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पितृ-पक्ष में क्यों जरूरी है श्राद्ध-कर्म, क्या कहते हैं शास्त्र?

पंकज झा शास्त्री 

पृथ्वी पर कोई भी दृश्य-अदृश्य वस्तु सूर्यमंडल तथा चंद्रमंडल के सम्पर्क से ही बनती है। देवताओं के लिए सूर्य का मंडल और पितरों के लिए चंद्रमंडल माना गया है। जैसे सूर्य का ताप फैलने से बहुत से जीव-जंतु और वनस्पतियाँ अस्तित्व खो देते हैं उसी प्रकार चंद्र का प्रकाश फैलने से बहुत से जीव-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं। सूर्य और चंद्र की किरणों से कई जीव, वनस्पति का जन्म होता है और बहुत से अपना जन्म गवाँ बैठते हैं। लेकिन दोनों की सम्मिलित किरण का प्रभाव भी व्यापक स्तर पर होता है।
धर्मशास्त्रों अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। यहाँ आत्माएँ मृत्यु के बाद एक वर्ष से लेकर सौ वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म के मध्य की स्थिति में रहते हैं। यह सभी जानते हैं कि उत्तरायण में देव जागृत रहते हैं और दक्षिणायन में सो जाते हैं। उसी तरह चंद्रमास के कृष्ण पक्ष को पितरों का पक्ष माना जाता है।
सूर्य की सहस्त्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम 'अमा' है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। उसी अमा में तिथि विशेष को चन्द्र (वस्य) का भ्रमण होता है तब उक्त किरण के माध्यम से चंद्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व भी है। अमावस्या के साथ मन्वादि तिथि, संक्रांतिकाल, व्यतिपात, चंद्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण इन समस्त तिथि-वारों में भी पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किया जा सकता है।

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