नवरात्रि के सातवे दिन सप्तमी तिथि में नवपत्रिका पूजा का विशेष महत्व होता है।नबपत्रिका पूजा में नौ पौधों की पत्तियों को मिलाकर बनाए गए गुच्छे जो सप्तमी के पूर्व संध्या में बिल्व वृक्ष के साथ पूजा अर्चना करके संयोजित कर भगवती को भगवती को धरातल पर आने हेतु न्योता दिया गया, उसे पूजा की जाती है। और डोली में नवपत्रिका जो भगवती के नौ स्वरूप का प्रतीक माना जाता है। उसे पूजा पंडाल के पास लाकर महा स्नान करा कर विशेष पूजा उपरान्त दुर्गा प्रतिमा के पास विधिवत रखा गया। इसके साथ ही मां के दर्शन हेतु भक्तो के लिए दर्शन हेतु मां का दरबार खुल गया।
इस दिन मां काली जिसे काल रात्रि भी कहा जाता ह की पूजा अर्चना की गई देवी के नौ स्वरूप में से एक कालरात्री का रूप काफी रौद्र है लेकिन उनका दिल बेहद ही कोमल है। पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया की कालरात्री माता की पूजा जो भी भक्त दिल से करता है, उसपर मां की विशेष कृपा बनी रहती है. इसके साथ ही देवी कालरात्रि अज्ञानता का नाश कर अधंकार मे रोशनी लाती हैं। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं।इनकी पूजा करने से ग्रह-बाधाओं की समस्या भी दूर हो जाती है. इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होने की संभावना कम होती है इनकी कृपा से सभी भक्त भय-मुक्त हो जाता है।
देवी कालरात्रि के चार हाथ हैं. उनकेके एक हाथ में माता ने खड्ग (तलवार), दूसरे में लौह शस्त्र, तीसरे हाथ वरमुद्रा और चौथे हाथ अभय मुद्रा में है. मां कालरात्रि का वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है।
पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कालरात्रि की पूजा करने के लिए श्वेत या लाल वस्त्र धारण करना चाहिए। देवी कालरात्रि की विशेष पूजा सप्तमी दिन के रात्रि में यदि निशित काल रात्रि में अष्टमी तिथि होती है तो उस समय किया जाता है, जिसे महा निशा पूजा के नाम से जाना जाता है। यह रात्रि मंत्र तंत्र सिद्धि हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, कहा जाता है की वे लोग बहुत भाग्यशाली होते है जो निशा पूजा में सम्मलित होते हैं और प्रसाद पाते है।
पंडित पंकज झा शास्त्री ने कहा
यदि कोई व्यक्ति अपने घर में निशा पूजा करता है तो पूजा करने के लिए सबसे पहले एक चौकी पर मां कालरात्रि का चित्र या मूर्ति विधिवत स्थापित किया जाता है इसके बाद मां को कुमकुम, लाल पुष्प, रोली आदि चढ़ाया जाता है. माला के रूप में मां को नींबुओं की माला चढ़ाना शुभ माना गया है और उनके आगे तेल का दीपक जलाकर उनका पूजन करना होता है।मां कालरात्रि को लाल फूल अर्पित करना चाहिए। मां के मंत्रों का जाप करना चाहिए या सप्तशती का पाठ चाहिए। मां को धूप व दीप से आरती उतारने के बाद उन्हें प्रसाद का भोग लगाया जाता है. अब मां से जाने अनजाने में हुई भूल के लिए माफी भी मांगनी चाहिए।मां कालरात्रि दुष्टों का नाश करके अपने भक्तों को सारी परेशानियों व समस्याओं से मुक्ति दिलाती है।इनके गले में नरमुंडों की माला होती है. नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से भूत प्रेत, राक्षस, अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि सभी नष्ट होना अति प्रबल होता है।
मां कालरात्रि को लोंग, कालीमिर्च जरूर अर्पण करना चाहिए।वैसे नकारात्मक शक्तियों से बचने के लिए गुड़ का भोग लगा सकते हैं. इसके आलावा नींबू काटकर भी मां को अर्पित करना लाभकारी होता है। निष्ठा के साथ पूजा अर्चना करने पर मां अपने भक्तों की जरूर सुनती हैं।