी मिलना संभव हो सकता है। कुवांरी कन्या सुबह के समय मंदिर जाकर शिवलिंग पर जल जरूर अर्पित करें व गौरी मां की पूजा करें।
मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।
शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।
नवग्रह दोष होने पर जीवन कष्टों से भर जाता है और मानसिक अशान्ति बनीं रहती है। ऐसे में जो लोग भी इस दोष से ग्रस्त हैं वो महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक जरूर करे।
इस दिन शिव की पूजा करने से विवाहित स्त्रियों का वैधव्य दोष भी नष्ट हो जाता है और पति की आयु बढ़ जाती है। सुहागिन महिलाएं इस दिन माँ पार्वती की पूजा शिव जी के साथ करें। उसके बाद मां का पूर्ण श्रृंगार करें। उसके बाद पंचामृत से भोले नाथ का स्नान करेँ।
फिर बेलपत्र पर अष्टगंध, कुमकुम, अथवा चन्दन से राम-राम लिखकर ॐ नमःशिवाय करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय’ कहते हुए शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके अलावा आप भांग, धतूर और मंदार पुष्प तथा गंगाजल भी शिवलिंग पर अर्पित कर सकते हैं।
यदि कोई विकट रोग से ग्रस्त है तो बेलपत्र पर महा मृत्युंजय विज मंत्र श्री खंड चंदन से लिख कर अर्पण करे।
जिन लोगों की कुंडली में शनि ग्रह भारी है वो लोग इस दिन शिव की पूजा करते हुए उन्हें शमीपत्र चढ़ाएं। इससे शाढ़ेसाती, मारकेश तथा अशुभ ग्रह-गोचर से हानि नहीं होती है।
शिवरात्रि के दिन मंदिर जाकर आप सबसे पहले शिवलिंग पर जल अर्पित करें या अपने श्रद्धा अनुसार और शिवलिंग के सामने एक घी का दीपक जाल दें और शिव के मंत्र का जाप करें। यह ध्यान रहे कि पूजा पाठ मे निष्ठा पूर्वक अपने मन को ईश्वर के प्रति समर्पित करना चाहिए। महाशिवरात्रि पर इस बार शिव योग और सिद्ध योग- 2 बेहद खास योग भी बन रहे हैं.
महाशिवरात्रि पर विधि विधान के साथ शिव पूजन करने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. महाशिवरात्रि पर चार पहर की पूजा का विशेष महत्व है और इसे फलदायी भी माना गया है. 4 पहर की यह पूजा, संध्या के समय प्रदोष काल से शुरू होकर अगले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त तक की जाती है. चूंकि इसे महाशिवरात्रि कहते हैं इसलिए इस दिन रात्रि में जागरण करके अलग-अलग पहर में शिवजी की पूजा का विधान है. भगवान शिव की चार पहर की यह पूजा जीवन के चार अंग- धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष को नियंत्रित करती है.
महाशिवरात्रि पर चारों पहर की पूजा का समय
प्रथम प्रहर की पूजा का समय- 11 मार्च गुरुवार को शाम में 06:27 बजे से प्रदोष काल में शुरू करके रात में 09:28 बजे तक
दूसरे पहर की पूजा का समय- 11 मार्च गुरुवार को रात में 09:28 बजे से लेकर रात को 12:30 बजे तक ।
तीसरे पहर की पूजा का समय- रात्रि 12:30 बजे से लेकर रात्रि 03:31बजे तक
चौथे पहर की पूजा का समय- रात्रि 03:32 बजे से लेकर प्रा 06:34 बजे तक
निशिता काल की पूजा का समय- रात में 12:06 बजे से लेकर 12:54 बजे तक. कुल 48 मिनट के लिए.
नोट - उपरोक्त समय सारणी में अपने अपने क्षेत्रीय पंचांग अनुसार कुछ अंतर हो सकता है।