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नवरात्रि आज से, कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त रहेगा बस इतने घंटे, सुबह जल्दी नहीं उठे तो कर देंगे मिस


पंकज झा शास्त्री

 कलश का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि और मगंलकामनाओं का प्रतीक माना गया है. कहते हैं कि कलश के मुख में भगवान विष्णु जी का निवास होता है. कलश के कंठ में रुद्र और मूल में ब्राह्मा जी समाए हैं. वहीं, कलश के मध्य में दैवीय शक्तियों का निवास होता है इसीलिए किसी भी पूजा अनुष्ठान में कलश का विशेष स्थान है खासकर नवरात्र की बात करे तो कलश और भी अधीक महत्त्वपूर्ण है।नवरात्रि के शुभ दिनों में कलश स्थापना करना जरूरी और शुभ होता है. कलश स्थापना के दौरान कलश के चारों ओर जौ बोए जाते हैं.
 जल से भरे कलश में पंचपल्लव पर चढाकर अनन्त शक्ति के रूप में पूजा की जाती है
हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुभ प्रतीकों को कलश में पूजा जाता है।
जिस स्थान पर कलश स्थापित किया जाता है, उसके नीचे स्वस्तिक का निशान बनाकर कलश स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही सुपारी, दूब आदि को कलश में रखा जाता है। पंचरत्न और सिक्के सहित पाँच प्रकार के पत्ते भी कलश में रखे जाते हैं। इस तरह से रखी गई पत्तियाँ कुछ उभरी हुई पत्तियों के आकार की होनी चाहिए और उभरी हुई पत्तियों से कलश को ढंकना चाहिए।
इस तरह कलश से ढका हुआ पत्ता आवरण अक्षत यानी चावल से भर जाता है। लाल कपड़े में लिपटा नारियल रखा जाता है। ऐसा माना जाता है। नारियल का मुंह कलश पर सदैव अपनी ओर ही रखनी चहिए। नारियल का मुंह जिस तरफ डंडी लगा होता है उसी तरफ होता है।
फिर एक बार सभी देवी-देवताओं को विशेष मंत्रों द्वारा आमंत्रित किया जाता है। अंकुरित जौ को नव दुर्गा के नौ रूप एक सौ आठ नाम, दश महा विद्या और चौसठ योगिनी के रूप में भी पूजा जाता है। यह हर दिन किया जाता है और जौ कंटेनर को सूरज से बाहर रखा जाता है। यह अनदेखा जामरा विजयदशमी के दिन लाल टीका के साथ लगाया जाता है 

 पंडित पंकज झा शास्त्री के अनुसार मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है। समुद्र मंथन की कथा बहुत प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का श्रोत होता है।
जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है-'कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।'
अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्ना करने के लिए बैटरी या कोषा होती है, वैसे ही मंगल कलश ब्रह्माण्डीय ऊर्जा संकेंद्रित कर उसे बहुगुणित कर आसपास विकिरित करने वाली एकीकृत कोषा है, जो वातावरण को दिव्य बनाती है।
कच्चे सूत्रों का दक्षिणावर्ती वलय ऊर्जावलय को धीरे-धीरे चारों ओर वर्तुलाकार संचारित करता है। संभवतः सूत्र (बाँधा गया लच्छा) विद्युत कुचालक होने के कारण ब्रह्माण्डीय बलधाराओं का अपव्यय रोकता है, साथ ही सकारात्मक को पाने हेतु कलश मदद करता है।

नवरात्र की विशेषता
पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। यहां तक कि कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
हालांकि आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं। यहां तक कि सामान्य भक्त ही नहीं अपितु, पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते और ना ही कोई आलस्य को त्यागना चाहता है। आज कल बहुत कम उपासक ही आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं।
जबकि मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। अब तो यह एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य भी है कि रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। आप अगर ध्यान दें तो पाएंगे कि अगर दिन में आवाज दी जाए, तो वह दूर तक नहीं जाती है, किंतु यदि रात्रि में आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।
रेडियो इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। आपने खुद भी महसूस किया होगा कि कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। इसका वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं ठीक उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है।
यही रात्रि का तर्कसंगत रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।

नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार  पंडित पंकज झा शास्त्री कहते है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें से चैत्र व आश्विन माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। चूंकि यहां रात गिनते हैं इसलिए इसे नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है। रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है और, इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है।
 मुख्य इन्द्रियों में अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन, नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
हालांकि शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर 6 माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है जिसमें सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ-सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुद्ध होता है, क्योंकि स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।

इस बार मां दुर्गा शारदीय नवरात्र में डोली से करेगी आगमन, गज वाहन से करेगी प्रस्थान।
वैसे तो मां दुर्गा का मुख्य वाहन शेर है परंतु शास्त्रों के अनुसार वार दिन के अनुसार वाहन निर्धारित होता है और इसी अनुसार ज्योतिषीय फलादेश का आकलन किया जाता है।
माना जाता है शारदीय नवरात्र से एक दिन पहले अमावस्या को पितृ अपने लोक वापस चले जाते है, जिसके ठीक एक दिन बाद यानि शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मां दुर्गा पृथ्वी लोक पर भ्रमण के लिए निकलती है।
इस बार शारदीय नवरात्र 07अक्तुवर2021, गुरूवार से प्रारम्भ हो रहा है जो 15अक्तुवर2021 शुक्रवार तक चलेगी, इसवार आठ पूजा नवम जतरा है। मां दुर्गा इस बार डोली पर आगमन कर रही है जबकि गमन गज वाहन से होगा। ज्योतिषीय आकलन देखे तो डोली पर माता का आगमन राजाओं में आपसी मतभेद, रोग शोक में वृद्धि जनमानस में अधिकतर क्षति एवं अन्य प्राकृतिक अप्राकृतिक अनहोनी घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।
गज वाहन से माता का गमन कृषि के क्षेत्र में वृद्धि, आर्थिक वृद्धि हो सकती है।
इस बार कलश स्थापना चित्रा नक्षत्र में हो रहा है, चंद्रमा कन्या राशि में रहेगा।

घट स्थापना हेतु शुभ मुहुर्त 07 अक्तुवर गुरूवार को प्रातः 06:11 से दिन के 02:56 तक रहेगा।
वैसे समय अभाव में इस दिन घट स्थापना कभी भी कर सकते है कारण नवरात्र सिद्धि का समय होता है और दशो द्वार खुला माना जाता है जिससे नवरात्र में राहु काल भी कमजोर होता है। इस समय कई शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

पंकज झा शास्त्री
9576281913

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