पप्पू कुमार पूर्वे
शारदीय नवरात्र में नौ दिन की पूजा अर्चना के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को दसवें दिन मधुबनी नगर मे धूमधाम से गाजे-बाजे के साथ गंगा सागर में विसर्जित किया गया। लोगों ने नम आंखों से मां को विदाई दी और अगले साल फिर आने का आग्रह किया।
मधुबनी जिले के अलावा नगर के गिलेशन वाली मैया,भगवती स्थान दूर्गा मंदिर,सप्ताह,कोतवाली चौक सहित अन्य कई स्थानों पर नवरात्रि में पूजा के लिए मां दुर्गे की प्रतिमा को खुशी से नौ दिनों तक गाते बजाते, माता के जयकारे के साथ 9 दिन तक सुबह-शाम पूजा अर्चना व आरती की गई l लोगों में उत्साह रहा!
माँ के विसर्जन मे जिला प्रशासन के द्वारा जगह जगह पर पुलिस बल तैनात की गई ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था ना हो l
इस माैके पर सिंदूर खेला की रश्मअदायगी हुई। महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खूब 'सिंदूर खेला' का खेल खेला। हालांकि यह क्षण थोड़ी देर के लिए बड़ा ही भावुक था। मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं के आंख नम थी!
मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व है। कहते हैं कि सिंदूर मां दुर्गा के शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है, इसलिए दशमी वाले दिन सुहागिन महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनती है, और मांग में ढेर सारा सिंदूर भर कर पंडाल जाती है, जहां वे मां दुर्गा को उलूध्वनी निकालकर विदा करती हैं। सभी शादीशुदा महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं। उसके बाद माँ को पान और मिठाई का भोग लगाती है, और आखिर में एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिन्दूर लगाने की इसी प्रथा को सिन्दूर खेला कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला में शामिल होती हैं, उनके पति की उम्र लम्बी होती है और उनका सुहाग सलामत रहता है।
मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। कहते हैं कि जिस तरह से एक लड़की जब अपने मायके आती है, तो उसे खूब प्यार मिलता है, उसकी सेवा की जाती है। उसी तरह माँ दुर्गा के लिए भी जगह-जगह पंडाल लगते हैं और उनकी सेवा की जाती है। जब मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, तो उनकी मांग को सिंदूर से भर कर ही उन्हें विदाई देते हैं।