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जानें प्राचीन पाटलिपुत्र का इतिहास

अनूप नारायण सिंह 
वैदिक काल में गंगा के उत्तरी किनारे पर विदेह राज्य था जहां सीतi जी का जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मिकि ने बिहार में रहकर ही “रामायण” की रचना की थी।

मगध साम्राज्य भी बिहार की ज़मीन पर ही बढ़ा और संपन्न हुआ। इसी दौरान पाटलिपुत्र अस्तित्व में आया जिसे आज हम पटना कहते हैं।

विश्व का पहला गणतंत्र “लिच्छवी” गंगा की इसी ज़मीन पर तब सांस ले रहा था जब शायद किसी ने गणतंत्र की कल्पना भी नहीं की होगी।

महात्मा बुद्ध को बिहार में ही महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी और बिहार को बौद्ध धर्म का केंद्र माना गया । जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म बिहार में ही हुआ था और इसी ज़मीन पर उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ।

मौर्य साम्राज्य का राजनैतिक केंद्र पाटलिपुत्र था। इस दौरान बिहार पर यूनानी कला-संस्कृति का प्रभाव प्रभाव पड़ा जिसका एक नमूना है “यक्षिणि” की वो मूर्ति जो आज भी पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।

बिहार ने गुप्त वंशियों का स्वर्णिम काल भी देखा। इसी दौरान नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ था जो दुनिया का पहला अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है।

सिक्खों के 10वें गुरू, गुरू गोविंद सिंह भी पटना में ही पैदा हुए और यहीं उन्होनें दीक्षा ली। पटना का मशहूर गुरुद्वारा “हरमंदिर साहिब” उन्हीं की याद में बनाया गया था जिसमें उनकी स्मृतियां हैं। हरमंदिर साहिब सिक्खों का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।

ब्रिटिश राज में बिहार और उड़ीसा संयुक्त रूप से “बंगाल प्रेसिडेंसी” का एक हिस्सा था। दिलचस्प बात ये है कि आज हम जिसे पटना का बेली रोड कहते हैं उसका नाम बिहार के पहले राज्यपाल चार्ल्स स्टुअर्ट बेली ने 1917 में रखा था।

1917 में ही पटना उच्च न्यायालय, पटना म्यूज़ियम, पटना सेक्रेटेरियट, पटना पोस्ट ऑफिस और राजभवन का निमार्ण हुआ था। ब्रिटिश राज में राजधानी पटना में बहुत सारे शैक्षणिक संस्थान बनाए गए जैसे कि पटना कॉलेज, पटना साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग आदि। 1935 में बिहार एक स्वतंत्र राज्य बनाया गया।

स्वतंत्रता संग्राम में भी बिहार की भूमिका अहम रही। चम्पारण सत्याग्रह का मोर्चा महात्मा गांधी ने पंडित राज कुमार शुक्ला के कहने पर ही उठाया था। इसका ज़िक्र महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में किया है। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत भी बिहार ही से हुई।

स्वतंत्रता के बाद भी देश की राजनीति में बिहार की अहम भूमिका रही। इंदिरा गांधी की तानाशाही का सबसे पहले विरोध बिहार में ही हुआ। जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में हुआ आंदोलन इंदिरा सरकार की कुनीतियों के खिलाफ एक मोर्चा था। 1977 में इंदिरा विरोधी जनता पार्टी सत्ता में आई जो जे पी आंदोलन का सीधा असर था।

श्रीकृष्ण सिंहा बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे। उनके कुशल नेतृत्व में बिहार देश का सबसे व्यवस्थित राज्य था। लेकिन धीरे धीरे जाति आधारित राजनीति ने पकड़ बना ली और राज्य की हालत बिगड़ती गई। हालांकि विगत 4-5 वर्षों में विकास तो हुआ है लेकिन राज्य कि स्थिति आब भी दयनीय है और सुधार की सख़्त ज़रूरत है।

