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भाई व बहन के प्रेम का प्रतीक सामा-चकेवा पर्व

पप्पू कुमार पूर्वे 
कार्तिक पूर्णिमा की रात आयोजित होनेवाले भाई बहन के प्रेम का पर्व सामा चकेबा को लेकर ग्रामीण इलाके के घर-घर में गीत गूंज रहे हैं। मिथिलाचल की संस्कृति का यह पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। वैसे इसकी परंपरा शहर-बाजार में लगभग समाप्त हो गई है, लेकिन ग्रामीण अंचल में यह पर्व आज भी जीवित है। इस पर्व की तैयारी बहनें व महिलाएं छठ पर्व के समापन के साथ ही शुरू कर देती हैं। बड़े जतन से मिट्टी की सामा, चकेवा, चुगला, पौटी, सरवारी, भैर, सतभैया आदि मूर्तिया बनाती हैं तथा भाई उसे तोड़ता है। ये मूर्तिया विभिन्न रंगों में रंगी जाती हैं और प्रतिदिन रात्रि में महिलाएं समूह में गीत गाती हैं। इस कारण गाव, घर गीतों से गुंजायमान होते रहते हैं। मधुबनी जिला के जयनगर अनुमंडल के विभिन्न गांवों जैसे बलुआटोल,ब्लडीहा, बेला,उसराही, देवधा, पड़वा,योगिया आदि गावों की महिलाओं से मिली जानकारी अनुसार कार्तिक शुक्ल सप्तमी से शुरू हुए इस पर्व का समापन पूर्णिमा की रात्रि चुगला दहन के साथ होता है। झुंड में गीत गाती हुई महिलाएं मूर्तिया विसर्जन कर देती हैं। महिलाएं बताती हैं कि कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि जोते हुए खेत में मूर्तिया विसर्जन के दौरान चुगला में आग लगाई जाती हैं। पटाखे भी छोड़े जाते हैं और बहनें अपने भाइयों के हाथों आग बुझवाती हैं। इस दौरान वृन्दावन में आग लागल, कोई नैय बुताबै छैय, सामा खेलै गेलियै हो भइया, चकेवा लाय गेलै चोर सरीखे लोक गीतों से वातावरण गुंजायमान हो जाता है।बेलही पश्चिमी पंचायत के बलुआटोल निवासी उषा देवी कहती हैं कि सामा चकेवा पर्व हमारे इलाके में धूमधाम से मनाया जाता है।

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