पटना। छपरा जिले के किसानों ने सब्जियों और मक्के की खेती करनी बंद कर दी है जानते हैं क्यों क्योंकि बंदर, जंगली सूअर और नील गायों की बढ़ी तादाद ने किसानों की फसल को व्यापक पैमाने पर पर बर्बाद करना शुरू कर दिया है इन जंगली जानवरों द्वारा बर्बाद होने वाले फसलों के लिए कोई क्षतिपूर्ति भी किसानों को नहीं मिलती है।नीलगाय के प्रकोप से देशभर के किसान परेशान हैं. बिहार के 31 जिले नीलगाय से प्रभावित हैं. इनमें से 20 जिले पूरी तरह जिसमें नालन्दा ज़िला भी शामिल है। और 11 जिले आंशिक रूप से प्रभावित हैं.नीलगाय झुंड में बहुत तेज दौड़ती हैं, जिससे सड़कों और रेलवे ट्रैक पर आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं.
नीलगाय किस प्रजाति का है इसको लेकर एकमत नहीं दिखाई देता। हालांकि 1992 में हुई फाइलोजेनेटिक स्टडी के अनुसार डीएनए की जांच से पता चला कि बोसलाफिनी (बकरी, भेड़ प्रजाति), बोविनी (गौवंश) और ट्रेजलाफिनी (हिरण प्रजाति) प्रजाति के जानवरों से मिलकर नीलगाय बनी है।
नीलगाय एक बड़ा जानवर है जो आमतौर पर खेतों में दिख जाता है। यह एक शक्तिशाली जानवर है जिसका शिकार भी किया जाता है। खेत की फसलों को नीलगाय नष्ट कर देती है। इसलिए नीलगाय को किसानों का दुश्मन भी कहते है। नीलगाय (Nilgai) प्राणी एशिया के अलावा कही और नही पाया जाता है। नीलगाय भारत के राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार राज्य में पायी जाती है। भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल देश में भी मिलती है।
नीलगाय का शरीर घोड़े के समान बड़ा होता है। वयस्क नीलगाय की ऊंचाई 5 फ़ीट तक होती है। इस जानवर की लंबाई 6 फ़ीट से भी ज्यादा होती है।नर नीलगाय मादा से शरीर और वजन में ज्यादा होता है। नर का वजन करीब 250 किलोग्राम तक होता है जबकि मादा का वजन 215 किलोग्राम तक होता है। . नर और मादा नीलगाय जून और सितम्बर के बीच में सबन्ध बनाते है। नर कम से कम दो मादाओं से संबंध बनाता है।करीब आठ महीनों की गर्भावस्था के बाद मादा नीलगाय बच्चे को जन्म देती है। बच्चों की संख्या 1 से 3 तक हो सकती है। बच्चा कुछ ही समय बाद अपने पैरो पर खड़ा हो जाता है। नीलगाय का औसत जीवनकाल 12 से 15 वर्ष होता है।
ऊंट की तरह नीलगाय भी बिना पानी पिए बहुत दिनों तक रह सकता है। नीलगाय की सूंघने और देखने की शक्ति तो अच्छी है लेकिन उसे सुनाई कम देता है। नीलगाय ज़्यादातर मैदान और पठारी इलाकों में रहता है यानी घने जंगलों में नहीं जाता। नर नीलगाय की गर्दन पर सफेद बालों का एक लंबा और घना गुच्छा रहता है और उसके पैरों पर घुटनों के नीचे एक सफेद पट्टी होती है।
बिहार में नीलगाय से खेतिहर को राहत देने की जो पहल की जा रही है वो यह है की बिहार सरकार राज्य के सभी नवनिर्वाचित मुखिया को एक नई जिम्मेवारी सौंपने जा रही है. सरकार ने किसानों की फसल और बागान नष्ट करने के साथ ही मानव जीवन को हानि पहुंचाने वाले जंगली जानवरों को पकड़ने की जिम्मेवारी नवनिर्वाचित मुखिया को देने का फैसला लिया है. वन एवं पर्यावरण विभाग के अधिकारी मुखिया से अनुमति लेकर ही नीलगायों और सूअरों को पकड़ने का अभियान चलाएंगे. दरअसल वन एवं पर्यावरण विभाग की तरफ से इसको लेकर पंचायती राज विभाग को एक पत्र लिखा गया था.