झारखंड छोटा नागपुर में स्थित बिहार का हिस्सा था। झारखंड पार्टी जो बाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा कहलाने लगी, आज़ादी के बाद से ही एक अलग राज्य की मांग कर रही थी। आज़ादी के लगभग 53 साल बाद झारखंड को बिहार से अलग किया गया। 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक स्वतंत्र राज्य बना। रांची इसकी राजधानी है और ये भारत का सबसे बड़ा खनिज संसाधन प्रदेश है।
मुगल साम्राज्य के पतन के फलस्वरूप उत्तरी भारत में अराजकता का माहौल हो गया। बंगाल के नवाब अलीवर्दी खाँ ने १७५२ में अपने पोते सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। अलीवर्दी खां की मृत्यु के बाद १० अप्रैल, १७५६ को सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना ।
प्लासी के मैदान में १७५७ ई. में हुए प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की हार और अंग्रेजों की जीत हुई । अंग्रेजों की प्लासी के युद्ध में जीत के बाद मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया और उसके पुत्र मीरन को बिहार का उपनवाब बनाया गया, लेकिन बिहार की वास्तविक सत्ता बिहार के नवाब नाजिम राजा रामनारायण के हाथ में थी ।
तत्कालीन मुगल शहजादा अली गौहर ने इस क्षेत्र में पुनः मुगल सत्ता स्थापित करने की चेष्टा की परन्तु कैप्टन नॉक्स ने अपनी सेना से गौहर अली को मार भगाया । इसी समय मुगल सम्राट आलमगीर द्वितीय की मृत्यु हो गई तो १७६० ई. गौहर अली ने बिहार पर आक्रमण किया और पटना स्थित अंग्रेजी फैक्ट्री में राज्याभिषेक किया और अपना नाम शाहआलम द्वितीय रखा ।
अंग्रेजों ने १७६० ई. में मीर कासिम को बंगाल का गवर्नर बनाया। उसने अंग्रेजों के हस्तक्षेप से दूर रहने के लिए अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर कर दी। मीर कासिम के स्वतन्त्र आचरणों को देखकर अंग्रेजों ने उसे नवाब पद से हटा दिया।
मीर कासिम मुंगेर से पटना चला आया। उसके बाद वह अवध के नवाब सिराजुद्दौला से सहायता माँगने के लिए गया। उस समय मुगल सम्राट शाहआलम भी अवध में था। मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए एक गुट का निर्माण किया। मीर कासिम, अवध का नवाब शुजाउद्दौला एवं मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तीनों शासकों ने चौसा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ा । इस युद्ध में वह २२ अक्टूबर, १७६४ को सर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा पराजित हुआ। इसे बक्सर का युद्ध कहा जाता है।
बक्सर के निर्णायक युद्ध में अंग्रेजों को जीत मिली । युद्ध के बाद शाहआलम अंग्रेजों के समर्थन में आ गया । उसने १७६५ ई. में बिहार, बंगाल और उड़ीसा क्षेत्रों में लगान वसूली का अधिकार अंग्रेजों को दे दिया । एक सन्धि के तहत कम्पनी ने बिहार का प्रशासन चलाने के लिए एक नायब नाजिम अथवा उपप्रान्तपति के पद का सृजन किया । कम्पनी की अनुमति के बिना यह नहीं भरा जा सकता था । अंग्रेजी कम्पनी की अनुशंसा पर ही नायब नाजिम अथवा उपप्रान्तपति की नियुक्ति होती थी ।
बिहार के महत्वपूर्ण उपप्रान्तपतियों में राजा रामनारायण एवं शिताब राय प्रमुख हैं १७६१ ई. में राजवल्लभ को बिहार का उपप्रान्तपति नियुक्त किया गया था । १७६६ ई. में पटना स्थित अंग्रेजी कम्पनी के मुख्य अधिकारी मिडलटन को राजा रामनारायण एवं राजा शिताब राय के साथ एक प्रशसन मंडल का सदस्य नियुक्त किया गया । १७६७ ई. में राजा रामनारायण को हटाकर शिताब राय को कम्पनी द्वारा नायब दीवान बनया गया । उसी वर्ष पटना में अंग्रेजी कम्पनी का मुख्य अधिकारी टॉमस रम्बोल्ड को नियुक्त किया गया । १७६९ ई. में प्रशासन व्यवस्था को चलाने के लिए अंग्रेज निरीक्षक की नियुक्ति हुई ।
१७६५ ई. में बक्सर के युद्ध के बाद बिहार अंग्रेजों की दीवानी हो गयी थी, लेकिन अंग्रेजी प्रशासनिक जिम्मेदारी प्रत्यक्ष रूप से नहीं थी । कोर्ट ऑफ डायरेक्टर से विचार-विमर्श करने के बाद लार्ड क्लाइब ने १७६५ ई. में बंगाल एवं बिहार के क्षेत्रों में द्वैध शासन प्रणाली को लागू कर दिया । द्वैध शासन प्रणाली के समय बिहार का प्रशासनिक भार मिर्जा मुहम्मद कजीम खाँ (मीर जाफर का भाई) के हाथों में था । उपसूबेदार धीरज नारायण (जो राजा रामनारायण का भाई) की सहायता के लिए नियुक्त था । सितम्बर १७६५ ई. में क्लाइब ने अजीम खाँ को हटाकर धीरज नारायण को बिहार का प्रशासक नियुक्त किया । बिहार प्रशासन की देखरेख के लिए तीन सदस्यीय परिषद् की नियुक्तिन १७६६ ई. में की गई जिसमें धीरज नारायण, शिताब राय और मिडलटन थे ।
द्वैध शासन लॉर्ड क्लाइब द्वारा लागू किया गया था जिससे कम्पनी को दीवानी प्राप्ति होने के साथ प्रशासनिक व्यवस्था भी मजबूत हो सके । यह द्वैध शासन १७६५-७२ ई. तक रहा ।
१७६६ ई. में ही क्लाइब के पटना आने पर शिताब राय ने धीरज नारायण के द्वारा चालित शासन में द्वितीय आरोप लगाया । फलतः क्लाइब ने धीरज नारायण को हटाकर शिताब राय को बिहार का नायब नजीम को नियुक्त किया । बिहार के जमींदारों से कम्पनी को लगान वसूली करने में अत्यधिक कठिन एवं कठोर कदम उठाना पड़ता था ।
लगान वसूली में कठोर एवं अन्यायपूर्ण ढंग का उपयोग किया जाता था । यहाँ तक की सेना का भी उपयोग किया जाता था । जैसा कि बेतिया राज के जमींदार मुगल किशोर के साथ हुई थी । इसी समय में (हथवा) हूसपुरराज के जमींदार फतेह शाही ने कम्पनी को दीवानी प्रदान करने से इंकार करने के कारण सेना का उपयोग किया गया । लगान से कृषक वर्ग और आम आदमी की स्थिति अत्यन्त दयनीय होती चली गई ।
द्वैध शासनकाल या दीवानी काल में बिहार की जनता कम्पनी कर संग्रह से कराहने लगी । क्लाइब २९ जनवरी, १७६७ को वापस चला गया । वर्सलेट उत्तराधिकारी के रूप में २६ फरवरी, १७६७ से ४ दिसम्बर, १७६७ तक बनकर आया । उसके बाद कर्रियसे २४ दिसम्बर, १७६९ से १२ अप्रैल, १७७२ उत्तराधिकारी रूप बना । फिर भी बिहार की भयावह दयनीय स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ । १७६९-७० ई.में बिहार-बंगाल में भयानक अकाल पड़ा ।
१७७० ई. में बिहार में एक लगान परिषद् का गठन हुआ जिसे रेवेन्यू काउंसिल ऑफ पटना के नाम से जाना जाता है । लगान् परिषद के अध्यक्ष जार्ज वंसीतार्त को नियुक्त किया गया । इसके बाद इस पद पर थामस लेन (१७७३-७५ ई.), फिलिप मिल्नर इशक सेज तथा इवान ला (१७७५-८० ई. तक) रहे । १७८१ ई. में लगान परिषद को समाप्त कर दिया गया तथा उसके स्थान पर रेवेन्यू ऑफ बिहार पद की स्थापना कर दी गई । इस पद पर सर्वप्रथम विलियम मैक्सवेल को बनाया ।
२८ अगस्त, १७७१ पत्र द्वारा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने द्वैध शासन को समाप्त करने की घोषणा की ।
१३ अप्रैल, १७७२ को विलियम वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया । १७७२ ई. में शिताब राय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये । उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र कल्याण सिंह की बिहार के पद पर नियुक्ति हुई । बाद में कलकत्ता परिषद् से सम्बन्ध बिगड़ जाने से उसे हटा दिया गया । उसके बाद १७७९ ई. में सारण जिला शेष बिहार से अलग कर दिया गया । चार्ल्स ग्रीम को जिलाधिकारी बना दिया गया । १७८१ ई. में प्रान्तीय कर परिषद् को समाप्त कर रेवेन्यू चीफ की नियुक्तिक की गई । इस समय कल्याण सिंह को रायरैयान एवं खिषाली राम को नायब दीवान नियुक्त कर दिया गया ।
इसी समय भरवल एवं मेंसौदी के रेंटर हुसैन अली खाँ जो बनारस राजा चैत्य सिंह के विद्रोह में शामिल था उसे गिरफ्तार कर लिया गया । हथवा के राजा फतेह सिंह, गया के जमींदार नारायण सिंह एवं नरहर के राजा अकबर अली खाँ अंग्रेजों के खिलाफ हो गये ।
१७८१-८२ ई. में ही सुल्तानाबाद की रानी महेश्वारी ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया ।
१७८३ ई. में बिहार में पुनः अकाल पड़ा, जॉन शोर को इसके कारणों एवं प्रकृति की जाँच हेतु नियुक्त किया गया । जॉन शोर ने एक अन्नारगार के निर्माण की सिफारिश की ।
१७८१ ई. में ही बनारस के राजा चैत्य सिंह का विद्रोह हुआ इसी समय हथवा के राजा फतेह सिंह, गया के जमींदार नारायण सिंह एवं नरहर के जमींदार राजा अकबर अली खाँ भी अंग्रेजों के खिलाफ खड़े थे ।
१७७३ ई. में राजमहल, खड्ग पुर एवं भागलपुर को एक सैन्य छावनी में तब्दील कर जगन्नाहथ देव के विद्रोह को दबाया गया ।
१८०३ ई. में रूपनारायण देव के ताल्लुकदारों धरम सिंह, रंजीत सिंह, मंगल सिंह के खिलाफ कलेक्टर ने डिक्री जारी की फलतः यह विद्रोह लगान न देने के लिए हुआ ।
१७७१ ई. में चैर आदिवासियों द्वारा स्थायी बन्दोबस्त भूमि कर व्यवस्था विरोध में विद्रोह कर दिया ।
प्रारम्भिक विरोध- मीर जाफर द्वारा सत्ता सुदृढ़ीकरण के लिए १७५७-५८ ई. तक खींचातानी होती रही ।
अली गौहर के अभियान- मार्च १७५९ में मुगल शहजादा अली गौहर ने बिहार पर चढ़ाई कर दी परन्तु क्लाइब ने उसे वापसी के लिए बाध्य कर दिया, फिर पुनः १७६० ई. बिहार पर चढ़ाई की । इस बार भी वह पराजित हो गया । १७६१ ई. शाहआलम द्वितीय का अंग्रेजों के सहयोग से पटना में राज्याभिषेक किया ।
१७६४ ई. बक्सर का युद्ध हुआ । युद्ध के बाद बिहार में अनेकों विद्रोह हुए । इस समय बिहार का नवाब मीर कासिम था ।
जॉन शोर के सिफारिश से अन्नाेगार का निर्माण पटना गोलघर के रूप में १७८४ ई. में किया गया ।
जब बिहार में १७८३ ई. में अकाल पड़ा तब अकाल पर एक कमेटी बनी जिसकी अध्यक्षता जॉन शोर था उसने अन्नाेगार निर्माण की सिफारिश की ।
गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस के आदेश पर पटना गाँधी मैदान के पश्चिाम में विशाल गुम्बदकार गोदाम बना इसका निर्माण १७८४-८५ ई. में हुआ । जॉन आस्टिन ने किया था ।
१७८४ ई. में रोहतास को नया जिला बनाया गया और थामस लॉ इसका मजिस्ट्रेट एवं क्लेवर नियुक्त किया गया ।
१७९० ई. तक अंग्रेजों ने फौजदारी प्रशासन को अपने नियन्त्रण में ले लिया था । पटना के प्रथम मजिस्ट्रेट चार्ल्स फ्रांसिस ग्राण्ड को नियुक्त किया गया था ।
१७९० ई. तक अंग्रेजों ने फौजदारी प्रशासन को अपने नियन्त्रण में ले लिया था । पटना के प्रथम जिस्ट्रेट चार्ल्स फ्रांसिस ग्राण्ड को नियुक्त किया गया था ।
बिहार में अंग्रेज विरोधी विद्रोह
७५७ ई. से लेकर १८५७ ई. तक बिहार में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह चलता रहा । बिहार में १७५७ ई. से ही ब्रिटिश विरोधी संघर्ष प्रारम्भ हो गया था । यहाँ के स्थानीय जमींदारों, क्षेत्रीय शासकों, युवकों एवं विभिन्न जनजातियों तथा कृषक वर्ग ने अंग्रेजों के खिलाफ अनेकों बार संघर्ष या विद्रोह किया । बिहार के स्थानीय लोगों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संगठित या असंगठित रूप से विद्रोह चलता रहा, जिनके फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए ।

