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स्तनपान न कराना या स्तनपान बहुत कम कराना हो सकता है रोग प्रतिरोधक क्षमता शिशु में कम

पंकज झा शास्त्री

आजकल सुनने को मिलता है कि आधुनिक माताएं अपने शिशु को स्तनपान नही कराती या बहुत कम कराती है और शिशु को बाहरी आहार पर निर्भर कर दिया जाता है जो बच्चो के जिवन के लिए उचित नहीं है और शिशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती हैं।प्रत्येक बच्चे को जीवन के शुरूआती वर्षों में उचित शारीरिक वृद्धि और विकास के लिए पर्याप्त पोषण, उचित देखभाल, प्यार और स्नेह की जरूरत होती है। स्तनपान न केवल शिशुकाल के दौरान बल्कि बाद के वर्षों में भी उसके स्वस्थ जीवन की नींव रखता है। 6 मास का होने तक बच्चे को केवल मां का दूध पिलाए जाने की जरूरत है, इसके अलावा उसे कुछ और नहीं पिलाया जाना चाहिए। आवश्यकता के अनुसार केवल टॉनिक या पूरक दवाइयां दी जा सकती हैं।जीवन के पहले 6 महीनों में मां का दूध शिशु को वे सभी पोषण तत्व उपलब्ध कराता है, जो उसके अधिकतम विकास और वृद्धि के लिए जरूरी होते हैं। इसलिए शिशु को पहले 6 महीनों के दौरान केवल स्तनपान कराया जाना चाहिए, अर्थात बच्चा केवल मां के दूध पर ही निर्भर रहे, उसे अन्य कोई तरल पदार्थ यहां तक की पानी भी नहीं पिलाया जाना चाहिए। पोषण के अलावा स्तनपान का सबसे मूल्यवान योगदान यह है कि इससे मां और बच्चे के बीच स्थायी सकारात्मक संबंध विकसित होते हैं, जिससे शिशु का भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास उसके मस्तिष्क वृद्धि पर सीधे ही प्रत्यक्ष प्रभाव डालने में सहायक होता है। स्तनपान शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास को तेजी से बढ़ाता है। 6 माह की आयु के बाद बच्चे को पर्याप्त तथा सुरक्षित पूरक खाद्य पदार्थ खिलाना आवश्यक हो जाता है, ताकि बच्चे की पोषक जरूरतों और स्तनपान के द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे पोषक तत्वों के मध्य अंतर को पूरा किया जा सके। इस प्रकार पहले 6 महीनों में स्तनपान समय पर शुरू करने और उसे केवल स्तनपान ही कराने के साथ-साथ 6 माह की उम्र के बाद पूरक पदार्थ खिलाने के साथ-साथ स्तनपान भी जारी रखना किसी बच्चे की उचित वृद्धि और विकास के प्रमुख आधार हैं। बच्चो के जीवन के साथ लापरवाही नहीं करना चाहिए।

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