मिथिला हिन्दी न्यूज :- हिंदू व्रत और त्योहार में Navratri का विशेष महत्व है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा और आराधना की जाती जाती है। वैसे तो नवरात्रि साल में दो बार पड़ती है। एक चैत्र नवरात्रि और दूसरा शारदीय नवरात्रि। इस बार अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरूआत हो रही है। लेकिन नवरात्र कब से शुरू हो रहा है। ये भी आप पहले ही जान लें, जिससे तैयारियां करने में आसानी रहेगी। नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना के साथ नौ दिन के लिए देवी मां का पूजन शुरू किया जाता है. घटस्थापना के कुछ विशेष नियम हैं, जिनका पालन करना जरूरी है. घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष रूप से ध्यान रखें. 7 अक्टूबर को घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 17 मिनट से सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक का है. इसी समय घटस्थापना करने से नवरात्रि फलदायी होते हैं।
कैसे रखें नवरात्रि का व्रत?
नवारत्रि के व्रत का मतलब सिर्फ भूखे-प्यासे रहना नहीं बल्कि अपार श्रद्धा और भक्ति के साथ मां की उपासना करना है. भक्त अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार नौ दिनों तक मां की आराधना करते हैं. कुछ लोग पूरे नौ दिनों तक सिर्फ फलाहार ग्रहण करते हैं, वहीं कुछ लोग इस दौरान एक बार भी नमक नहीं खाते हैं. आपको ऐसे भी भक्त मिल जाएंगे जो इन नौ दिनों में केवल लौंग या इलायची खाकर व्रत करते हैं. कहते हैं कि मां दुर्गा बड़ी दयालू हैं और वहं यह नहीं देखतीं कि किसने व्रत में क्या खाया और क्या नहीं बल्कि वो तो अपने भक्त की सिर्फ श्रद्धा देखती हैं. वहीं, कुछ भक्त पहली नवरात्रि और अष्टमी-नवमी का व्रत करते हैं. अगर आप भी नवरात्रि के व्रत रखने के इच्छुक हैं तो इन नियमों का पालन करना चाहिए।
नवरात्रि केलेंडर
= नवरात्रि का पहला दिन: 07 अक्टूबर दिन गुरुवार को मां शैलपुत्री की पूजा होगी
= नवरात्रि का दूसरा दिन: 08 अक्टूबर दिन शुक्रवार को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी
= नवरात्रि का तीसरा दिन: 09 अक्टूबर दिन शनिवार को मां चंद्रघंटा पूजा व मां कुष्मांडा पूजा होगी
= नवरात्रि का चौथा दिन: 10 अक्टूबर दिन रविवार की मां स्कंदमाता की पूजा होगी
= नवरात्रि का पांचवा दिन: 11 अक्टूबर दिन सोमवार को मां कात्यायनी की पूजा होगी
= नवरात्रि का छठा दिन: 12 अक्टूबर दिन मंगलवार को मां कालरात्रि की पूजा होगी
= नवरात्रि का सातवां दिन: 13 अक्टूबर दिन बुधवार को दुर्गा अष्टमी, कन्या पूजन, मां महागौरी की पूजा होगी
= नवरात्रि का आठवां दिन: 14 अक्टूबर दिन गुरुवार को महानवमी एवं हवन, कन्या पूजन होगी
= नवरात्रि का दसवां दिन: 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को नवरात्रि व्रत का पारण, दशहरा का पर्व मनाया जाएगा
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
जौ बोने के लिए मिटटी का पात्र, साफ़ मिट्टी, मिटटी का एक छोटा घड़ा, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का एक ढक्कन, गंगा जल, सुपारी, 1 या 2 रुपए का सिक्का, आम की पत्तियां, अक्षत / कच्चे चावल, मोली / कलावा / रक्षा सूत्र, जौ (जवारे), इत्र (वैकल्पिक), फुल और फुल माला, नारियल, लाल कपडा / लाल चुन्नी, दूर्वा घास
कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि इस प्रकार है...
सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। और उसमे जवारे के बीज डाल दें।अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिटटी और डालें। और फिर बीज डालें। उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में डाल दें और फिर बीज डालकर थोड़ा सा जल डालें।
ध्यान रहे इन बीजों को पात्र में इस तरह से लगाएं कि उगने पर यह ऊपर की तरफ उगें। यानी बीजों को खड़ी अवस्था में लगाएं और ऊपर वाली लेयर में बीज अवश्य डालें।अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मौली बांध दें। साथ ही तिलक भी लगाएं। इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी दाल दें।अब इस कलश के किनारों पर 5 अशोक के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें।अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें।
इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें। तीनों चीजों को तैयार करने के बाद सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ़ करके उसपर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें।
आपकी कलश स्थापना संपूर्ण हो चुकी है। इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत नवरात्रि पूजन करें। इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखे देने होगा। बस ध्यान रखें सुबह-शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें।।
नवरात्रि में अखंड ज्योति
हर पूजा दीपक के बिना अधूरी है. दीपक ज्ञान, प्रकाश, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है. नवरात्रि के नौ दिनों में अखंड ज्योति जलाई जाती है. इसका मतलब है कि इन नौ दिनों में जो दीपक जलाया जाता है वह दिन-रात जलता रहता है. नवरात्रि के पहले दिन व्रत का संकल्प लेते हुए कलश स्थापना की जाती है और फिर अखंड दीपक जलाया जाता है. मान्यता है कि अखंड दीपक व्रत की समाप्ति तक बुझना नहीं चाहिए.