राजनीती में जाने के लिए कुंडली में राजनीतिक सफलता का योग होना अनिवार्य है। इसके लिए कुंडली में ग्रहों की अनुकूलता और योग को देखा जाता है। वैदिक ज्योतिष की दृष्टि से दशम भाव को राज्य सत्ता का स्थान कहा जाता है और इसी स्थान से राजयोग की विशिष्ट जानकारी भी ज्ञात की जा सकती है।
‘राजनीति’ दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है, एक ऐसा शासक जिसकी नीतियां व राजनैतिक गतिविधियां इतनी परिपक्व व सुदृढ़ हों, जिसके आधार पर वह अपनी जनता का प्रिय शासक बन सके और अपने कार्यक्षेत्र में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करता हुआ उन्नति की चरम सीमा पर पर पहुंचे। राजनीति का मुख्य कारक ग्रह कूटनीतिज्ञ ‘राहु’’ है, जो सर्प योग के लिये तो जिम्मेदार है ही, साथ ही छलकपट भी करवाता है।
राहु ग्रह कुंडली में बली अर्थात उच्च, मित्रराशि आदि में स्थित होकर केंद्र, त्रिकोण के अलावा 2, 3, 10, 11 भाव में स्थित हो तो प्रबल योग बनता है। यदि राहु शत्रु राशिगत आदि हो तो, त्रिक भाव 6, 8, 12 में स्थित हो तो राजनीति में सफलता नहीं देता है। इसके अलावा ग्रहों का राजा सूर्य, देवगुरु बृहस्पति और मंगल का बली होना भी आवश्यक है।
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