संवाद
मिथिला हिन्दी न्यूज :- मिथिला में आश्विन पूर्णिमा को ‘कोजगरा’ उत्सव मनाने की परंपरा प्राचीन काल से रही है । समस्त मिथिला में इस पर्व का विशेष महत्व है । विवाह के बाद पहली बार पड़नेवाली शरद पूर्णिमा के अवसर पर नवविवाहित लड़का अपने सुखद वैवाहिक जीवन और अपनी पत्नी के सुखद भविष्य के लिए शरद पूर्णिमा की रात्रि में पान फूल चंदन, मखाना ,बतासा आदि से महालक्ष्मी जी का ध्यान करते हैं।शरद पूर्णिमा के दिन दिनभर व्रत करकेक रात्रि में नवविवाहित वर अपनी पत्नी के सुखद जीवन के लिए उसी प्रकार लक्ष्मी जी की पूजा करते हैंजैसे श्रावण मे नवविवाहिता कन्या अपने पति के सुखद जीवन के लिए मधुश्रावणी करती है
किन्तु दुखद बात कि मिथिला की कन्या आज भी पूरी विधि से तेरह दिनों का मधुश्रावणी व्रत करती हैं किन्तु अपवाद स्वरूप छोडकर एक भी नवविवाहित वर महालक्ष्मी जी की पूजा कोजागरा नहीं करते बल्कि ससूराल से मिले सामानों के कम बेसी के चक्कर में सपरिवार लगे रहते हैं और साले के साथ कौरी खेलकर समाज में भोजभात की तैयारी में लग जाते हैंनव विवाहित वर को भार लेकर आने वाले अपने साला के साथ कौड़ी-पचीसी खेलने की विधि भी पूरी करनी पड़ती है।