इस पत्र के माध्यम से पंचायती राज विभाग से सहमति मांगी गई थी जिसपर विभाग की ओर से सहमति प्रदान कर दी गई हैहै उससे अधिक बर्बादी पहुँचा रही है नीलगाय नीलगाय के प्रकोप से देशभर के किसान परेशान हैं. बिहार के 31 जिले नीलगाय से प्रभावित हैं. इनमें से 20 जिले पूरी तरह जिसमें छपरा ज़िला भी शामिल है। और 11 जिले आंशिक रूप से प्रभावित हैं.नीलगाय झुंड में बहुत तेज दौड़ती हैं, जिससे सड़कों और रेलवे ट्रैक पर आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं.
नीलगाय किस प्रजाति का है इसको लेकर एकमत नहीं दिखाई देता। हालांकि 1992 में हुई फाइलोजेनेटिक स्टडी के अनुसार डीएनए की जांच से पता चला कि बोसलाफिनी (बकरी, भेड़ प्रजाति), बोविनी (गौवंश) और ट्रेजलाफिनी (हिरण प्रजाति) प्रजाति के जानवरों से मिलकर नीलगाय बनी है।
नीलगाय एक बड़ा जानवर है जो आमतौर पर खेतों में दिख जाता है। यह एक शक्तिशाली जानवर है जिसका शिकार भी किया जाता है। खेत की फसलों को नीलगाय नष्ट कर देती है। इसलिए नीलगाय को किसानों का दुश्मन भी कहते है। नीलगाय (Nilgai) प्राणी एशिया के अलावा कही और नही पाया जाता है। नीलगाय भारत के राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार राज्य में पायी जाती है। भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल देश में भी मिलती है।
नीलगाय का शरीर घोड़े के समान बड़ा होता है। वयस्क नीलगाय की ऊंचाई 5 फ़ीट तक होती है। इस जानवर की लंबाई 6 फ़ीट से भी ज्यादा होती है।नर नीलगाय मादा से शरीर और वजन में ज्यादा होता है। नर का वजन करीब 250 किलोग्राम तक होता है जबकि मादा का वजन 215 किलोग्राम तक होता है। . नर और मादा नीलगाय जून और सितम्बर के बीच में सबन्ध बनाते है। नर कम से कम दो मादाओं से संबंध बनाता है।करीब आठ महीनों की गर्भावस्था के बाद मादा नीलगाय बच्चे को जन्म देती है। बच्चों की संख्या 1 से 3 तक हो सकती है। बच्चा कुछ ही समय बाद अपने पैरो पर खड़ा हो जाता है। नीलगाय का औसत जीवनकाल 12 से 15 वर्ष होता है।
ऊंट की तरह नीलगाय भी बिना पानी पिए बहुत दिनों तक रह सकता है। नीलगाय की सूंघने और देखने की शक्ति तो अच्छी है लेकिन उसे सुनाई कम देता है। नीलगाय ज़्यादातर मैदान और पठारी इलाकों में रहता है यानी घने जंगलों में नहीं जाता। नर नीलगाय की गर्दन पर सफेद बालों का एक लंबा और घना गुच्छा रहता है और उसके पैरों पर घुटनों के नीचे एक सफेद पट्टी होती है।
बिहार में नीलगाय से खेतिहर को राहत देने की जो पहल की जा रही है वो यह है की बिहार सरकार राज्य के सभी नवनिर्वाचित मुखिया को एक नई जिम्मेवारी सौंपने जा रही है. सरकार ने किसानों की फसल और बागान नष्ट करने के साथ ही मानव जीवन को हानि पहुंचाने वाले जंगली जानवरों को पकड़ने की जिम्मेवारी नवनिर्वाचित मुखिया को देने का फैसला लिया है. वन एवं पर्यावरण विभाग के अधिकारी मुखिया से अनुमति लेकर ही नीलगायों और सूअरों को पकड़ने का अभियान चलाएंगे. दरअसल वन एवं पर्यावरण विभाग की तरफ से इसको लेकर पंचायती राज विभाग को एक पत्र लिखा गया था.
इस पत्र के माध्यम से पंचायती राज विभाग से सहमति मांगी गई थी जिसपर विभाग की ओर से सहमति प्रदान कर दी गई है. .