अनूप नारायण सिंह
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी व बिहार सरकार गह विभाग में विशेष सचिव विकास वैभव इन दिनों अवकाश के पल में हिमालय यात्रा पर हैं इस दौरान उनके लेख का सोशल मीडिया पर लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है आज अपने दूसरे आलेख में उन्होंने हिमालय दर्शन को नए ढंग से परिभाषित किया है आप भी पढ़िए क्या कुछ लिखा है विकास वैभव ने हिमालय से साक्षात्कार के क्रम में जब यात्री मन प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य समाहित शीतलता में समाता चला जाता है तब ऐसे भावों की जागृति अवश्य होती है कि काश कुछ पलों के लिए समय रूक ही जाता ! आज प्रातः पैन्गोंग सरोवर पहुँचकर जब परिदृश्य में लीन होने लगा तब मन में कुछ ऐसे ही भाव उमड़ रहे थे और तब इच्छा हुई कि वहीं सरोवर के किनारे बस रूका ही रहूँ ! कुछ समय के लिए जब रूका रहा तब आनंद की अलौकिक अनुभूति होने लगी और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो समय वास्तव में स्थिर हो गया हो ! परंतु कुछ समय पश्चात ही चिंतनरत मन से मानो झकझोरा और यह कहा कि उपर आकाश की ओर भ्रमणशील बादलों को देखकर गतिशीलता को अनुभव करो और जान लो कि समय का ठहराव तो असंभव है ! समय को तो गतिमान ही रहना है ! यही तो समय का धर्म है चूंकि परिवर्तन ही ऋत है ! शेष जो प्रतीत हो रहा, वह भी निमित्त ही है और जिस जीवन रूपी यात्रा का लक्ष्य सत्य से वास्तविक साक्षात्कार है, उसके हर यात्री का धर्म गतिमान यात्रा के क्रम में सकारात्मकता के साथ सर्वाधिक योगदान समर्पित करते रहना मात्र ही है !
मन कहने लगा कि भले अल्पावधि हेतु विश्राम कर लो परंतु यह जान लो कि रूकना नहीं है और यथासंभव हर यत्न के साथ लक्ष्यों की प्राप्ति तक दृढ़ निश्चय तथा भविष्यात्मक दृष्टिकोण के साथ सुदृढ़ रूप में गतिमान बने ही रहना है ! यदि कभी अल्पावधि विश्राम के लिए कुछ पल रूके भी, तो भी वहाँ मन में ध्येय अत्यंत स्पष्ट होना चाहिए कि यह अवसर दीर्घ चिंतन हेतु ही निर्धारित है जिसमें पूर्व की अनुभूतियों पर मंथन करतें हुए भविष्य में प्रस्तुत होने वाली संभावित चुनौतियों हेतु आंतरिक संकल्प को और सुदृढ़ करना है ! ध्येय मन में लिए बढ़ते जाना है !