मैथिली संसार की संभवत: अकेली ऐसी भाषा है, जिसके आदि काल के प्रामाणिक एवं ठोस गद्य साहित्य उपलब्ध है. इसे संवैधानिक दर्जा हासिल हुए 19 साल बीतने के बावजूद यह यह अब तक ना तो प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बन पाई है और ना ही इसे राजकाज में ही अब तक कोई स्थान मिल पाया है. यह अत्यंत चिंताजनक है. यह बात ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के डॉ अयोध्या नाथ झा ने गुरुवार को श्रीअयोध्याधाम में आयोजित 19वें अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन में 'मिथिला, मैथिली, मैथिलक उत्कर्ष' विषयक विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कही. उन्होंने कहा कि मैथिली भाषा में एमए, पीएचडी, डीलिट आदि की उपाधि मिलती है, लेकिन प्राथमिक शिक्षा अब तक मैथिली भाषा में नहीं होना और सीधे उच्च शिक्षा में आने पर ही मैथिली की पढ़ाई शुरू होना हैरतअंगेज है. उन्होंने मिथिला, मैथिली और मैथिल के सर्वांगीण विकास के लिए वोट की राजनीति में सक्रियता बढ़ाने को समय की जरूरत बताया.
इससे पहले महात्मा गांधी शिक्षण संस्थान के चेयरमैन हीरा कुमार झा ने कहा कि गुणात्मक रूप से मिथिला की शिक्षा व्यवस्था का उत्कर्ष हमेशा से मुखर रहता आया है, लेकिन आज की स्थिति थोड़ी भिन्न है. मैथिली के संवैधानिक अधिकार की प्राप्ति के लिए उन्होंने सांगठनिक प्रयास को तेज किए जाने को जरूरी बताते कहा कि समय के साथ सिर्फ घोषणा मात्र से आह्लादित होने से हमें बचना होगा. विष्णु देव झा विकल ने कहा कि आपसी मतभेद में अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए नए सिपाही तैयार नहीं होना चिंताजनक है. उन्होंने मिथिला, मैथिली और मैथिल के सर्वांगीण विकास के लिए घर-घर में जन जागरण करने को जरूरी बताते इस बात पर चिंता जताई कि संस्थानों की बाढ़ सी आने के बावजूद उनका मूल उद्देश्य से भटकना चिंताजनक है.
सीताराम झा ने कहा कि जनगणना में मैथिली को मातृभाषा के रूप में दर्ज कराना बहुत ही महत्वपूर्ण है. मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि समय पर यदि हम नहीं चेते तो, मिथिला, मैथिली व मैथिल के उत्कर्ष की अधोगति होना अवश्यंभावी है. अशोक झा ने कहा कि मैथिली के संरक्षण व संवर्धन के लिए सबसे पहले इसे साहित्यकारों के चंगुल से निकालना होगा. फिर अपनी शक्ति की पहचान करानी होगी. उन्होंने इतिहास और भूगोल के सहारे नया वर्तमान बनाने की बात करते हुए कहा कि हमें सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वोट की राजनीति राजनीति में सक्रियता बढ़ानी होगी. साथ ही हमें अच्छे बुरे बुरे की समय रहते पहचान करनी होगी.
मुख्य वक्ता के रूप में डॉ रामभरोस कापड़ि ने अपने संबोधन में नेपाल एवं भारत के मैथिली की यथास्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण किया. उन्होंने बताया कि मैथिली की स्थिति भारत से थोड़ी अच्छी नेपाल में है, यह वहां की जनता के जागरूक होने का नतीजा है.
इससे पहले वक्ताओं का स्वागत करते हुए अखिल भारतीय मैथिली सम्मेलन के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मिथिला, मैथिली एवं मैथिल के उत्कर्ष को बनाए रखने व इसके सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन को जरूरी बताया. मणिकांत झा के संचालन में आयोजित विचार गोष्ठी में धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ महेंद्र नारायण राम ने किया. मौके पर डॉ महानंद झा, दुर्गानंद झा, विनोद कुमार झा, प्रो चन्द्र शेखर झा बूढ़ा भाई, नवल किशोर झा, धर्मेंद्र कुमार झा, आभा झा, नीलम झा, डॉ सुषमा झा, भगवान झा, आशीष चौधरी, पुरुषोत्तम वत्स आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही.