पंकज झा शास्त्री
मिथिलांचल के लोकपरमपराओ एवं आस्था का महा पर्व जूडिशीतल इसवार 15 अप्रैल को मनाई जाएगी जबकि सत्तू पर्व 14 अप्रैल, गुरुवार को मनाई जा रही है।
मान्यता है कि जुड़ शीतल त्योहार को लेकर घर की महिलाएं एक दिन पूर्व संध्या या रात्रि में यानि सत्तू पर्व के दिन बडि-भात, सहिजन की सब्जी, आम की चटनी बनाती है।इसके बाद जूडिशीतल के दिन स्नान करके अपने कुल देवता को बासी बडी चावल, दही, आम की चटनी अर्पण करते है और उपरान्त इनसे चूल्हे का पूजन किया जाता है साथ ही सारे दुखों से छूटकारा व परिवार में शीतलता बनाए रखने की ईश्वर से प्रार्थना करती है। इसके बाद सभी परिवार के सदस्य मिलकर प्रसाद पाते है।
सहर के जाने माने पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि जुड़शीतल के दिन घर के बड़े बुजुर्ग अपने से छोटे उम्र के सदस्यों के माथे पर बासी जल डाल कर उन्हे शीतलता रहने की आशीर्वाद देते है। वहींं इस दिन दिन भर चूल्हा नहीं जलाकर उसे ठंडा रखा जाता है और बासी बने भोजन से चूल्हा का पूजन किया जाता है
जुडि शीतल पर्व से पूर्व दिन में लोग चने से बने सत्तू कुल देवता को अर्पण करने के उपरान्त परिवार के सभी सदस्य मिलकर सत्तू खाते है, जिसे सत्तू संक्रांति या सतु पर्व के रूप में मनाया जाता है। जुड़ शीतल के दिन घर के दरवाजे एवं आंगन में बासी जल का छिड़काव करते है। घर के बच्चे एवं पुरुष बाग बगीचे, खेत खलिहान में भी जल का छिड़काव करके आते है। इस दिन मिट्टी कीचड़ शरीर में एक दूसरे को लगाने का खेल करते है, कई जगह कुस्ती खेलने का भी आयोजन होता है हांलाकि मिट्टी लगाने और कुस्ती की परंपरा लगभग अब देखने को बहुत कम ही मिलता है। पंडित पंकज झा शास्त्री का कहना है कि
अगर हम वैज्ञानिक दृष्टि से समझे तो इस समय गर्मी बढ़ने लगती है और जुड़शीतल से जुड़े समाग्री शीतलता को प्रदान करने वाली होती है। वहीं पेड़ पौधों में जल डालने या छिड़कने का कारण कि हमे तेज गर्मियों से बचाकर शीतल हवा प्रदान करे। इस दिन सत्तू और ठंडा जल भरकर पीने बाला समाग्री जरूर दान करना चाहिए।