पंकज झा शास्त्री
आज कल विवाह मामलों में युवक एवं युवती अपने मन पसंद और इच्छा अनुसार विवाह को बढ़ावा दे रहे है तो कई माता पिता अपने बच्चों का विवाह अपने अनुसार करना चाहते है, बच्चे भी माता पिता को समझते हुए विवाह स्वीकारते है।कई बार व्यक्ति विवाह करने से यूं ही इनकार कर देता है कि अभी विवाह नहीं करना है । कई बार अच्छे रिश्ते के चक्कर में योग भी को टाल दिया जाता है। कुछ बच्चे अपने कैरियर बनाने के चक्कर में विवाह टाल देते है इसी तरह और भी कई कारण हो सकते है। आज देखा जाय तो अधिकतर माता पिता अपने बच्चों के विवाह को लेकर चिंतित है संतान का विवाह समय पर नहीं हो पा रहा है। कई बार रिश्ता बनते बनते विगर जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं तब विवाह किसी कारण टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। विवाह में विलम्ब होने के एक कारण बच्चो का मांगलिक होना भी है, इनके विवाह के योग 27,29,31,33,35 या 37वें वर्ष तक बनते हैं। पितृ दोष, कालसर्प दोष भी विवाह में विलम्ब कर सकता है। इसके अलावा जब सूर्य, मंगल या बुध लग्न या लग्न के स्वामी पर दृष्टि डालते हों और गुरु 12वें भाव में बैठा हो तो भी विवाह में देरी होती है। प्रथम या चतुर्थ भाव में मंगल हो और सप्तम भाव में शनि हो तो व्यक्ति की विवाह के प्रति उदासीनता के भाव रहते हैं।
प्रथम भाव, सप्तम भाव में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक न हो और चंद्रमा कमजोर हो तो विवाह में बाधाएं आती हैं। सप्तम भाव में शनि और गुरु की युति तो शादी देर से होती है। कई बार यह भी देखा गया है कि दोनों में से कोई एक ग्रह हो तो भी विवाह में अड़चन आती है। सप्तम भाव में बुध और शुक्र की युति हो तो भी विवाह तय होने में काफी अड़चने आती रहती है, जिसके चलते विवाह में विलंब हो जाता है। चंद्र की राशि कर्क से गुरु सप्तम हो तो विवाह में बाधाएं आती हैं। सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो, कोई शुभ ग्रह योगकारक नहीं हो तो विवाह में बाधाएं आती हैं या विवाह देर से होता है। यदि गुरु कमजोर या नीच का होकर बैठा हो, शत्रु भाव में या शत्रुओं के साथ बैठा हो तब भी विवाह में अड़चने आती हैं। अब जन्म कुंडली का अध्यन करके देखना जरूरी होता है कि जातक को किस कारण से विवाह में विलम्ब हो रही है उसी अनुसार उपाय करके ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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