जनजातीय विद्रोह में सबसे संगठित एवं विस्तृत विद्रोह १८९५ ई. से १९०१ ई. के बीच मुण्डा विद्रोह था जिसका नेतृत्व बिरसा मुण्डा ने किया था ।
बिरसा मुण्डा का जन्म १८७५ ई. में रांची के तमार थाना के अन्तर्गत चालकन्द गाँव में हुआ था । उसने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी । बिरसा मुण्डा ने मुण्डा विद्रोह पारम्परिक भू-व्यवस्था का जमींदारी व्यवस्था में परिवर्तन हेतु धार्मिक-राजनीतिक आन्दोलन का स्वरूप प्रदान किया ।
बिरसा मुण्डा को उल्गुहान (महान विद्रोही) कहा गया है । बिरसा मुण्डा ने पारम्परिक भू-व्यवस्था का जमींदारी व्यवस्था को धार्मिक एवं राजनीतिक आन्दोलन का रूप प्रदान किया ।
बिरसा मुण्डा ने अपनी सुधारवादी प्रक्रिया को सामाजिक जीवन में एक आदर्श प्रस्तुत किया । उसने नैतिक आचरण की शुद्धता, आत्म-सुधार और एकेश्वारवाद का उपदेश दिया । उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकारते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान न देने का आदेश दिया ।
१९०० ई. बिरसा मुण्डा को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जेल में डाल दिया जहाँ हैजा बीमारी से उनकी मृत्यु हो गयी ।

ताना भगत का जन्म १९१४ ई. में गुमला जिला के बिशनुपुर प्रखण्ड (छोटा नागपुर) के एक ग्राम से हुआ था । इसका नेतृत्व आदिवासियों में रहने वाले धर्माचार्यों ने किया था । यह संस्कृतिकरण आन्दोलन था । इन जनजातियों (आदिवासी) के मध्य गाँधीवादी कार्यकर्ताओं ने अपने रचनात्मक कार्यों से प्रवेश प्राप्त कर लिया था । जात्रा भगत इस आन्दोलन का प्रमुख नेता था । यह नया धार्मिक आन्दोलन उरॉव जनजाति द्वारा प्रारम्भ हुआ था । ताना भगत आन्दोलन बिहार जनजातियों का राष्ट्रीय आन्दोलन था । १९२० के दशक में ताना भगत आन्दोलनकारियों ने कांग्रेस में रहकर सत्याग्रहों व प्रदर्शनों में भाग लिया था तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की थी । इस आन्दोलन में खादी का प्रचार एवं प्रसार हुआ । इसाई धर्म प्रचारकों का विरोध किया गया । इस आन्दोलन की मुख्य माँगें थीं- स्वशासन का अधिकार, लगान का बहिष्कार एवं मनुष्यों में समता । जब असहयोग आन्दोलन कमजोर पड़ गया तब इन आन्दोलनकारियों ने स्थानीय मुद्दों को उठाकर आन्दोलन किया ।

१८५७ ई. का विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ भारतवासियों का प्रथम सशक्त विद्रोह था । १८५७ ई. की क्रान्ति की शुरुआत बिहार में १२ जून, १८५७ को देवधर जिले के रोहिणी नामक स्थान से हुई थी । यहाँ ३२वीं इनफैन्ट्री रेजीमेण्ट का मुख्यालय था एवं पाँचवीं अनियमित घुड़सवार सेना का मेजर मैक्डोनाल्ड भी यहीं तैनात था । इसी विद्रोह में लेफ्टीनेंट नार्मल लेस्ली एवं सहायक सर्जन ५० ग्राण्ट लेस्ली भी मारे गये ।
मेजर मैक्डोनाल्ड ने इस विद्रोह को निर्दयतापूर्ण दबा दिया एवं विद्रोह में सम्मिलित तीन सैनिकों को फाँसी पर लटका दिया गया । ३ जुलाई, १८५७ को पटना सिटी के एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष हो गया । शीघ्र ही पटना की स्थिति बिगड़ने लगी । पटना के कमिश्नर विलियम टेलर ने छपरा, आरा, मुजफ्फरपुर, गया एवं मोतिहारी में अवस्थित सेना को सख्ती से निपटने का निर्देश दिया । फलतः टेलर ने इस विद्रोह को बलपूर्वक दबा दिया । पीर अली के घर को नष्ट कर दिया गया । १७ व्यक्तिदयों को फाँसी की सजा दी गई थी ।
२५ जुलाई, १८५४ को मुजफ्फरपुर में भी अंग्रेज अधिकारियों की असन्तुष्ट सैनिकों ने हत्या कर दी ।
२५ जुलाई के दिन दानापुर छावनी के तीन रेजीमेण्टों ने विद्रोह कर आरा जाकर कुँअर सिंह के विद्रोहों में शामिल हो गया ।
सिगौली में भी सैनिकों ने विद्रोह कर अपने कमाण्डर मेजर होल्यस तथा उनकी पत्नी को मार डाला ।
३० जुलाई तक पटना, सारण, चम्पारण आदि जिलों में सैनिक शासन लागू हो गया ।
अगस्त में भागलपुर में विद्रोह भड़क उठा था । विद्रोहियों ने गया पहुँचकर ४०० लोगों को मुक्त कर लिया । राजगीर, बिहार शरीफ एवं गया क्षेत्र में छिटपुट विद्रोह शुरू हो गया । दानापुर के तीनों रेजीमेण्ट ने सैनिक विद्रोह कर जगदीशपुर के जमींदार वीर कुँअर सिंह के साथ शामिल हो गये थे । बाबू कुँअर सिंह के पूर्वज परमार राजपूत थे और उज्जैन से आकर शाहाबाद जिले में बस गये थे ।
कुँअर सिंह का जन्म सन् १७८० में भोजपुर जिले के जगदीशपुर गाँव में हुआ था । पिता साहबजादा सिंह एक उदार स्वभाव के जमींदार थे । वे अपने पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे । इनका विवाह देवयुँगा (गया) में हुआ था । उनके पूर्वज परमार राजपूत (जो उज्जैन से आकर शाहाबाद जिले में बस गये) थे ।
२५ जुलाई, १८५७ को दानापुर में हिन्दुस्तानी सिपाही विद्रोह शुरू कर दिया । वे इस समय ८० वर्ष के थे । वीर कुँअर सिंह ने कमिश्नर टेलर से मिलने के आग्रह को ठुकराकर अपने लगभग ५,००० सैनिकों के साथ आरा पर आक्रमण कर दिया । आरा नगर की कचहरी और राजकोष पर अधिकार कर लिया । आरा को मुक्त करवाने के लिए दानापुर अंग्रेज एवं सिक्ख सैनिक कैप्टन डनवर के नेतृत्व में आरा पहुँचे ।
२ अगस्त, १८५७ को कुँअर सिंह एवं मेजर आयर की सेनाओं के बीच वीरगंज के निकट भयंकर संघर्ष हुआ । इसके बाद कुँअर सिंह ने नाना साहेब से मिलकर आजमगढ़ में अंग्रेजों को अह्राया । २३ अप्रैल, १८५८ को कैप्टन ली ग्राण्ड के नेतृत्व में आयी ब्रिटिश सेना को कुँअर सिंह ने पराजित किया । लेकिन इस लड़ाई में वे बुरी तरह से घायल हो गये थे । मरने से पूर्व कुँअर सिंह की एक बांह कट गई थी और जाँघ में सख्त चोट थी ।
२६ अप्रैल, १८५८ को उनकी मृत्यु हुई । अदम्य साहस, वीरता, सेनानायकों जैसे महान गुणों के कारण इन्हें बिहार का सिंह’ कहा जाता है । संघर्ष का क्रम उनके भाई अमर सिंह ने आगे बढ़ाया । उन्होंने शाहाबाद को अपने नियन्त्रण में बनाये रखा । ९ नवम्बर, १८५८ तक अंग्रेजी सरकार इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं कर सकी थी । उसने कैमूर पहाड़ियों में मोर्चाबन्दी कर अंग्रेज सरकार को चुनौती दी । उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध छापामार युद्ध जारी रखा । महारानी द्वारा क्षमादान की घोषणा के बाद ही इस क्षेत्र में विद्रोहियों ने हथियार डाले ।
अमर सिंह सहित १४ आदमियों को क्षमादान के प्रावधान से पृथक रखा गया एवं इन्हें दण्डित किया गया । १८५९ ई. तक ब्रिटिश सत्ता की बहाली न केवल बिहार बल्कि सारे देश में हो चुकी थी ।
कम्पनी शासन का अन्त हुआ और भारत का शासन इंग्लैण्ड की सरकार के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में आ गया ।

