श्री. रमेश शिंदे
कोरोना महामारी ही नहीं अपितु अन्य प्राकृतिक तथा मानव निर्मित आपत्तियों के पीछे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अधर्माचरण (धर्मग्लानी) मूल कारण है । पृथ्वी पर रज-तम का प्रमाण बढने पर आध्यात्मिक प्रदूषण बढता है । उसका परिणाम संपूर्ण समाज को भोगना पडता है । ऐसे में गेंहू के साथ घुन भी पीसता है । ‘न मे भक्त: प्रणश्यति ।’ अर्थात ‘मेरे भक्त का कभी भी नाश नहीं होता’, ऐसा भगवान ने गीता में बताया है; इसलिए हमें साधना कर ईश्वर का भक्त बनना चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति यदि साधना एवं धर्माचरण करें, तो ही हम वैश्विक संकटों का सामना कर पाएंगे, ऐसा प्रतिपादन सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने किया ।
हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘कोरोना वैश्विक महामारी : मन को स्थिर कैसे करें ?’ इस ऑनलाइन विशेष संवाद में वे बोल रहें थे । यह कार्यक्रम ‘फेसबुक’ और ‘यू-ट्यूब’ के माध्यम से 12,956 लोगों ने देखा ।
सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने आगे कहा, ‘‘वर्तमान कोरोना काल में रोगियों की संख्या तेजी से बढ रही है । चिकित्सालय में खटिया, इंजेक्शन और ऑक्सिजन नहीं मिलती । सभी ओर भयानक स्थिति है । इस संदर्भ में समाचारवाहिनी पर निरंतर दिखाए जा रहें समाचारों से समाज में भय का वातावरण निर्माण हुआ है । अधिकांश लोगो में तनाव है । ऐसे में यदि हमने साधना कि तो हमारे आत्मबल में वृद्धि होकर हम स्थिर रह सकते हैं । इसलिए आज ही सभी ने साधना करना आरंभ करना चाहिए ।’’
हरियाणा के वैद्य भूपेश शर्मा ने कहा कि, हजारो वर्ष पूर्व महर्षि चरक ने आयुर्वेद में लिखा है कि अपेक्षा के कारण दु:ख होता है और दु:ख के कारण रोग होता है । विदेशों में चर्मरोग से संबंधित शोध में ऐसा ध्यान में आया कि मानसिक कष्ट के कारण रोग ठीक होने में अधिक कालवधि लगती है । इसलिए प्रत्येक रोग पर शारीरिक उपचार सहित मानसिक और आध्यात्मिक उपचार करना चाहिए । इस हेतु पश्चिमी जीवनपद्धति छोडकर भारतीय जीवनपद्धतिनुसार आचरण आवश्यक है । प्रतिदिन योगासन, प्राणायाम, व्यायाम सहित योग्य आहार, निद्रा, विहार करने पर हमें उसका शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर उत्तम लाभ होगा ।
संवाद को संबोधित करते हुए हिन्दू जनजागृति समिति के मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्य समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने कहा कि, जापान में कोरोना काल में आत्महत्याआें की संख्या बढी है । भारत में भी वैसी ही स्थिति है । निरंतर बढता तनाव उसका मूल कारण है । इसलिए शारीरिक उपचार करते हुए मनोबल बढाना चाहिए । इस हेतु अनेक वर्ष तक शोध कार्य कर सनातन संस्था के संस्थापक तथा अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सम्मोहन उपचार विशेषज्ञ परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी ने अभिनव उपचारपद्धति खोजी है । मन को सकारात्मक ऊर्जा देनेवाली स्वसूचना उपचारपद्धति के कारण हजारो लोग तनावमुक्त हुए हैं । प्रत्येक परिवार ने स्वयं के दिनक्रम में स्वसूचना अंर्तभूत करने पर संपूर्ण समाज को उसका लाभ हो सकता है ।