संवाद
छपरा। सारण स्थानीय प्राधिकार सीट से राजद ने सुधांशु रंजन को अपना उम्मीदवार बनाया है सुधांशु रंजन ब्राह्मण जाति से आते हैं 24 सीटों के लिए होने जा रहे बिहार विधान परिषद सीट चुनाव में सुधांशु रंजन इकलौते ब्राह्मण उम्मीदवार है जिनपर राजद ने दांव लगाया है वह भी सारण प्रमंडल से जहा जातीय समीकरण की बात करें तो राजपूत व यादव का दबदबा रहा है एक बार इस सीट से अल्पसंख्यक समुदाय के सलीम परवेज चुनाव जीतने में सफल रहे थे। पिछली बार तो पिछली बार भूमिहार बिरादरी के सच्चिदानंद राय सलीम परवेज और सच्चिदानंद राय के बारे में चर्चा है कि दोनों धनकुबेर हैं और जीत के लिए पानी की तरह पैसा बहाया था। भाजपा ने सच्चिदानंद राय पर एक बार फिर से दांव लगाया है इस बार सच्चिदानंद राय के लिए राह आसान नहीं है महाराजगंज लोकसभा चुनाव के समय उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाग गई थी और इसी महत्वाकांक्षा का खामियाजा उन्हें बिहार विधान परिषद चुनाव में उठाना पड़ सकता है जदयू और भाजपा के बीच का तालमेल गरबर है जो वोटर है वह अब सच्चिदानंद राय से पिछले 5 वर्षों का हिसाब मांग रहे हैं नए जनप्रतिनिधि चुनाव जीत कर आए हैं और उनमें बदलाव की बड़ी ललक है।पंचायत प्रतिनिधियों के द्वारा चुने जाने वाले विधान परिषद सीट से सारण में राजद के द्वारा सुधांशु रंजन को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद चुनावी गणित पूरी तरह से उलट गया है चुनाव पूर्व किए गए सर्वेक्षण में 70 फ़ीसदी नव निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों सुधांशु रंजन के पक्ष में जबकि 10 फ़ीसदी प्रतिनिधि निवर्तमान विधान पार्षद सच्चिदानंद राय को दुबारा विधान पार्षद देखने देखना चाहते हैं 20 फ़ीसदी पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि वे अंतिम समय पर निर्णय लेंगे। नवनिर्वाचित पंचायत प्रतिनिधि मानते हैं कि सच्चिदानंद राय व्यापारी टाइप के राजनेता है चुनाव जीतने के बाद कभी क्षेत्र में नजर नहीं आते हैं सिर्फ दिल्ली और पटना में ही अपना चेहरा चमका के रहते हैं कभी भी सारण के पंचायतों में उनकी गतिविधि नहीं दिखी है दलालों और माफियाओं के माध्यम से अपनी विकास योजनाओं की राशि का बंदरबांट किए हैं जिसका खामियाजा उन्हें इस बार के चुनाव में उठाना पड़ सकता है जबकि सुधांशु रंजन बिना कोई प्रतिनिधि रहे एक आम राजद कार्यकर्ता के तौर पर पूरे जिले के पंचायत प्रतिनिधियों के सुख-दुख के भागी रहे हैं सभी से उनके मधुर संबंध है।