११ अगस्त, १९४२ को सचिवालय गोलीकाण्ड बिहार के इतिहास वरन् भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का एक अविस्मरणीय दिन था । पटना के जिलाधिकारी डब्ल्यू. जी. आर्थर के आदेश पर पुलिस ने गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया । पुलिस ने १३ या १४ राउण्ड गोलियाँ चलाईं, इस गोलीकाण्ड में सात छात्र शहीद हुए, लगभग २५ गम्भीर रूप से घायल हुए । ११ अगस्त, १९४२ के सचिवालय गोलीकाण्ड ने बिहार में आन्दोलन को उग्र कर दिया ।
सचिवालय गोलीकाण्ड में शहीद सात महान बिहारी सपूत-
१. उमाकान्त प्रसाद सिंह- राम मोहन राय सेमीनरी स्कूल के १२वीं कक्षा का छात्र था । इसके पिता राजकुमार सिंह थे । वह सारण जिले के नरेन्द्रपुर ग्राम का निवासी था ।
२. रामानन्द सिंह- ये राम मोहन राय सेमीनरी स्कूल पटना के ११ वीं कक्षा का छात्र था । इनका जन्म पटना जिले के ग्राम शहादत नगर में हुआ था । इनके पिता लक्ष्मण सिंह थे ।
३. सतीश प्रसाद झा- सतीश प्रसाद का जन्म भागलपुर जिले के खडहरा में हुआ था । इनके पिता जगदीश प्रसाद झा थे । वह पटना कालेजियत स्कूल का ११वीं कक्षा का छात्र था । सीवान थाना में फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव द्वारा राष्ट्रीय झण्डा लहराने की कोशिश में पुलिस गोली का शिकार हुए ।
४. जगपति कुमार- इस महान सपूत का जन्म गया जिले के खराठी गाँव में हुआ था ।
५. देवीपद चौधरी- इस महान सपूत का जन्म सिलहर जिले के अन्तर्गत जमालपुर गाँव में हुआ था । वे मीलर हाईस्कूल के ९वीं कक्षा का छात्र था ।
६. राजेन्द्र सिंह- इस महान सपूत का जन्म सारण जिले के बनवारी चक ग्राम में हुआ था । वह पटना हाईस्कूल के ११वीं का छात्र था ।
७. राय गोविन्द सिंह- इस महान सपूत का जन्म पटना जिले के दशरथ ग्राम में हुआ । वह पुनपुन हाईस्कूल का ११वीं का छात्र था ।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इस स्थान पर शहीद स्मारक का निर्माण हुआ । इसका शिलान्यास स्वतन्त्रता दिवस को बिहार के प्रथम राज्यपाल जयराम दौलत राय के हाथों हुआ । औपचारिक अनावरण देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने १९५६ ई. में किया । भारत छोड़ो आन्दोलन के क्रम में बिहार में १५,००० से अधिक व्यक्तिृ बन्दी बनाये गये, ८,७८३ को सजा मिली एवं १३४ व्यक्तिष मारे गये ।
बिहार में भारत छोड़ो आन्दोलन को सरकार द्वारा बलपूर्वक दबाने का प्रयास किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि क्रान्तिकारियों को गुप्त रूप से आन्दोलन चलाने पर बाध्य होना पड़ा ।
९ नवम्बर, १९४२ दीवाली की रात में जयप्रकाश नारायण, रामनन्दन मिश्र, योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण सिंह इत्यादि व्यक्तिि हजारीबाग जेल की दीवार फाँदकर भाग गये । सभी शैक्षिक संस्थान हड़ताल पर चली गई और राष्ट्रीय झण्डे लहराये गये । ११ अगस्त को विद्यार्थियों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन के सामने विधायिका की इमारत पर राष्ट्रीय झण्डा लहराने की कोशिश की ।
द्वितीय विश्व युद्ध की प्रगति और उससे उत्पन्न गम्भीर परिस्थित्यों को देखते हुए कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को सहायता व सहयोग दिया । अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स प्रस्ताव में दोष होने के कारण कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया था ।
दिसम्बर, १९४१ में जापानी आक्रमण से अंग्रेज भयभीत हो गये थे । मार्च, १९४२ में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विन्सटन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में घोषणा की कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान किया जायेगा । २२ मार्च, १९४२ को स्टेफोर्ड किप्स ने इस व्यवस्था में लाया । फलतः उनके प्रस्ताव राष्ट्रवादियों के लिए असन्तोषजनक सिद्ध हुए । ३० जनवरी, १९४२ से १५ फरवरी, १९४२ तक पटना में रहकर मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने सार्वजनिक सभा को सम्बोधित किया ।
१४ जुलाई, १९४२ को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का आयोजन किया गया । इसी समय सुप्रसिद्ध भारत छोड़ो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और उसे अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति को मुम्बई में होने वाली बैठक में प्रस्तुत करने का निर्णय हुआ । ५ अगस्त, १९४२ को मुम्बई में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और गाँधी जी ने करो या मरो का नारा दिया साथ ही कहा हम देश को चितरंजन दास की बेड़ियों में बँधे हुए देखने को जिन्दा नहीं रहेंगे । ८ अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के तुरन्त बाद कांग्रेस के अधिकतर नेता गिरफ्तार कर लिये गये । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया । इसके बाद में मथुरा बाबू, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह बाबू इत्यादि भी गिरफ्तार कर लिए गये । बलदेव सहाय ने सरकारी नीति के विरोध में महाधिवक्तां पद से इस्तीफा दे दिया । ९ अगस्त अध्यादेश द्वारा कांग्रेस को गैर-कानूनी घोषित कर दिया । इसके फलस्वरूप गवर्नर ने इण्डिपेंडेन्ट पार्टी के सदस्य मोहम्मद युनुस को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रण किया । मोहम्मद युनुस बिहार के भारतीय प्रधानमन्त्री बने ।
(तत्कालीन समय में प्रान्त के प्रधान को प्रधानमन्त्री कहा जाता था।)
भारत सरकार अधिनियम, १९३५ एवं बिहार में प्रथम कांग्रेस का मन्त्रिमण्डल
ब्रिटिश संसद द्वारा १९३५ ई. में भारत के शासन के लिए एक शासन विधान को पारित किया गया । १९३५ ई. से १९४७ ई. तक इसी आधार पर भारतीय शासन होता रहा । इस विधान में एक संघीय शासन की व्यवस्था थी । कांग्रेस ने इसे अपेक्षाओं से कम माना लेकिन चुनाव में भाग लिया । १९३५-३६ ई. के चुनाव तैयार करने लगा । जवाहरलाल नेहरू एवं गोविन्द वल्लभ पन्त ने बिहार का दौरा कर कांग्रेसियों का जोश बढ़ाया ।
