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कल से होगी छठ पूजा की शुरुआत, ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू होगा त्योहार

संवाद 

मिथिला हिन्दी न्यूज :- नहाय खाय के साथ 4 दिनों का छठ महापर्व आज से शुरू, जानिए इसका महत्व । 4 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का पहला दिन नहाय खाय का है। अगले चार दिन तक सूर्य देव और छठ मइया की उपासना की जाएगी। इस पर्व की खास रौनक बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल में देखने को मिलती है। मान्यता है कि छठ पूजा करने से छठी मैया प्रसन्न होकर सभी की मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं।

 चार दिनों तक चलने वाला : हिंदुओं का प्रमुख त्योहार छठ महापर्व कल से शुरू होगा । 4 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का पहला दिन नहाय खाय का है। अगले चार दिन तक सूर्य देव और छठ मइया की उपासना की जाएगी। इस पर्व की खास रौनक बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल में देखने को मिलती है। मान्यता है कि छठ पूजा करने से छठी मैया प्रसन्न होकर सभी की मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। आइए जानते हैं छठ पर्व से जुड़ी तमाम जानकारियां…

छठ महापर्व की तारीख :

इस साल छठ पूजा का त्योहार 8 नवंबर 2021, सोमवार को है. 8 नवंबर से नहाय-खाय शुरू होगा और इसके अगले दिन 9 नवंबर को खरना और 10 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद 11 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन किया जाता है.

छठ पूजा का पहला दिन – छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ हो जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं। और शाकाहारी भोजन करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।

छठ पूजा का दूसरा दिन – कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन व्रत रखा जाता है। व्रती इस दिन शाम के समय एक बार भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को चावल व गुड़ की खीर बनाकर खायी जाती है। चावल का पिठ्ठा व घी लगी हुई रोटी ग्रहण करने के साथ ही प्रसाद रूप में भी वितरीत की जाती है।

छठ पूजा का तीसरा दिन – कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। साथ ही छठ पूजा का प्रसाद तैयार करते हैं। इस दिन व्रती शाम के समय किसी नदी, तालाब पर जाकर पानी में खड़े होकर डूबते हुये सूर्य को अर्घ्य देते हैं। और रात भर जागरण किया जाता है।

छठ पूजा का चौथा दिन – कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह भी पानी में खड़े होकर उगते हुये सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती सात बार परिक्रमा भी करते हैं। इसके बाद एक दूसरे को प्रसाद देकर व्रत खोला जाता है।

ऐसे की जाती है छठ पूजा :

छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठान में पहले दिन नहाय-खाए दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य व चौथे दिन उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। नहाए-खाए के दिन नदि यों में स्नान करते हैं। इस दिन चावल, चने की दाल इत्यादि बनाए जाते हैं। कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना बोलते हैं। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती भोजन करते हैं। षष्ठी के दिन सूर्य को अर्ध्य देने के लि ए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। सप्तमी को सूर्योदय के समय पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं।

आज से पूरे बिहार और पूर्वांचल में छठ पर्व की रौनक शुरू हो जाएगी। हर तरफ छठ के पारंपरिक गीत की धुन सुनाई देगी। दूर दराज से छठ पर्व के लिए घर पहुंचे लोगों में अगले चार दिनों तक जबरदस्त उत्साह देखने को मिलेगा।

नहाय खाय से शुरू हुआ छठ पर्व

चार दिनों का छठ पर्व आज नहाय खाय से शुरू हो गया। पहले दिन आज व्रती महिलाएं या पुरुष बिना नहाय कुछ नहीं खाएंगे। आज से व्रत वाले घरों में सिर्फ पवित्र भोजन और स्वच्छता का पूरा ख्याल रखा जाएगा। प्रसाद से जरूरी अनाज को धोने और सुखाने की प्रक्रिया की जाएगी।

छठ पूजा सामग्री की सूची 

- प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी।
- बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास।
- नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा।
- चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक।
- पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो।
- सुथनी और शकरकंदी।
- हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा।
- नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं।
- शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी।
- कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई।
- ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, जिसे लडु़आ भी कहते हैं आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

छठ मइया का पूजा मंत्र 

ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं |
अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||

छठी मइया का प्रसाद 

ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

छठ पूजा के चार दिन:

1. छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।

2. कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है।

3. षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है।

4. अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।

छठी मइया की कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा था. उनकी पत्नी का नाम था मालिनी. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और रानी दोनों की दुखी रहते थे. संतान प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुईं.

