पत्रकारिता पेशा या व्यवसाय नहीं, एक मिशन है, इज्जत और कार्यवाही पत्रकार की बुलंद कलम कराती है। पत्रकारिता की चर्चा, पत्रकारों की चर्चा, विशेषकर आज के वक्त में गाहे बगाहे उठती ही रहती है। किसी को कोई सम्मानित कर रहा है, तो कोई किसी को अपमानित कर रहा है। जैसे कि पत्रकार या तो पुण्य धर्म कर रहा है या घोर अपराध कर रहा है।
आज के वक्त में किसी ईमानदार व सच्चे पत्रकार का कलम चलाना बेहद दुर्लभ है। विशेषकर सोशल मीडिया के जमाने में तो यह तकरीबन नामुमकिन सा ही है। एक पत्रकार की परिभाषा बड़ी व्यापक होती है। जिसे व्यक्त करना या परिभाषा के दायरे में बांधना लगभग नामुकिन सा है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता की जो भूमिका रही। वह उन क्रातिकारियों के बलिदानों से कहीं ज्यादा ऊपर और अव्वल है। जो क्रांति करते थें, और पत्रकार अपना सब कुछ दांव पर लगा कर उनके समाचार व खबरें फैलाने का काम करके जनता में जागरूकता व उत्साह भरा करते थें।
अंग्रेजी हुकूमत ने न जाने कितने पत्रकारों की छापा मशीनें और कागज बंडल सहित उनके लोटे थाली, घर मकान तक कुर्क कर जप्त कर जलवा दियें। मगर फिर भी बगैर धन के भी वे फिर से अपने मिशन में जुट बैठते, कई बार जेल जाते, जेल से बाहर आते, इधर उधर से कुछ जुगाड़ करके फिर अखबार छापने लगते और देश में कांति की मशाल को न केवल सुलगाते रहे बल्कि उसे रोशन व ज्वलन्त बनाये रखा। उस चिंगारी की पैदा होती रही ज्वाला को आखरी तक बुझने नहीं दिया।1
आज की पत्रकारिता कुछ अलग किस्म की है। आज पत्रकारिता में 5 प्रकार के वर्ग बन गये हैं। वर्गवार पत्रकारिता की जाने लगी है। पहले जहां गरीबी से जमीनी मिट्टी से कलम निकल कर चलती और सच को बयां करने में अंग्रेजी हुकूमत से सीधी टकराती थी। वह एक वर्ग था, देश भर में करीब 95 फीसदी पत्रकारों का वह वर्ग था।
1. मिशन पत्रकारिता (कलम व जमीन देश, अपनी मिट्टी, मातृभूमि के लिये समर्पित कलम चलाने वाले वे पत्रकार जो कभी किसी सम्मान, पुरस्कार, वेतन, पारिश्रामिक या प्राप्ति की आकांक्षा व इच्छा न रख कर केवल अपना काम करते हैं, केवल सच बोलते हैं, सच लिखते हैं, उनके लेखन में ईमानदारी रहती है और वे सारे लोभ लालचों से दूर,अपना काम करते हैं।
2. सम्मान/पुरस्कार के लिये काम करने वाले, कलम चलाने वाले पेशेवर धंधेबाज पत्रकार ( यह पत्रकार जब भी चाहे जिससे जहां से कुछ प्राप्ति संभव हो, सम्मान या पुरस्कार मिलना संभावित हो। उसी के चरण चुम्बन व चाटुकारिता व चापलूसी करने में सदा ही कर्तव्यरत रह नतमस्तक रहते हैं। इन्हें काफी कुछ मिलता है।
3. तीसरा वर्ग पत्रकारिता में धन्ना सेठों व अमीरों का वर्ग है, जिनके इशारों पर उनके अखबारों के विज्ञापन दिये-लिये जाते हैं। राज्य सरकार का जनसंपर्क विभाग से लेकर प्रेस इन्फॉरमेशन ब्यूरो हो या डी.ए.वी.पी. हो। इन्हें जब जितना चाहिये, उतना खुद व खुद मुंह मांगा मिलता है। इन पर मेहरबानी राजनेताओं की इस कदर रहती है कि इन्हें घर बैठे राज्यसभा में पल भर में पहुंचा दिया जाता है। ये कभी कलम नहीं चलाते, इन्हें पत्रकारिता आती नहीं, लेकिन बड़े-बड़े कलमची व पालतू पत्रकार इनके लिये, वेतन भोगी बाबू या क्लर्क बन कर लिख कर इनके अखबार चलाते हैं।
4. चौथे किस्म की पत्रकारिता का वर्ग एक रैकेट व एक दलाल के रूप में काम करता है। इस वर्ग में हर उमर की हसीना से लेकर, दौलत का अंबार परोस कर, कुछ लोग पत्रकारिता की आड़ में असल पत्रकारिता या असल पत्रकारों की मेहनत मिशन व मशक्कत के साथ उनकी इज्जत और उन्हे मिलने वाला धन या सहायता हड़प जाते हैं।तमाम कॉल गर्ल को पत्रकार बना देना, या धन देने वाले रिक्शा चलाने वालों को या शराब माफियाओं को पल भर में पत्रकार बना देना, इनके लिये चुटकियों का और दांयें-बांये हाथ का काम रहता है। चाहे जिसे जब चाहे अधिमान्यता दिलाना या छीन लेना इनके लिये इनका मूल पेशा है।
संचालनालय जनसंपर्क से लेकर जिला जनसंपर्क कार्यालयों तक इनका माया जाल हर जगह फैला रहता है। दलाल पत्रकार विभिन्न सरकारी व् प्रशासनिक अधिकारियों के जूते चाटते और उनकी दलाली करते पुलिस स्टेशनों और दूसरे विभागों में देखे जा सकते हैं।ये दलाल दिन भर वहीं उनके दोने पत्तल और चाय की प्याली चाटते नजर आते हैं और उनके इशारे पर खुद को असली बाकी अच्छे पत्रकारों को फर्जी तक का लेबल देंने में भी नहीं चूकते।
5. पांचवां वर्ग उन पत्रकारों का है, जो पहले वाले किस्म के वर्ग की पत्रकारिता करें तो, जिसके विरूद्ध उनकी कलम चलेगी। उस पर व उसके परिवार पर जुल्म और अत्याचार का कहर न केवल उधर से टूटेगा। बल्कि, इस देश में जहां बेईमानी, झूठ, फर्जीवाड़े, भ्रष्टाचार, हुआ है। वहां उन्हें सताया जाता है कि या तो वे खुद ही आत्महत्या कर लें या लिखना बंद कर दें। पत्रकारिता छोड़ दें। या उनकी सीधे हत्या ही करवा दी जाती है।
उनकी कलम के चारों ओर खौफ, आतंक व दहशत का जाल पसरा रहता है। पल-पल मिलती धमकियां, कभी जान से मारने की धमकियां, और मजे की बात यह कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं, कोई कार्यवाही नहीं । इनको सताने में, इनका गरीब होना, कमजोर होना, छोटा मीडिया होना और ऊपर के वर्ग क्रमांक 2 से लेकर 4 तक का इनको अपना दुश्मन खुद ही मान लेना। ये 5 प्रकार के वर्ग आज की पत्रकारिता कर रहे हैं। पाठक या दर्शक बहुत आसानी से यह पहचान लेता है कि कौन पत्रकार किस वर्ग का है।