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बिहार सच्चिदानंद सिन्हा ने भारत के संविधान निर्माण में बहुमूल्य योगदान पढें उनके बारें में

संवाद

मिथिला हिन्दी न्यूज :- भारत की अजादी से लेकर अब तक भारत निर्माण में बिहार के कई सपूतों का बहुमूल्य योगदान रहा है, उन्हीं सपूतों में एक थे तत्कालीन शाहाबाद जिले के सपूत और बैरिस्टर डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा, जिनकी नए भारत के निर्माण में अहम भूमिका रही है। उनका जन्म डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत चौंगाई प्रखंड के मुरार गांव में 10 नवंबर 1871 ई. में यहां के प्रसिद्ध कायस्थ कुल में हुआ था। लेकिन, उनकी जयंती पर राजकीय समारोह नहीं होने से ग्रामीण मायूस हैं।महज अठारह वर्ष की उम्र में 26 दिसंबर 1889 को उन्होंने उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड प्रस्थान किया। वहां से तीन साल तक पढ़ाई कर सन् 1893 ई. में स्वदेश लौटे। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में दस वर्ष तक बैरिस्टरी की प्रैक्टिस की। उन्होंने इंडियन पीपुल्स एवं हिंदुस्तान रिव्यू नामक समाचार पत्रों का कई वर्षों तक संपादन किया। बाद में बंगाल से पृथक बिहार के निर्माण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। बिहार को बंगाल से आज़ाद कराने को अपने ज़िन्दगी का सबसे बड़ा मक़सद बनाया और इसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा हथियार बनाया अख़बार को। उसके बाद अलग बिहार की मुहिम तेज होने लगी। इस कड़ी में महेश नारायण, अनुग्रह नारायण सिंह, नंद किशोर लाल, राय बहादुर व कृष्ण सहाय का नाम जुड़ गया। जगह-जगह पर अलग बिहार की मांग को लेकर तहरीक (आंदोलन) होने लगे। बिहार से निकलने वाले अख़बार भी इसके समर्थन में आ गए। इनकी तादाद (संख्या) बहुत कम थी। बंगाली अख़बार अलग बिहार का विरोध करते थे।उन दिनों सिर्फ़ ‘द बिहार हेराल्ड’ अख़बार था, जिसके ईडीटर गुरु प्रसाद सेन थे। उस वक़्त एक यही अंग्रेज़ी अख़बार था जो किसी बिहारी के निगरानी मे था इस लिए 1894 मे सच्चिदानंद सिन्हा ने “द बिहार टाइम्स” के नाम से एक अंग्रेज़ी अख़बार निकाला जो 1906 के बाद “बिहारी” के नाम से जाना गया। सच्चिदानंद सिन्हा ने कई सालों तक महेश नारायण के साथ इस अख़बार के इडिटर का काम किया और इसके ज़रिया से उन्होंने अलग रियासत “बिहार” के लिए मुहीम छेड़ी। उन्होने हिन्दु और मुसलमानो को “बिहार” के नाम एक होने की लगतार अपील की।नंद किशोर लाल के साथ मिल कर सिन्हा साहेब ने बंगाल लेफ़टिनेंट गवर्नर को मेमोरंडम भेज कर अलग “बिहार” रियासत की मांग भी की।1907 में महेश नारायण के इंतक़ाल (मृत्यु) के बाद डॉ. सिन्हा अकेले से हो गए, इसके बाद वे कमज़ोर तो ज़रुर हुए पर मुहिम पर कोई असर नहीं पड़ा क्युंके उनकी मदद के लिए वो मित्र मंडली पुरी तरह तैयार खड़ी हो थी जिनसे उनकी मुलाक़ात इंगलैंड मे हुई थी।

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