मिथिला हिन्दी न्यूज :- भाजपा के विधायक हैं विनय बिहारी। पश्चिम चंपारण जिले के लौरिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनता ने उन्हें तीन बार विधान सभा भेजा है। पहली बार 12 हजार, दूसरी बार 18 हजार और तीसरी बार 30 हजार के मार्जिन से जीताया। गीत-संगीत और फिल्म की दुनिया से राजनीति की राह चलने वाले विनय बिहारी राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। बातचीत में उन्होंने अपनी संगीत से सत्ता तक की यात्रा के दौरान विभिन्न पड़ावों पर को लेकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि गीत लिखने और गाने का सिलसिला 1988 से शुरू हुआ। इसी दौर में उनका पहला एलबम आया ‘चंपारण के बाबू’। काफी चर्चा हुई। लोकप्रियता धीरे-धीरे गति पकड़ने लगी थी। 1992 में वे टी-सीरीज से जुड़ गये। इधर, राजनीतिक पार्टियों के लिए गाना लिखने लगे। गा भी लेते थे। 1995 के विधान सभा चुनाव में सभी प्रमुख पार्टियों के लिए गाना लिखा। पार्टी की नीति और जरूरत के हिसाब से शब्दों, बोलों और नारों का इस्तेमाल भी खूब होता था। एलबम और फिल्म के साथ राजनीतिक गानों ने विनय बिहारी की लोकप्रियता को ऊंचाई दी। 2002 के आसपास रामविलास पासवान ने उन्हें पार्टी से जुड़ने का मौका दिया और सांस्कृतिक प्रकोष्ठ का अध्यक्ष भी बनाया। इसके साथ ही चुनाव लड़ने में टिकट का भरोसा भी दिया। गीतकार विनय बिहारी के कदम राजनीति में बढ़े। फिल्मों के लिए लिखने का काम भी चलता रहा। इसी बीच फरवरी, 2005 का चुनाव आ गया। कांग्रेस और लोजपा के गठबंधन में लौरिया सीट कांग्रेस के हिस्से में चली गयी। विनय बिहारी कहते हैं कि इसकी सूचना तत्कालीन समाजवादी पार्टी के नेता ददन पहलवान को मिली। उन्होंने ‘साइकिल की सवारी’ का ऑफर दिया। लेकिन विनय बिहारी से मना कर दिया और लखनऊ शूटिंग के लिए चले गये। लखनऊ में एक दिन उन्हें मुलायम सिंह का बुलावा आया और चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भी दिया। नामांकन के लिए दो दिन ही बच रहे थे। मुलायम सिंह ने पार्टी का सिंबल और जहाज का टिकट देकर रवाना किया। विनय बिहारी ने लौरिया पहुंचकर नामांकन किया और चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे। नवंबर 2005 में भी सपा के टिकट पर चुनाव लड़े और शिकस्त खा गये।
बाद के दिनों वे राजद में शामिल हो गये। टिकट का भरोसा भी मिला। लेकिन फिर लौरिया सीट गठबंधन के फेर में उलझ गयी। यह सीट राजद के सहयोगी कांग्रेस के खाते चली गयी। 2010 में तीसरी बार विनय बिहारी ने निर्दलीय किस्मत आजमायी। दो चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे विनय बिहारी तीसरी बार में सबको पीछे छोड़ते हुए निर्वाचित हो गये। अब किस्मत इनके साथ हो गयी थी। 2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा को धकिया कर पैदल कर दिया था। तब उन्हें कुछ निर्दलीय विधायकों की जरूरत पड़ी। उस दौर में विनय बिहारी जदयू के लिए ‘संकटमोचन’ बन गये। उस समय के चार निर्दलीय विधायकों के साथ नीतीश सरकार को समर्थन दिया और बाद में मंत्री भी बने।
2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के पक्ष साथ खड़े रहे। चुनाव के पहले जीतनराम मांझी और भाजपा के बीच समझौते के तहत विनय बिहारी को लौरिया से भाजपा का टिकट दिया गया। दूसरी बार निर्वाचित हुए। 2020 में लौरिया से तीसरी बार भाजपा के टिकट पर निर्वाचित हुए।
विनय बिहारी की राजनीतिक यात्रा समय और परिस्थितियों के अनुसार करवट बदलती रही। वे पार्टी की ओर से उम्मीदवार रहे हों या निर्दलीय, जनता का भरोसा उन्हें मिलता रहा है। गीत-संगीत से सत्ता तक की यात्रा के राही विनय बिहारी अब भी सांस्कृतिक दुनिया को समृद्ध कर रहे हैं।