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बसंत पंचमी सरस्वती पूजा आज , जानें पूजा का शुभ मुहूर्त कब से कब तक

पंकज झा शास्त्री 

इस बार बसंत पंचमी के लिए 5 फरवरी 2022, शनिवार का दिन विशेष है। इस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी जो श्री पंचमी, बसंत पंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन ज्ञान, बुद्धि, विद्या और संपूर्ण कला की देवी मां सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना किया जाता है। खासकर यह दिन छात्रों और कलाकारों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।बसंत पंचमी का पर्व इस वर्ष शनिवार के दिन पड़ रहा है. शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित है। पंकज झा शास्त्री के अनुसार।मकर राशि में ग्रहों की विशेष स्थिति देखने को मिल रही है- वर्तमान समय में मकर राशि में तीन ग्रहों की युति बनी हुई है। मकर राशि के स्वामी शनि देव है। जो वर्तमान समय में मकर राशि में ही विराजमान हैं। जहां पर वे बुध और सूर्य के साथ युति बना रहे।2022 में बसंत पंचमी पर तीन ग्रहों की युति मकर राशि में बनी हुई है।
वर्तमान समय में मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है।जबकि धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़े साती चल रही है. 5 राशियों पर शनि की विशेष दृष्टि है. जिन लोगों को शनि देव अशुभ फल प्रदान कर रहे हैं,उनके लिए 5 फरवरी का दिन विशेष है।इस दिन शनि देव और माता सरस्वती की पूजा करने से विद्यार्थियों को शिक्षा में आने वाली परेशानियों से राहत मिलेगी।ज्योतिष शास्त्र में सरस्वती जी को ज्ञान देवी और शनि देव को परिश्रम का कारक माना गया है। इस दिन से ऋतुराज बसंत का आगमन हो जाता है, मौसम सुहाना दिखने लगता है। पंकज झा शास्त्री ने बताया कि बसंत पंचमी के दिन रति और कामदेव की पूजा अर्चना का भी विशेष महत्व है, बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही सम्पूर्ण प्रकृति अपने यौवन रस में झूम उठता है। इस बीच फसलों के हरे पीले रंगो से धरती सजी होती है, इतना ही नही लोगो में भी बसंत पंचमी से ही रंग चढ़ने लगता है जो होली तक चलता है।
इस बार सरस्वती पूजा सिद्धि और साध्य योग के संयोग में मनाया जायेगा। मां सरस्वती के बारे में कहीं ब्रह्म की पुत्री तो कहीं ब्रह्म की पत्नी के रूप में बताया गया है, कोई पुख्ता जानकारी न मिलने के कारण बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन कई नए शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
सरस्वती माता की चार भुजाए हैं। इसमें एक हाथ में माला, दूसरे में पुस्तक और दो अन्य हाथों में वीणा बजाती नजर आती है। सुरों की अधिष्ठात्री होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा। इस दिन मां सरस्वती के साथ-साथ भगवान गणेश, लक्ष्मी, कॉपी, कलम और संगीत यंत्रों की पूजा अति फलदायी माना जाता है। देवी सरस्वती के सत्व गुण संपन्न एवं विद्या की अधिष्ठात्री हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस तिथि से अक्षराम्भ, विद्यारंभ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पूजा के बाद श्रद्धालु एक दूसरे को अबीर और गुलाल लगाएंगे।
इस दिन पीले, बसंती या सफेद वस्त्र धारण करें. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा की शुरुआत करें।  
- मां सरस्वती को पीला वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें और रोली मौली, केसर, हल्दी, चावल, पीले फूल, पीली मिठाई, मिश्री, दही, हलवा आदि प्रसाद के रूप में उनके पास रखें
- मां सरस्वती को श्वेत चंदन और पीले तथा सफ़ेद पुष्प दाएं हाथ से अर्पण करें।
- केसर मिश्रित खीर अर्पित करना सर्वोत्तम होगा।
- मां सरस्वती के मूल मंत्र ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः का जाप हल्दी की माला से करना सर्वोत्तम होगा।
- काले, नीले कपड़ों का प्रयोग पूजन में भूलकर भी ना करें।शिक्षा की बाधा का योग है तो इस दिन विशेष पूजा करके उसको ठीक किया जा सकता है।
इसवार सरस्वती पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 57 मिनट से दिन के 01 बजकर 22 मिनट तक अति उत्तम रहेगा।
वैसे अपने अपने क्षेत्रीय पंचांग अनुसार उपरोक्त समय सारणी में कुछ अंतर हो सकता है।
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