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शिखर से शून्य की ओर.... समझिए नीतीश कुमार के राजनीति को

अनूप नारायण सिंह 

तमाम आलोचनाओं के बावजूद बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बड़ा समर्थक वर्ग है वे एक ऐसे कट्टर राजनेता है जो अपने कमिटमेंट पर काफी हद तक खड़े उतरते हैं बात चाहे बिहार को विकास की पटरी पर लाने की हो या शराबबंदी जैसे कानून को कठोरता से लागू करने की जिस नीतीश कुमार में पूरा बिहार प्रधानमंत्री की छवि देख रहा था अब वही छवि धीरे-धीरे टूटता जा रहा है कुनबा बिखरता जा रहा है जनाधार घटता जा रहा है देश में जिस तरह से मोदी लहर ने कई क्षेत्रीय पार्टियों और राजनेताओं का खेल बिगाड़ा है उसमें बिहार कि जदयू भी शामिल है जदयू में नीतीश कुमार के बाद सेकेंड लाइन का नेतृत्व इतना मजबूत नहीं सब एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं बिहार की बहुसंख्यक जनता शराबबंदी कानून से खुश है पर जिस तरह से पुलिस प्रशासन माफिया गठजोड़ ने बिहार में शराब का एक बड़ा सिंडिकेट कायम कर लिया है इससे लोग दुखी है। शराब बिक भी रही है और पीने वाले पी भी रहे हैं सरकार बड़ी मछलियों को पकड़ने में नाकाम है। बात चाहे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली मांग की हो या बिहार के लिए स्पेशल पैकेज कि इन दोनों मोर्चे पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कटघरे में हैं।बिहार में गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछाया गया है बिजली की व्यवस्था दुरुस्त हुई है भवनों का निर्माण हुआ है इसमें कोई शक नहीं पर बाढ़ बेरोजगारी और सरकारी शिक्षा की स्थिति जस की तस तस हैं । 2015 में भाजपा का साथ छोड़कर राजद के साथ जाना नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी गलती के रूप में अंकित है उसके बाद नीतीश कुमार बिहार की जनता की नजर में विश्वसनीय राजनेता नहीं रहे बिहार की आवाम के दिलों दिमाग में यह बात बैठ गया कि अब यह भी कुर्सी के लोभी हैं हालांकि बाद में उन्होंने राजद के साथ भी पलटी मार दी अब कब किसके साथ जाएंगे कोई नहीं कह सकता पर भरोसा दोनों तरफ से टूट चुका है बिहार की राजनीति तिराहे पर खड़ी है जहां लोकप्रियता के पायदान पर तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से आगे निकल चुके हैं भाजपा के पास जनाधार तो है पर कोई बड़ा चेहरा नहीं इस कारण से अभी कुनबा वहां भी बिखरा बिखरा नजर आ रहा है ।

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