कांग्रेस ने अनेक रचनात्मक कार्य उद्योग संघ, चर्खा संघ आदि चलाये । रात्रि समय में पाठशाला, ग्राम पुसतकालय खोले गये । आटा चक्की, दुकान चलाना एवं खजूर से गुड़ बनाना आदि कार्यों का प्रशिक्षण दिया गया । बिहार में कांग्रेसी आश्रम खोलने का शीलभद्र याज्ञी का विशेष योगदान रहा । १९३५ ई. का वर्ष कांग्रेस का स्वर्ण जयन्ती वर्ष था जो डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की अध्यक्षता में धूमधाम से मनाया गया । जनवरी १९३६ ई. में छः वर्षों के प्रतिबन्धों के पश्चाेत् बिहार राजनीतिक सम्मेलन का १९वाँ अधिवेशन पटना में आयोजित किया गया । २२ से २७ जनवरी के मध्य बिहार के १५२ निर्वाचन मण्डल क्षेत्रों में चुनाव सम्पन्न हुए । कांग्रेस ने १०७ में से ९८ जीते । १७-१८ मार्च को दिल्ली में कांग्रेस बैठक के बाद बिहार में कांग्रेस मन्त्रिमण्डल का गठन हुआ ।
२१ जून को वायसराय लिनलिथगो के वक्तवव्य ने संशयों को दूर करने में सफलता पाई अन्त में युनुस को सरकार का निमन्त्रण न देकर श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व मन्त्रिमण्डल का गठन किया गया,अनुग्रह नारायण सिंह उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री बने । रामदयालु अध्यक्ष तथा प्रो. अब्दुल बारी विधानसभा के उपाध्यक्ष बने । इस बीच अण्डमान से लाये गये राजनीतिक कैदियों की रिहाई के प्रश्न पर गंभीर विवाद उत्पन्न हो गया फलतः वायसराय के समर्थन इन्कार के बाद १५ जनवरी, १९३८ के मन्त्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया । कांग्रेस ने बाद में सुधारात्मक एवं रचनात्मक कार्यों की तरफ ध्यान देने लगा । बिहार टेनेन्सी अमेण्टमेड एक्ट के तहत काश्तकारी व्यवस्था के अन्तर्गत किसानों को होने वाली समस्या को दूर करने का प्रयास किया । चम्पारण कृषि संशोधन कानून और छोटा नागपुर संशोधन कानून पारित किये गये । श्रमिकों में फैले असन्तोष से १९३७-३८ ई. में ग्यारह बार हड़तालें हुईं । अब्दुल बारी ने टाटा वर्क्स यूनियन की स्थापना की । योगेन्द्र शुक्ल, सत्यनारायण सिंह आदि प्रमुख श्रमिक नेता हुए । इस बीच मुस्लिम लीग की गतिविधियाँ बढ़ गयीं ।
विदेशी वस्त्र बहिष्कार- ३ जनवरी, १९२९ को कलकत्ता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने का निर्णय किया गया । इसमें अपने स्वदेशी वस्त्र खादी वस्त्र को बढ़ावा देने के लिए माँग की गई । सार्वजनिक सभाओं एवं मैजिक लालटेन की सहायता से कार्यकर्ता के सहारे गाँव में पहुँचे ।
पूर्ण स्वाधीनता प्रस्ताव- जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का २९-३१ दिसम्बर, १९२९ का लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता प्रस्ताव स्वीकृत किया गया । बिहार कांग्रेस कार्यसमिति की २० जनवरी, १९३० को पटना में एक बैठक आयोजित की गई । २६ जनवरी, १९३० को सभी जगह स्वतन्त्रता दिवस मनाने को निश्चिसत किया और मनाया गया ।
नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन
दिसम्बर १९२९ ई. में पण्डित जवाहरलाल की अध्यक्षता में लाहौर का अधिवेशन सम्पन्न हुआ था । इसके साथ ही गाँधी जी ने फरवरी १९३० ई. में कार्यकारिणी कांग्रेस को गाँधी जी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन करने का अधिकार दिया ।
१२ मार्च, १९३० को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ नमक कानून तोड़ने के साथ शुरू हुआ । २६ जनवरी, १९३० को बिहार में स्वाधीनता मनाने के उपरान्त १२ मार्च को गाँधी जी की डांडी यात्रा शुरू हुई थी । बिहार में नमक सत्याग्रह का प्रारम्भ १५ अप्रैल, १९३० चम्पारण एवं सारण जिलों में नमकीन मिट्टी से नमक बनाकर किया गया । पटना में १६ अप्रैल, १९३० को नरवासपिण्ड नामक स्थान दरभंगा में सत्यनारायण सिंह, मुंगेर में श्रीकृष्ण सिंह ने नमक कानून को तोड़ा ।
४ मई, १९३० को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया । इसके विरोध में पूरे बिहार में विरोध प्रदर्शन किया गया । मई, १९३० ई. में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने विदेशी वस्त्रों और शराब की दुकानों के आगे धरने का प्रस्ताव किया । इसी आन्दोलन के क्रम में बिहार में चौकीदारी कर देना बन्द कर दिया गया । स्वदेशी वस्त्रों की माँग पर छपरा जिले में कैदियों ने नंगा रहने का निर्णय किया । इसे नंगी हड़ताल के नाम से जाना जाता है । ७ अप्रैल को गाँधी जी ने अपने वक्तइव्य द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित करने की सलाह दी । १८ मई, १९३४ को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने आन्दोलन को स्थगित कर दिया ।
साइमन कमीशन वापस जाओ आन्दोलन
१९२७ ई. में ब्रिटिश संसद एवं भारतीय वायसराय लॉर्ड डरविन ने एक घोषणा की भारत में फैल रही नैराश्य स्थिति की समाप्ति हेतु १९२८ ई. में एक कमीशन की स्थापना की घोषणा की । इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, अतः इसे साइमन कमीशन कहा जाता है किन्तु इसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं रखा गया था । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस आयोग के बहिष्कार एवं विरोध का फैसला किया । बिहार प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति की पटना में सर अली इमाम की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें साइमन कमीशन के पटना आगमन पर पूर्ण बहिष्कार किया गया ।
१८ दिसम्बर, १९२८ को साइमन कमीशन बिहार आया । हार्डिंग पार्क (पटना) के सामने बने विशेष प्लेटफार्म के सामने ३०,००० राष्ट्रवादियों ने साइमन वापस जाओ के नारे से स्वागत किया गया । साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लखनऊ में पण्डित जवाहर लाल एवं लाहौर में लाला लाजपत राय पर लाठियाँ बरसाई गईं । लाठी की चोट से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई । फलतः विद्रोह पूरे देश में फैल गया । कमीशन के विरोध में बिहार में राजेन्द्र प्रसाद ने इसकी अध्यक्षता की थी । बिहार राष्ट्रवादियों ने नारा दिया कि “जवानों सवेरा हुआ साइमन भगाने का बेरा हुआ" । विरोधी नेताओं में ब्रज किशोर जी, रामदयालु जी एवं अनुग्रह नारायण बाबू थे । इस घटना ने बिहार के लिए नई चेतना पैदा कर दी । १९२९ ई. में सर्वदलीय सम्मेलन हुआ जिसमें भारत के लिए संविधान बनाने के लिए मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनी जिसे नेहरू रिपोर्ट कहते हैं । पटना में दानापुर रोड बना राष्ट्रीय पाठशाला (अन्य) भी खुली । एक मियाँ खैरूद्दीन के मकान के छात्रों को पढ़ाना शुरू किया गया । बाद में यही जगह सदाकत आश्रम के रूप में बदल गया ।
