प्रिंस कुमार
जिला शिवहर 1 मई यानि मजदूर दिवस। इस दिन पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप मनाता है। भारत में कब हुई थी इसकी शुरुआत,जानिए पूरा इतिहास आज के दिन दुनिया भर के कामगार अपने अधिकारों की आवाज बुलंद करते हैं। खुद के खिलाफ हो रहे अन्याय के विरोध में आवाज उठाते हैं। सरकार से अपने अधिकारों की मांग करते हैं। इसलिए दुनियाभर में मजदूर दिवस काफी मायने रखता है। तो आइए जानते हैं कि दुनिया भर में इसकी शुरुआत कब और कहां से हुई थी। और भारत में कब इसकी शुरुआत हुई थी।
अंतरराष्ट्रीय तौर पर लेबर डे मनाने की शुरुआत 1 मई 1979 को हुई थी। इसकी शुरुआत अमेरिका की एक घटना से हुई थी। दरअसल, 1 मई 1886 को अमेरिका के मजदूर संघों ने फैसला किया की वो 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे। इस मांग के साथ मजदूरों ने हड़ताल करनी शुरू की। हड़ताल के दौरान शिकागो के हे मार्केट में एक बम धमाका हुआ। जिसके बाद वहां की पुलिस ने मजदूरों पर गोली चलाना शुरू कर दिया। जिसमें 100 से अधिक मजदूरों की मौत हो गई। और कई घायल हुए। इस घटना से पूरी दुनिया के श्रमिकों में रोष पैदा हुआ। दुनिया के अधिकांश देशों में इस तरह की मांग होने लगी।
इस बीच फ्रांस की राजधानी पेरिस में 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मलेन की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें ऐलान किया गया कि 1 मई अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप मनाया जाएगा। साथ ही इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा। भारत समेत 80 देशों में राजकीय अवकाश होता है। हालांकि भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1923 से हुई।
1920 के दशक में भारत कई राजनीतिक घटनाओं का साक्षी बना है। एक तरफ कांग्रेस और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन हुआ। वहीं देश में पहली बार कम्युनिस्ट आंदोलन की शुरुआत हुई। उस समय के एक अखबार में छपी खबर के अनुसार 1 मई 1923 को ही कम्युनिस्ट नेता सिंगारवेलु चेट्टियार के नेतृत्व में पहली बार चेन्नई में लाल झंडा फहराया गया। यह भारत के इतिहास में पहली बार था कि लाल झंडा फहराया गया था। और उसी दिन किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान के नेता और कॉमरेड सिंगारवेलु चेट्टियार के नेतृत्व में मद्रास में पहली बार मजदूर दिवस मनाया गया।
चेट्टियार के नेतृत्व में मद्रास हाई कोर्ट के सामने बड़ा प्रदर्शन किया गया और इस दिन पूरे भारत में मजदूर दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया गया। साथ ही छुट्टी का ऐलान किया गया। इसके बाद भारत में मजदूर दिवस की अपनी अलग एक जगह बन गई, क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टियों ने मजदूरों के कंधों पर अपनी सियासत को आगे बढ़ाया और मजदूरों के नाम पर देश के कई राज्यों में सत्ता में भी रही। हालांकि ऐसा नहीं है कि आज मजदूर दिवस अप्रासंगिक हो गया है। बल्कि आज मजदूरों के अधिकारों को लेकर आवाज दोगुनी ताकत से उठाए जाने की जरूरत है।