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पश्चिम बंगाल से आती है बार बालाएं दर्दनाक है इनकी दास्तान

अनूप नारायण सिंह 


उत्तर बिहार में पांच हजार से ज्यादा आर्केस्ट्रा ग्रुप संचालित है। छपरा सीवान गोपालगंज बेतिया मोतिहारी शिवहर सीतामढ़ी मुजफ्फरपुर वैशाली में इनकी तादाद ज्यादा है शायद ही कोई ऐसा मोड़ बाजार हो जहां पर दो चार आर्केस्ट्रा ग्रुप का कार्यालय नहीं है। छपरा जिले के जनता बाजार में तो इनकी तादाद सैकड़ों में है।जनता बाजार पहले कई कारणों से जाना जाता था अब पूरे उत्तर बिहार ही नहीं संपूर्ण बिहार में इन आर्केस्ट्रा ग्रुप के बाजार के रूप में जाना जाता है यहां संचालित होने वाले ग्रुपों में काम करने वाली लड़कियां यही स्थाई रूप से बस गई है जिनकी तादाद हजारों से ऊपर है। आर्केस्ट्रा में काम करने वाली लड़कियों को अब बार डांसर कहा जाता है यह लड़कियां पश्चिम बंगाल के कई जिलों से थोक के भाव में अपने नृत्य कला का प्रदर्शन करने दलालों के माध्यम से बिहार आती है। जहां उनकी उम्र सुंदरता और डिमांड के हिसाब से 1 दिन के स्टेज शो का रेट तय किया जाता है न्यूनतम मजदूरी ₹500 से लेकर ₹8000 तक का होता है। इनके रहने और खाने की व्यवस्था ग्रुप संचालकों के द्वारा किया जाता है। जो लड़कियां एक बार संचालकों के चंगुल में फंस जाती हैं वह चाह कर भी वापस नहीं लौट पाती है। सूत्र बताते हैं कि पश्चिम बंगाल से लड़कियों को दलाल यह कहकर बिहार लाते हैं कि यहां उन्हें नृत्य करना है और यहां उनका काफी सम्मान है जबकि स्थितियां उलट होती है। संचालक उनका पूरा मेहनत आना नहीं देते कि अगर मेहनत आना मिलेगा तो या तो वह किसी दूसरे ग्रुप में चली जाएंगी जहां उन्हें ज्यादा पैसा मिलेगा या वापस अपने घर लौट जाएंगे इस कारण से उनका पैसा रोक कर रखे रहते हैं और इतना मजबूर कर देते हैं कि वह जो चाहते हैं उन्हें वही कहना करना पड़ता है। कई जिलों में या सर्कुलर जारी किया गया है कि ऐसे बार डांसरों के ग्रुप चलाने वालों को निबंधन कराना है पर यह आंकड़ा कितना है यह किसी के पास नहीं है जाहिर सी बात है कि निबंधन नहीं होता है जहां कहीं भी इनका कार्यक्रम होना होता है सरकारी आदेश के अनुसार स्थानीय थाने को भी सूचना देनी होती है पर हमने दर्जनों थाने की फाइलें खंगाल ली पर इस सीजन में उन इलाकों में सैकड़ों की तादाद में शो हुए पर किसी भी थाने में कोई सूचना नहीं थी। भोजपुरिया इलाके में शादी समारोह या किसी भी अवसर पर बार डांसरों का नाच कराने की एक ऐसी कुप्रथा चल पड़ी है जिसे सोशल स्टेटस समझे जाने लगा है हद तो तब हो गई है कि गोपालगंज से छपरा से कई ऐसे वीडियो सामने आए जब अंतिम यात्रा में भी इन्हें नचाया जा रहा है वहीं का क्रेज है पर इसका एक दूसरा पक्ष भी है कि जहां कहीं भी इनके नृत्य होते हैं माहौल इतना उन्मादी हो जाता है कि मारपीट जैसी घटनाएं सामान्य है। पश्चिम बंगाल से आकर आर्केस्ट्रा संचालकों के हाथों की कठपुतली बन गई ऐसी ही एक लड़की से हमने बातचीत की जिसके वृतांत में दर्द इतना था कि लिखते समय कई बार कलम रुकी कई बार मानवता शर्मसार हुई और कई बार यह सोचने को हम विवश हुए कि क्या हम उसी सभ्य समाज में रहते हैं जो लीपे पुते चेहरे वाले नर्तकी ऊपर हजारों नोट उड़ाते हैं पर दिन के उजाले में इन्हें देख कर मुंह मोड़ लेते हैं इनके दर्द को देखने वाला कोई नहीं होता है न सरकार न प्रशासन और ना आम जनता की सहानुभूति। पूजा नाम की लड़की जनता बाजार के ग्रुप में 50000 महीने पर काम करने आई थी और पिछले 2 वर्षों से हालात ऐसे हुए हैं कि ना उसे पैसा मिलता है और ना ही वापस लौट सकती है। पूजा ने बताया कि वह और उसकी जैसी लड़कियां अपने परिवार के लिए कामासूत है माता-पिता की सहमति से गरीबी के कारण बिहार आ जाती हैं उनके इलाके की लड़कियां यहां काम करती हैं और घर पर पैसा भेजती है घरवालों को लगता है कि काफी सेफ काम है यहां नाच गाकर पैसा कमाया जा सकता है पर यहां स्थितियां काफी विकट है। सहानुभूति के नाम पर हर कोई फायदा ही उठाना चाहता है किसी को अपना दर्द कह नहीं सकते।

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