नवम्बर १९२१ ई. ब्रिटिश युवराज का भारत आगमन हुआ । इनके आगमन के विरोध करने का फैसला किया गया । इसके लिए बिहार प्रान्तीय सम्मेलन का आयोजन किया गया । जब राजकुमार २२ दिसम्बर, १९२१ को पटना आये तो पूरे शहर में हड़ताल थी । ५ जनवरी, १९२२ को उत्तर प्रदेश के चौरा-चौरी नामक स्थान पर उग्र भीड़ ने २१ सिपाहियों को जिन्दा जला दिया तो गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया । गाँधी जी को १० मार्च, १९२२ को गिरफ्तार कर ६ महीना के लिए जेल भेज दिया गया ।
बिहार में स्वराज पार्टी
चौरा-चौरी काण्ड से दुःखी होकर गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को समाप्त कर दिया फलतः देशबन्धु चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू और विट्ठनलभाई पटेल ने एक स्वराज दल का गठन किया ।
बिहार में स्वराज दल का गठन फरवरी १९२३ ई. में हुआ । नारायण प्रसाद अध्यक्ष, अब्दुल बारी सचिव एवं कृष्ण सहाय तथा हरनन्दन सहाय को सहायक सचिव बनाया गया । मई, १९२३ ई. को नई कार्यकारिणी का गठन हुआ । २ जून, १९२३ को पटना में स्वराज दल की एक बैठक हुई जिसमें पटना, तिरहुत, छोटा नागपुर एवं भागलपुर मण्डलों में भी स्वराज दल की शाखाओं को गठित करने की घोषणा की गई, लेकिन यह आन्दोलन ज्यादा दिनों तक नहीं चला ।
असहयोग आन्दोलन
इस आन्दोलन का प्रारूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सितम्बर, १९२० ई. में पारित हुआ, लेकिन बिहार में इसके पूर्व ही असहयोग प्रस्ताव पारित हो चुका था । २९ अगस्त, १९१८ को कांग्रेस ने अपने मुम्बई अधिवेशन में ंआण्टेक्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट पर विचार किया जिसकी अध्यक्षता बिहार के प्रसिद्ध बैरिस्टर हसन इमान ने की । हसन इमान के नेतृत्व में इंग्लैण्ड में एक शिष्ट मण्डल भेजा जा रहा था, जिससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया जाय । रौलेट एक्ट के काले कानून के विरुद्ध गाँधी जी ने पूरे देश में जनआन्दोलन छेड़ रखा था ।
बिहार में ६ अप्रैल, १९१९ को हड़ताल हुई । मुजफ्फरपुर, छपरा, गया, मुंगेर आदि स्थानों पर हड़ताल का व्यापक असर पड़ा । ११ अप्रैल, १९१९ को पटना में एक जनसभा का आयोजन किया गया जिसमें गाँधी जी की गिरफ्तारी का विरोध किया गया । असहयोग आन्दोलन के क्रम में मजरूलहक, राजेन्द्र प्रसाद,अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजकिशोर प्रसाद, मोहम्मद शफी और अन्य नेताओं ने विधायिका के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली । छात्रों को वैकल्पिक शिक्षा प्रदान करने के लिए पटना-गया रोड पर एक राष्ट्रीय महाविद्यालय के ही प्रांगण में बिहार विद्यापीठ का उद्घाोटन ६ फरवरी, १९२१ को गाँधी जी द्वारा किया गया । २० सितम्बर, १९२१ से मजहरूल हक ने सदाकत आश्रय से ही मदरलैण्ड नामक अखबार निकालना शुरू किया । इसका प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय भावना के प्रचार-प्रसार एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता की स्थापना करना था । इन्होंने गाँधी जी को किसानों की आर्थिक दशा की तरफ ध्यान दिलाया । ब्रजकिशोर प्रसाद ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिससे समस्याओं का निदान किया जा सके । राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधी जी ने कलकत्ता से १५ अप्रैल, १९१७ को पटना, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा होते हुए चम्पारण पहुँचे । स्थानीय प्रशासन ने उनके आगमन एवं आचरण को गैर-कानूनी घोषित कर गिरफ्तार कर लिया और मोतिहारी की जेल में भेज दिया गया लेकिन अगले दिन छोड़ दिया गया । बाद में तत्कालीन उपराज्यपाल एडवर्ड गेट ने गाँधीजी को वार्ता के लिए बुलाया और किसानों के कष्टों की जाँच के लिए एक समिति के लिए एक कमेटी का गठन किया, जिसका नाम चम्पारण एग्रेरोरियन कमेटी पड़ा । गाँधी जी के कहने पर तीन कढ़िया व्यवस्था का अन्त कर दिया गया ।
खिलाफत आन्दोलन
प्रथम विश्वनयुद्ध की समाप्ति के बाद जब विजयी राष्ट्रों ने तुर्की सुल्तान के खलीफा पद को समाप्त कर दिया तो अंग्रेजों द्वारा कोई आश्वानसन न मिलने के कारण भारतीय मुसलमानों एवं राष्ट्रवादियों का गुस्सा भड़क उठा । फलतः मौलाना मोहम्मद अली एवं शौकत अली ने खिलाफत आन्दोलन शुरू किया । यह आन्दोलन १९१९-२३ ई. में हुआ ।
१६ जनवरी, १९१९ को पटना में हसन इमाम की अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें खलीफा के प्रति मित्र राष्ट्रों द्वारा उचित व्यवहार करने को कहा गया । अप्रैल, १९१९ ई. में पटना में शौकत अली आये और १९२० ई. तक पूरे बिहार में यह आन्दोलन फैल गया । इसके लिए उन्होंने मोतीहारी, छपरा, पटना, फुलवारी शरीफ में जनसभाओं को सम्बोधित किया ।
१९२२ ई. में यह आन्दोलन पूर्णरूपेण समाप्त हो गया । शचिन्द्रनाथ सान्याल ने १९१३ ई. में पटना में अनुशीलन समिति की शाखा की नींव रखी । ढाका अनुशीलन समिति के सदस्य रेवती नाग ने भागलपुर में और यदुनाथ सरकार ने बक्सर में युवा क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षित किया ।
होमरूल आन्दोलन
१९१६ ई. में भारत में होमरूल आन्दोलन प्रारम्भ हुआ था । श्रीमती एनी बेसेन्ट ने मद्रास में एवं बाल गंगाधर तिलक ने पूना में इसकी स्थापना की थी ।
बिहार में होमरूल लीग की स्थापना १६ दिसम्बर, १९१६ में हुई, इसके अध्यक्ष मौलाना मजहरूल हक, उपाध्यक्ष सरफराज हुसैन खान और पूर्गेन्दू नारायण सिंह तथा मन्त्री चन्द्रवंशी सहाय और वैद्यनाथ नारायण नियुक्त किये गये । एनी बेसेन्ट भी होमरूल के आन्दोलन के सम्बन्ध में दो-तीन बार पटना भी आयीं । इनका भव्य स्वागत किया गया । वर्तमान पटना कॉलेज के सामने के सड़क का नाम एनी बेसेन्ट रोड इन्हीं के नाम पर रखा गया है ।
चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन
बिहार का चम्पारण जिला १९१७ ई. में महात्मा गाँधी द्वारा भारत में सत्याग्रह के प्रयोग का पहला स्थल था
चम्पारण में अंग्रेज भूमिपतियों द्वारा किसानों पर निर्मम शोषण किया जा रहा था । जमींदारों द्वारा किसानों को बलात नील की खेती के लिए बाध्य किया जाता था । प्रत्येक बीघे पर उन्हें तीन कट्ठों में नील की खेती अनिवार्यतः करनी पड़ती थी । इन्हें तीन कठिया व्यवस्था कहा जाता था । बदले में उचित मजदूरी नहीं दी जाती थी । इसी कारण से किसानों एवं मजदूरों में भयंकर आक्रोश था । सन् १९१६ में लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल जो स्वयं जमींदार के आर्थिक शोषण से ग्रस्त थे, भाग लिया ।