लेकिन रानी की मरा हुआ बेटा पैदा हुआ. इस बात से राजा और रानी दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी. राजा प्रियव्रत इतने दुखी हुए कि उन्होंने आत्म हत्या का मन बना लिया, जैसे ही वो खुद को मारने के लिए आगे बड़े षष्ठी देवी प्रकट हुईं.

षष्ठी देवी ने राजा से कहा कि जो भी व्यक्ति मेरी सच्चे मन से पूजा करता है मैं उन्हें पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. यदि तुम भी मेरी पूजा करोगे तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा प्रियव्रत ने देवी की बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूजा की. इस पूजा से देवी खुश हुईं और तब से हर साल इस तिथि को छठ पर्व मनाया जाने लगा.

छठ पर्व का महत्व :

सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है।

कल नहाय खाय के साथ शुरू होगा छठ पर्व :

छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होगी। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।

कौन है षष्ठी देवी?

अथर्ववेद के अनुसार भगवान भास्कर यानी सूर्य की मानस बहन हैं षष्ठी देवी। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं। एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी। षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा जाता है। 

छठ पूजा तिथि और मुहूर्त :

इस साल छठ पूजा का त्योहार 8 नवंबर 2021, सोमवार को है. 8 नवंबर से नहाय-खाय शुरू होगा और इसके अगले दिन 9 नवंबर को खरना और 10 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद 11 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन किया जाता है.

साल में कितनी बार आता है छठ पर्व ?

सूर्य देव की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।

अर्घ्य के सामानों का महत्व :-

सूप:- अर्ध्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का प्रयोग किया जाता है। सूप से वंश में वृद्धि होती है और वंश की रक्षा भी।
ईख:- ईख आरोग्यता का द्दोतक है।
ठेकुआ:- ठेकुआ समृद्धि का द्दोतक है।
मौसमी फल:- मौसम के फल ,फल प्राप्ति के द्दोतक हैं।

छठ पर्व का चौथा दिन :

छठ पूजा के चौथे दिन यानी सप्‍तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा जाता है और इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है। सप्‍तमी तिथि 11 नवंबर को है। ये छठ पर्व का आखिरी दिन होता है। इस दिन व्रत का पारण किया जाता है।

छठ पूजा का तीसरा दिन :

छठ के तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अर्घ्‍य वाले दिन शाम के पूजन की तैयारियां की जाती हैं। इस बार शाम का अर्घ्‍य 10 नवंबर को दिया जाएगा। छठ व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत करते हैं और शाम के पूजन की तैयारियां करते हैं। इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू होजाती है।

छठ पूजा के दूसरे दिन होता है खरना :

दूसरे दिन यानी खरना के दिन से महिलाएं और पुरुष छठ का उपवास शुरू करते हैं, इन्हें छठ व्रती कहते हैं। इस बार खरना 9 नवंबर को है। इसी दिन शाम के समय प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) बनाया जाता है। साथ ही फल, सब्जियों से पूजा की जाती है। इस दिन गुड़ की खीर भी बनाई जाती है।

छठ पर्व कल से हो रहा है शुरू :

कार्तिक शुक्ल षष्ठी से शुरू होने वाले 4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। इसकी शुरुआत 08 नवंबर को नहाय खाय के साथ होगी। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नए वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।

छठ पूजा के दौरान व्रतियों के लिए नियम 

1. व्रती छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें।
2. छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर ही सोएं।
3. व्रती और घर के सदस्य छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली का सेवन न करें।
4. पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें।
5. छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें।

छठ पर्व का महत्व।

सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति,सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। 

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