- टीबी मरीजों के घर पहुंच करते जांच
- काम का ज्यादातर समय गुजरता है फील्ड में
प्रिंस कुमार
हमें बहुत खुशी होती है जब हम आपका परिचय ऐसी शख्सियत से करवाते हैं जिनकी कार्यशैली और समर्पण आम चिकित्सकों से थोड़ा अलग होता है। नाम है डॉ मनोज कुमार जो जिला स्वास्थ्य समिति सीतामढ़ी में संचारी रोग पदाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। इनका काम इनके फाइलों से दूर सीतामढ़ी के गांवों में दिखता है। जहां यह टीबी मरीजों के साथ होते हैं। उनकी तकलीफ, दवाएं, निक्षय राशि की जानकारी लेने। यह काम डॉ मनोज के लिए एक दिन का नहीं बल्कि महीने में 20 दिन का है।
टीबी मरीजों के बीच बीतता है समय
डॉ मनोज कहते हैं ऑफिस में मेरा समय कम ही बीतता है। मेरा मानना है टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसमें लगातार दवा का उपयोग और रोगी के मिलने पर तुरंत उपचार होना जरूरी होता है। इसलिए जब तक आप मरीजों तक नहीं पहुंचेंगे तब तक आप ऑफिस में बैठकर किसी कार्यक्रम की सफलता के लिए आवश्यक तत्वों को नहीं जान पाएंगे। वहीं इस बीमारी में संक्रमण दर भी तेज होती है। अधिकतर टीबी के मरीज वैसी जगहों से होते हैं जहां गरीबी और अशिक्षा ज्यादा होती है। ऐसे में किसी चिकित्सक का उनके द्वार तक पहुंचना उन्हें उम्मीद की रोशनी दिखाती है। वे बात को अमल में लाते हैं। सिस्टम पर विश्वास बनता है। मैं वहां जाकर उनकी दवाइयां देखता हूं कि वे इसे नियमित ले रहे रहे हैं या नहीं। उनका चेकअप करता हूं। उनके परिवार में उनसे किसी तरह का संक्रमण तो नहीं हुआ यह भी देखता हूं। प्रतिदिन मैं कम से कम 10 मरीजों के घर जाकर उनका फॉलोअप कर ही लेता हूं।
टीबी मरीजों की भी करते हैं खोज
टीबी विभाग में कार्यरत राजीव रंजन कहते हैं कि डॉ मनोज जब भी फील्ड विजिट में जाते हैं वह स्वास्थ्य केंद्र जाकर स्वास्थ्य अधिकाकरियों से टीबी के नए मरीजों को तलाशने पर जोर देते हैं। ओपीडी में टीबी के लक्षण वाले मरीजों के घर जाकर उनका चेकअप और जांच की उपलब्धता को सुनिश्चित करते हैं। इस कोविड काल में भी डॉ मनोज को कोविड टीकाकरण एवं सर्वे कार्य का नोडल बनाया गया है फिर भी उनकी खासियत है कि इन सबसे समय बचाकर वह अभी भी टीबी मरीजों के घर उनका हाल -चाल लेने जरूर चले जाते हैं। सच में ऐसे डॉक्टर और पदाधिकारी कम और विरले ही होते हैं।