२६ दिसम्बर, १९३८ को पटना में मुस्लिम लीग का २६वाँ अधिवेशन हुआ । २९ दिसम्बर, १९३८ को अखिल भारतीय मुसलमान छात्र सम्मेलन हुआ । ४ जनवरी, १९३२ को राजेन्द्र प्रसाद,अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजकिशोर प्रसाद, कृष्ण बल्लभ सहाय आदि नेतागण को गिरफ्तार किया गया । रैम्जे मैक्डोनाल्ड द्वारा हरिजन को कोटा की व्यवस्था से अस्त-व्यस्त हो गया । १२ जुलाई, १९३३ को सामुदायिक सविनय अवज्ञा के स्थान पर व्यक्तिागत सविनय अवज्ञा का प्रारूप तैयार किया गया । १९२७ ई. में पटना युवा संघ की स्थापना की गई ।
नंगी हड़ताल- ४ मई, १९३० को गाँधी जी की गिरफ्तारी के बाद स्वदेशी के प्रचार एवं विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया । छपरा के कैदियों ने वस्त्र पहनने से इंकार कर दिया । नंगे शरीर रहकर विदेशी वस्त्रों का विरोध किया गया ।
बेगूसराय गोलीकाण्ड एवं बिहार किसान आन्दोलन
२६ जनवरी, १९३१ को प्रथम स्वाधीनता दिवस को पूरे जोश से मनाने का निर्णय किया गया । रघुनाथ ब्रह्मचारी के नेतृत्व में बेगूसराय जिले के परहास से एक जुलूस निकाला गया । डीएसपी वशीर अहमद ने गोली चलाने का आदेश दे दिया । छः व्यक्तिय की घटना स्थल पर मृत्यु हो गई । टेदीनाथ मन्दिर के सामने गोलीकाण्ड हुआ था ।
१९१९ ई. में मधुबनी जिले के किसान स्वामी विद्यानन्द ने दरभंगा राज के विरुद्ध विरोध किया । १९२२-३३ ई. में मुंगेर में बिहार किसान सभा का गठन मोहम्मद जूबैर और श्रीकृष्ण सिंह द्वारा किया । १९२८ ई. में स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने प्रान्तीय किसान सभा की स्थापना की । इसकी स्थापना में कार्यानन्द शर्मा, राहुल सांकृत्यायन, पंचानन शर्मा, यदुनन्दन शर्मा आदि वामपंथी नेताओं का सहयोग मिला ।
स्वामी दयानन्द सहजानन्द ने ४ मार्च, १९२८ को किसान आन्दोलन प्रारम्भ किया । इसी वर्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल की बिहार यात्रा हुई और अपने भाषणों से किसानों को नई चेतना से जागृत किया । बाद में इस आन्दोलन को यूनाइटेड पोलीटीकल पार्टी का नाम दिया गया ।
१९३३ ई. में किसान सभा द्वारा जाँच कमेटी का गठन किया गया । कमेटी द्वारा किसानों की दयनीय दशा के प्रति केन्द्रीय कर लगाया गया । १९३६ ई. में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ था । इसके अध्यक्ष स्वामी सहजानन्द स्वामी थे और महासचिव प्रोफेसर एन. जे. रंगा थे ।
बिहार में मजदूर आन्दोलन
बिहार में किसानों के समान मजदूरी का भी संगठन बना । बिहार में औद्योगिक मजदूर वर्ग ने मजदूर आन्दोलन चलाया । १९१७ ई. में बोल्शेविक क्रान्ति एवं साम्यवादी विचारों में परिवर्तन के साथ-साथ प्रचार-प्रसार हुआ । दिसम्बर, १९१९ ई. में प्रथम बार जमालपुर (मुंगेर) में मजदूरों की हड़ताल प्रारम्भ हुई । १९२० ई. में एस. एन. हैदर एवं व्यायकेश चक्रवर्ती के मार्गदर्शन में जमशेदपुर वर्क्स एसोसिएशन बनाया गया । १९२५ ई. और १९२८ ई. के बीच मजदूर संगठन की स्थापना हुई । सुभाषचन्द्र बोस, अब्दुल बारी, जयप्रकाश नारायण इसके प्रमुख नेता थे ।
बिहार में संवैधानिक प्रगति और द्वैध शासन प्रणाली
बिहार प्रान्त का गठन १ अप्रैल, १९१२ में हुआ । इसके गठन के बाद १९१९ ई. को भारत सरकार का कानून लागू किया गया । द्वैध शासन की व्यवस्था बिहार में भी २० दिसम्बर, १९२० को प्रारम्भ हुई जिसकी अध्यक्षता आर. एन. मुधोलकर ने की । मौलाना मजरूलहक स्वागत समिति के अध्यक्ष बनाये गये । १९१६ ई. में पटना उच्च न्यायालय और १९१७ ई. में पटना विश्व्विद्यालय की स्थापना की गई । २० जनवरी, १९१३ को बिहार, उड़ीसा के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के नवगठित काउन्सिल की प्रथम बैठक बांकीपुर में हुई, जिसकी अध्यक्षता बिहार-उड़ीसा के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली ने की ।
७ फरवरी, १९२१ को बिहार एवं उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउन्सिल की प्रथम बैठक का उद्घा्टन हुआ जिसकी अध्यक्षता सर मुण्डी ने की ।
१ अप्रैल, १९३६ को बिहार से उड़ीसा प्रान्त अलग किया गया । पुराने गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट, १९१९ के एक सदनी विधानमण्डल की जगह नया कानून के अनुसार द्वि-सदनी विधानमण्डल स्थापित किया गया ।
बिहार में क्रान्तिकारी आन्दोलन
बंग भंग विरोधी आन्दोलन से बिहार तथा बंगाल में क्रान्तिकारी आन्दोलन प्रारम्भ हो गया । बिहार के डॉ. ज्ञानेन्द्र नाथ, केदारनाथ बनर्जी एवं बाबा ठाकुर दास प्रमुख थे । बाबा ठाकुर दास ने १९०६-०७ ई. में पटना में रामकृष्ण मिशन सोसायटी की स्थापना की और समाचार-पत्र के द्वारा दी मदरलैण्ड का सम्पादन एवं प्रकाशन शुरू किया । १९०८ ई. में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी नामक दो युवकों ने मुजफ्फरपुर के जिला जज डी. एच. किंग्स फोर्ड की हत्या के प्रयास में मुजफ्फरपुर के नामी वकील की पत्नीम प्रिग्ल कैनेडी की बेटी की हत्या के कारण ११ अगस्त, १९०८ को फाँसी दी गई । इस घटना के बाद भारत को आजाद कराने की भावना प्रबल हो उठी । खेती नाग, चुनचुन पाण्डेय, बटेश्वर पाण्डेय, घोटन सिंह, नालिन बागची आदि इस समय प्रमुख नेता थे ।
१९०८ ई. में ही नवाब सरफराज हुसैन खाँ की अध्यक्षता में बिहार कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ । इसमें सच्चिदानन्द सिंह, मजरूलहक हसन, इमाम दीपनारायण सिंह आदि शामिल थे । कांग्रेस कमेटी के गठन के बाद इसके अध्यक्ष इमाम हुसैन को बनाया गया ।
१९०९ ई. में बिहार कांग्रेस सम्मेलन का दूसरा अधिवेशन भागलपुर में सम्पन्न हुआ । इसमें भी बिहार को अलग राज्य की माँग जोरदार ढंग से की गई ।
