मिथिला हिन्दी न्यूज :- “ये कोहबर का द्वार है पहुना, इसे ऐसे नहीं लांघने पाओगे ! यहाँ दुआर पढ़ना पड़ता है |” ये संवाद ‘कोहबर की शर्त’ नाम के उपन्यास से है | आपने शायद इस किताब का नाम नहीं सुना होगा | काफी पहले यानि सन 1965 के ज़माने में प्रकाशित ये किताब कभी ज्यादा प्रसिद्ध नहीं रही | आम तौर पर साहित्य के महारथी कहलाने वाले भी इसका नाम मुश्किल से ही बता पायेंगे |
कहा जाता है कि हरिवंश राय बच्चन ने ये कहानी पढ़ ली थी और उन्होंने ही केशव प्रसाद मिश्र को इस कहानी को उपन्यास का रूप देने के लिए प्रेरित किया | थोड़े दिन में जब ये किताब की शक्ल में छपी भी तो बहुत ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिली | एक ख़ास विचारधारा की कमी होने के कारण इसे साहित्यिक प्रशंसा नहीं मिली | आलोचकों ने भी आँखें मूँद ली |
लेकिन कई बार फ़िल्मकार अच्छी कहानी की तलाश में होते हैं | पता नहीं कैसे राजश्री प्रोडक्शन की निगाह में ये किताब आ गई | उन्होंने केशव प्रसाद मिश्र से इस किताब पर फिल्म बनाने के सारे अधिकार खरीद लिए | इस तरह इस किताब पर करीब बीस साल बाद सन 1982 में पहली फिल्म आई | इस भोजपुरी, ग्रामीण परिवेश पर बनी सुपरहिट फिल्म का नाम आपने सुना होगा | सचिन-साधना सिंह अभिनीत “नदिया के पार” कई लोगों ने देखी भी होगी |
आपको पता होगा की इस एक कहानी पर एक बार नहीं कई बार फिल्म बनी है | ऊपर से हर बार इस कहानी पर बनी फिल्म सुपरहिट भी रही है | तेलगु में इसे ‘प्रेमलयम’ नाम से डब किया गया था | बाद में सन 1994 में इसे थोड़ा नया रूप देकर “हम आपके हैं कौन” नाम से भी पेश किया गया | एक समय में हम मानते थे कि राजश्री प्रोडक्शन के पास बस यही एक कहानी है | बाद में “विवाह” फिल्म देखने के बाद कभी पता चला कि इन्होने और भी दूसरी किस्म की फ़िल्में बनाई हैं |
खैर केशव प्रसाद पूर्वी उत्तर प्रदेश वाले बलिया के थे | बलिया बिहार में भी होता है, लेकिन मूलतः ये कहानी बलिहार और चौबे छपरा नाम के दो गावों के बीच लिखी हुई है | “नदिया के पार” में जो गाने हैं वो भी इस किताब में लोकगीतों की शक्ल में मिल जाते हैं | चूँकि ज्यादा लोगों ने इसे पढ़ा नहीं होगा, या नाम नहीं सुना इसलिए कुछ साल से इसके आउट ऑफ़ प्रिंट होने का भी किसी को पता नहीं होगा |
फ़िलहाल ये फिर से प्रकाशित हुई है | अगर देशज गंध वाली किताबों का शौक हो तो कभी ये पतली सी किताब जरूर उठा कर देखिये |