पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन सावन मास में हुआ था। इस मंथन से विष निकला तो चारों तरफ हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने विष को कंठ में धारण कर लिया। विष की वजह से कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया, जिससे उन्हें राहत मिली। इससे वे प्रसन्न हुए। तभी से हर वर्ष सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करने की परंपरा बन गई।
इस बार दिन रविवार 25 जुलाई से श्रावण मास आरम्भ हो रहा है। चंद्र प्रधान इस मास में शिवजी की पूजा को महत्त्वपूर्ण और प्रभावकारी माना जाता है। जल तत्त्व प्रधान चंद्रमा एक ओर वातावरण में नमी लेकर आता है, तो दूसरी ओर मनुष्यों को भी प्रभावित करता है। इसीलिए तिरछे चंद्र को मस्तक पर धारण करके उसकी शोभा बढ़ाने वाले भगवान अशुतोष की पूजा इस मास में अति महत्त्वपूर्ण है। इस बार श्रावण मास में चार सोमवार पर रहे है हालांकि संक्रांति अनुसार श्रावण श्रावण मास मानने वाले शिव भक्तों को श्रावण में पांच सोम बार इस बार मील रहा है जिसमे प्रथम सोमवार 19 जूलाई को मिला।
कई बार देखा जाता है कि लोग प्रधान देवी देवता तक ही पूजा अर्चना करके सीमित रह जाते है जबकि सनातन धर्म अनुसार किसी भी पूजा में प्रथम श्री गणेश की पूजा होती है अतः शिव पूजा अर्चना में भी पहले गणेश की ही पूजा अर्चना करना चहिए, इतना ही नही शिव संग पार्वती की पूजा अर्चना करना भी महत्वपूर्ण है करण शक्ति के बिना शिव सदैव अधूरा है।
शहर के जाने माने ज्योतिष जानकार पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया इस बार सूर्य 16 जुलाई को सायंकाल कर्क राशि में प्रवेश कर चुके हैं। श्रावण मास की कर्क संक्रान्ति की महत्ता प्रतिपादित करते हुए शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में लिखा है कि श्रावण मास में कर्क राशि में सूर्य के होने पर भगवान शिव के साथ अम्बिका का पूजन करें। वे सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों और फलों को देने वाली हैं। सम्पन्नता, स्वास्थ्य और प्रगति की इच्छा रखने वाले सभी लोगों को उस दिन मां अम्बिका की पूजा अवश्य करनी चाहिए। पंडित पंकज झा शास्त्री के अनुसार
यह श्रावण मास रविवार से ही प्रारम्भ हो रहा है और रविवार को ही समाप्त हो रहा है। ऐसा योग कम ही पड़ता है। वे जातक जिनकी कुंडली में चंद्र नीच का है या पाप ग्रहों से युक्त है, इस योग में उन्हें भी लाभ होता है। इस बार श्रावण में दो बार श्रवण नक्षत्र पड़ रहा है तथा चार सोमवार पड़ रहे हैं। इन चारों सोमवार में यदि प्रत्यक्ष विधान के अनुसार पूजा की जाए, तो रोगों और पारिवारिक क्लेश का नाश होता है। इस श्रावण में सोमवार को इस प्रकार पूजा करें, लाभ होगा।
प्रथम सोमवार : 26 जुलाई, धनिष्ठा नक्षत्र। शक्कर युक्त दूध से प्रात:काल शिव जी का अभिषेक करें। सायंकाल शिव-पार्वती का पूजन करें।
द्वितीय सोमवार : 2 अगस्त, कृत्तिका नक्षत्र। अनार के रस से शिव जी का अभिषेक करें।
तृतीय सोमवार : 9 अगस्त, आश्लेषा नक्षत्र। शिवजी का दूध से अभिषेक कर चंदन का लेप करे ंऔर शेष चंदन को माथे पर लगाएं।
चतुर्थ सोमवार : 16 अगस्त , अनुराधा नक्षत्र। दूध में शहद मिला कर पीपल के पत्ते का चम्मच बना कर उससे शहद मिश्रित दूध का अभिषेक करें।
शिव सत्य हैं, समर्पण हैं, त्याग हैं और परिभाषित होने से परे हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि ‘आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं’ अर्थात जिस तरह सत्य और शक्ति एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं, जिस तरह आत्मा और मन के बगैर शरीर जागृत नहीं हो सकता, उसी तरह शिव और पार्वती की एक दूसरे के बगैर कल्पना नहीं की जा सकती। श्रावण मास एक ऐसा अवसर है, जब मनुष्य अपने में अंतर्निहित सत्य स्वरूप शिव और ऊर्जा के रूप में विद्यमान शक्ति को एकाकार कर सकता है। श्रवण नक्षत्र से नाम प्राप्त श्रावण मास में शिव पूजा करने से समस्त रोगों, विकारों एवं क्लेशों का नाश होता है।
नोट - ज्योतिष, हस्तलिखित जन्म कुंडली, वास्तु, पूजा पाठ, रुद्राअभिषेक, महा मृत्युंजय जाप एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए संपर्क कर सकते हैं।