अभी पूरे देश में हिजाव को लेकर बबाल मचा हुआ है, इस पर हमने एक अध्यन से जानने का प्रयत्न किया है।हिजाब को लेकर एक धारणा है कि इसकी शुरुआत इस्लाम से हुई है। ऐसा नहीं है। प्राचीन मेसोपोटामिया और ग्रीक सभ्यताओं में संभ्रांत परिवारों की महिलाएं हिजाब पहनती थीं और यह उनके ऊंचे ओहदे का प्रतीक होता था। मेसोपोटामिया में विधिवत व्यवस्था थी कि कौन सी महिलाएं हिजाब पहन सकती हैं और कौन नहीं। स्पष्ट है कि इस्लाम के प्रादुर्भाव से पहले से ही हिजाब प्रचलन में था। इसी तरह बुरका, निकाब, अबाया जैसे शब्द कुरान में कहीं नहीं हैं। हिजाब शब्द भी कुरान में सात बार आया है, लेकिन उसका अर्थ इस पहनावे से संबंधित नहीं है। इस शब्द के कई अर्थ हैं, लेकिन उनमें से कोई भी महिलाओं के परिधान से जुड़ा नहीं है। पैगंबर मुहम्मद पहनावे में लज्जा की बात करते थे, लेकिन महिलाओं के लिए ऐसे कपड़ों की अनिवार्यता पूरी तरह से उनके द्वारा किए गए सुधारों की मूल भावना के विपरीत है।
हिजाब विवाद में नया ट्विस्ट, हाईकोर्ट से स्कूली पोशाक के रंग का हिजाब पहनने की अनुमति दिए जाने की मांग, दी गई ये दलीलें
दुर्भाग्य से मुस्लिम विद्वानों ने हिजाब और महिलाओं को लेकर स्पष्ट संदेश देने के मामले में अनदेखी की है। दुनियाभर में इसे लेकर अलग-अलग व्यवस्थाएं देखने को मिलती हैं। इस्लामिक देश भी इसे लेकर बहुत सख्त नहीं दिखता हैं। अजरबैजान, ट्यूनीशिया और तुर्की जैसे कई मुस्लिम देशों ने स्कूलों, विश्वविद्यालयों और सरकारी भवनों में हिजाब को प्रतिबंधित किया हुआ है। वहीं कट्टर इस्लामिक देश ईरान और अफगानिस्तान में हिजाब अनिवार्य है। कुछ देशों में अनिवार्य नहीं है, लेकिन महिलाएं इसका प्रयोग करती हैं। खेर जरूर मुस्लिम महिलाए जरूर हिजाब पहने ,आप स्वतंत्र है, लेकिन शिक्षा के मंदिर में जहां स्कूल प्रशासन द्वारा ड्रेस कोड लागू है तो आपको स्कूल के ड्रेस कोड को ही मानना चाहिए। वैसे हिजाब मामला अभी न्यालय में है अतः न्यालय के निर्णय को आने तक विवाद करना उचित नहीं है।