पूरे देश और विशेषकर बिहार में महिलाओं के खिलाफ बालात्कार और हत्याएं लगातार अखबार की सुर्खियां बनती रहती हैं। हर दिन अखबार में बिहार से आधा दर्जन महिलाओं के ख़िलाफ़ हुए क्रूर अत्याचार की खबरें छपती रहती हैं।ख़बरों का क्या है,खबरें तो स्याही से लिपट कर शांति पा लेती हैं पर बेसहारा और सिस्टम की सताई महिलाओं की कोई सुध तक लेने वाला नहीं होता।
हां अगर भाग्य से कोई राजनीतिक बहस छिड़ गई,किसी पार्टी की सियासत सध रही हो तो शायद शोर ज़्यादा मचे और उसे थोड़ा बहुत इंसाफ मिल भी जाए।
मगर जो खबरें हम तक पहुंचती हैं उनमें से एक,दो को छोड़कर ज़्यादातर केस में अपराधी बेलगाम, भ्रष्ट प्रशासन की नाक के नीचे बिना किसी कानून और न्याय व्यवस्था से डरे घूमता रहता है। उससे भी बुरी स्तिथि हमारे सामाजिक मूल्यों की हो चुकी है जो शायद अब कहीं नगर निगम के डस्ट से भरे डस्टबिन में भी न मिले।
हमने अपने आप को इस गंदगी का आदि बना लिया है तब तो आए दिन हमारे और आपके बीच रहने वाली किसी बहन बेटी के साथ हमारे ही समाज का कोई मर्द ऐसी हरकत कर देता है बिना ये सोचे कि इसका परिणाम क्या होगा,समाज हमे स्वीकार करेगा या नहीं?
ज़ुल्म,नाइंसाफी,अत्याचार के इस अंधकार में हम ये कैंडल अपने ही समाज को रास्ता दिखाने और समझाने के लिए जला रहे हैं ताकि वो समझें कि हमें इन अपराधों को रोकने के लिए अब खुद सामाजिक स्तर पर नए सिरे से सोचना होगा। हमें नई नई मिसालें गढ़नी होंगी हमें नए नए आदर्श मूल्य स्थापित करने होंगे। वरना हम कभी अपने सपनों का भारत नहीं बना पाएंगे, क्योंकि की जहां नारी हमारा साथ छोड़ देगी तब हम कोई भी लक्ष्य पाने में सफल नहीं हो पाएंगे। सरकारों का क्या है,वो तो आती जाती रहती हैं ,सदियों से हमने देखा है की सामाजिक बुराइयों को समाज ही खत्म करता है चाहे वो सती प्रथा रही हो,बाल विवाह हो आज भी ये काम हम-आप मिलकर ही कर सकते हैं।इस मार्च की अगुवाई फ्रेटरनिटी मूवमेंट एल इन एम यू की छात्र इकाई ने किया,जिसका संचालन ताबिश क़ासिम,मो सोहराब,अहमद रज़ा खां,इब्राहिम जुनैदी,यूसुफ रज़ा, शाज़िया कंदील,अब्दुल्लाह नवाज़, आदि ने किया। सरकार से हत्या और बलात्कार के मामले में ज़ीरो टॉलरेंस अपनाने का आग्रह किया।