१९०७ ई. में ही फखरुद्दीन कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त होने वाले प्रथम बिहारी बने तथा स्थायी पारदर्शी के रूप में इमाम हुसैन को नियुक्त किया गया । १९१० ई. में मार्लेमिण्टो सुधार के अन्तर्गत प्रथम चुनाव आयोजन में सच्चिदानन्द सिंह ने चार महाराजाओं को हराकर बंगाल विधान परिषद् की ओर से केन्द्रीय विधान परिषद् में विधि सदस्य के रूप में नियुक्त हुए । १९११ ई. में दिल्ली दरबार में जार्ज पंचम के आगमन में केन्द्रीय परिषद् के अधिवेशन के दौरान सच्चिदानन्द सिंह, अली इमाम एवं मोहम्मद अली ने पृथक बिहार की माँग की । फलतः इन बिहारी महान सपूतों द्वारा १२ दिसम्बर, १९११ को दिल्ली के शाही दरबार में बिहार और उड़ीसा को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाने की घोषणा हुई । इस घोषणा के अनुसार १ अप्रैल, १९१२ को बिहार एवं उड़ीसा नये प्रान्त के रूप में इनकी विधिवत् स्थापना की गई । बिहार के स्वतन्त्र अस्तित्व का मुहर लगने के तत्काल बाद पटना में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का २७वाँ वार्षिक सम्मेलन हुआ । मुगलकालीन समय में बिहार एक अलग सूबा था । मुगल सत्ता समाप्ति के समय बंगाल के नवाबों के अधीन बिहार चला गया । फलतः बिहार की अलग राज्य की माँग सर्वप्रथम मुस्लिम और कायस्थ ने की थी । जब लार्ड कर्जन ने बंगाल को १९०५ ई. में पूर्वी भाग एवं पश्चिामी भाग में बाँध दिया था तब बिहार के लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया एवं सच्चिदानन्द सिंह एवं महेश नारायण ने अखबारों में वैकल्पिक विभाजन की रूपरेखा देते हुए लेख लिखे थे जो पार्टीशन ऑफ बंगाल और लेपरेशन ऑफ बिहार १९०६ ई. में प्रकाशित हुए थे ।
इस समय कलकत्ता में राजेन्द्र प्रसाद अध्ययनरत थे वे वहाँ बिहारी क्लब के मन्त्री थे । डॉ. सच्चिदानन्द सिंह,अनुग्रह नारायण सिंह, हमेश नारायण तथा अन्य छात्र नेताओं से विचार-विमर्श के बाद पटना में एक विशाल बिहार छात्र सम्मेलन करवाया । यह सम्मेलन दशहरा की छुट्टी में पहला बिहारी छात्र सम्मेलन पटना कॉलेज के प्रांगण में पटना के प्रमुख शर्फुद्दीन के सभापतित्व में सम्पन्न हुआ था । इससे बिहार पृथक्करण आन्दोलन पर विशेष बल मिला । १९०६ ई. में बिहार टाइम्स का नाम बदलकर बिहारी कर दिया गया । १९०७ ई. में महेश नारायण का निधन हो गया । सच्चिदानन्द ने ब्रह्मदेव नारायण के सहयोग से पत्रिका का सम्पादन जारी रखा ।
बिहार प्रादेशिक सम्मेलन की स्थापना १२-१३ अप्रैल, १९०६ में पटना में हुई जिसकी अध्यक्षता अली इमाम ने की थी । इसमें बिहार को अलग प्रान्त की माँग के प्रस्ताव को पारित किया गया ।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन एवं नव बिहार प्रान्त के रूप में गठन
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । १८५७ ई. के विद्रोह का प्रभाव उत्तरी एवं मध्य भारत तक ही सीमित राहा । इस आन्दोलन में मुख्य रूप से शिक्षित एवं मध्यम वर्गों का योगदान रहता था ।
राष्ट्रीय चेतना की जागृति में बिहार ने अपना योगदान जारी रखा । बिहार और बंगाल राष्ट्रीय चेतना का प्रमुख केन्द्र रहा । सार्वजनिक गठन की १८८० ई. में नींव रखकर भारतीय जनता में राष्ट्रीयता की भावना को जगाया । १८८५ ई. में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हो चुकी थी । १८८६ ई. में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में बिहार के कई प्रतिनिधियों ने भाग लिया था । दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह कांग्रेस को आर्थिक सहायता प्रदान की थी ।
नव राज्य का गठन
रेग्यूलेटिंग एक्ट १७७४ ई. के तहत बिहार के लिए एक प्रान्तीय सभा का गठन किया तथा १८६५ ई. में पटना और गया के जिले अलग-अलग किये गये ।
१८९४ ई. में पटना से प्रकाशित समाचार-पत्र के माध्यम से बिहार पृथक्करण आन्दोलन की माँग की गई । इस पत्रिका के सम्पादक महेश नारायण और सच्चिदानन्द थे, जबकि किशोरी लाल तथा कृष्ण सहाय भी शामिल थे ।कुर्था थाना में झण्डा फहराने की कोशिश में श्याम बिहारी लाल मारे गये । कटिहार थाने में झण्डा फहराने में कपिल मुनि भी पुलिस का शिकार हुए ।
ब्रिटिश सरकार आन्दोलन एवं क्रान्तिकारी गतिविधियों से मजबूर होकर अपने शासन प्रणाली के नीति को बदलने लगी ।
इस बीच गाँधी जी ने १० फरवरी, १९४३ को २१ दिन का अनशन करने की घोषणा की । समाचार-पत्र में बिहार हेराल्ड, प्रभाकर योगी ने गाँधी जी की रिहाई की जोरदार माँग की । अक्टूबर, १९४३ के बीच लॉर्ड वेवेल वायसराय बनकर भारत आया । इसी समय २२ जनवरी, १९४४ को गाँधी जी की पत्नीा श्रीमती कस्तूरबा का देहान्त हो गया । मुस्लिम लीग ने बिहार का साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ कर विभाजन करो और छोड़ो का नारा दे रहा था । मुस्लिम लीग ने ४ फरवरी, १९४४ को उर्दू दिवस तथा २३ मार्च को पाकिस्तान दिवस भी मनाया गया । ६ मई, १९४४ को गाँधी जी को जेल से रिहा कर दिया । अनुग्रह नारायण सिंह, बाबू श्रीकृष्ण सिंह, ठक्कर बापा आदि नेताओं की गृह नजरबन्दी का आदेश निर्गत किये गये ।
जून, १९४५ में सरकार ने राजनैतिक गतिरोध को दूर करते हुए एक बार फिर मार्च, १९४६ ई. में बिहार में चुनाव सम्पन्न कराया गया । विधानसभा की १५२ सीटों में कांग्रेस को ९८, मुस्लिम लीग को ३४ तथा मोमीन को ५ सीटें मिलीं । ३० मार्च, १९२६ को श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा अन्तरिम सरकार का गठन का मुस्लिम लीग ने प्रतिक्रियात्मक जवाब दिया । देश भर में दंगा भड़क उठा जिसका प्रभाव छपरा, बांका, जहानाबाद, मुंगेर जिलों में था । ६ नवम्बर, १९४६ को गाँधी जी ने एक पत्र जारी कर काफी दुःख प्रकट किया । १९ दिसम्बर, १९४६ को सच्चिदानन्द सिंह की अध्यक्षता में भारतीय संविधान सभा का अधिवेशन शुरू हुआ । २० फरवरी, १९४७ में घोषणा की कि ब्रिटिश जून, १९४८ तक भारत छोड़ देगा ।
१४ मार्च, १९४७ को लार्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय बनाये गये । जुलाई, १९४७ को इण्डियन इंडिपेंडेण्ट बिल संसद में प्रस्तुत किया । इस विधान के अनुसार १५ अगस्त, १९४७ से भारत में दि स्वतन्त्र औपनिवेशिक राज्य स्थापित किये जायेंगे । बिहार के प्रथम गवर्नर जयरामदास दौलतराम और मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह बने तथा अनुग्रह नारायण सिंह बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री बने।
२६ जनवरी, १९५० को भारतीय संविधान लागू होने के साथ बिहार भारतीय संघ व्यवस्था के अनुरूप एक राज्य में परिवर्तित हो गया ।
१९४७ ई. के बाद भारत में राज्य पुनर्गठन में बिहार को क श्रेणी का राज्य घोषित किया लेकिन १९५६ ई. में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अन्तर्गत इसे पुनः राज्य के वर्ग । में रखा गया ।

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