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आरसीपी पर बिहार में सरकार का दारोमदार!

अनूप नारायण सिंह 
रामचन्द्र बाबू मतलब आरसीपी सिंह मुश्किल में हैं.आरसीपी की कम फ़ज़ीहत नहीं है कि उनके नाम की चर्चा हो रही है.कल तक आरसीपी तय करते थे,कौन राज्यसभा जायेगा और कौन नहीं.ग़ुरूर तो इतना था कि एक बार अपने ही पार्टी के एमएलसी मौलाना ग़ुलाम रसूल बलयावी के बारे में अज्ञान बनते हुए पूछा था-‘कौन बलयावी’?
नीतीश कुमार ने पूरी पार्टी आरसीपी के हवाले कर दी थी.सारा फैसला आरसीपी का होता था,नीतीश सिर्फ लागू करते थे.आज उसी आरसीपी का फैसला अटका पड़ा है.मामला सिर्फ आरसीपी का होता तो फैसला कब का सुना दिया जाता.आरसीपी के साथ गठबंधन का मामला भी फंसा है.पार्टी ने यदि राज्यसभा की उम्मीदवारी पलट दी मतलब बिहार में सरकार भी पलटेगी?आरसीपी जदयू कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री हैं.रिपीट नहीं होने से आरसीपी का मंत्री पद भी चला जायेगा.यानी,जदयू भाजपा से पंगा लेगा?आरसीपी के बारे में कहा जाता है कि पार्टी को गुमराह कर मंत्री बन गये.नीतीश को गुमराह करने का उन पर एक और आरोप है.नागरिक संशोधन विधेयक के समर्थन में राज्यसभा में जदयू द्वारा वोटिंग आरसीपी के कहने पर हुआ था.बाद में नीतीश कुमार ने उलेमा के एक प्रतिनिधिमंडल से कहा था कि आंख का ऑपरेशन होने की वजह से वह नागरिकता संशोधन क़ानून को ठीक से नहीं पढ़ पाये थे.

आरसीपी जदयू पर कुंडली मार कर बैठे थे.उनके कहने पर ही नीतीश ने रणनीतिकार प्रशांत किशोर को पार्टी से निकाल दिया.सीएम हाउस जाने से पहले नेताओं-कार्यकर्ताओं को आरसीपी के दरबार में सलामी पेश करना ज़रूरी था.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नेताओं-कार्यकर्ताओं से दूर होते गये,आरसीपी की महफ़ील मज़बूत होते गयी.जदयू में आरसीपी इतने सर्वशक्तिमान हो गये कि जदयू में टूट की भी खबरें उड़ती रही.कहा जाता रहा कि आरसीपी को इग्नोर करना नीतीश कुमार को महंगा पड़ सकता है.जो गलती लालू प्रसाद ने रंजन यादव की शक्ति प्रदान कर की थी,वही नीतीश कुमार ने किया.राजद की हुकूमत में रंजन यादव का भी दरबार अलग से सजता था.

पार्टी में पैरेलल लीडरशिप टकराव को जन्म देता है.कार्यकर्ता दुविधा में रहते हैं.जब मामला हाथ से निकलता दिखा तो जदयू ने सबसे पहले पार्टी कार्यक्रम में नीतीश को छोड़ किसी और नेता की तस्वीर लगाने पर रोक लगायी.आरसीपी को जदयू में नम्बर दो का नेता माना जाता था.अब उनकी हैसियत वैसी नहीं है.पार्टी तोड़ने की भी नहीं.आरसीपी सिंह ने शक्ति प्रदर्शन के तौर पर अपने गांव मुस्तफ़ाबाद में ईद मिलन कार्यक्रम रखा था,हाशिये पर रहने वाले कार्यकर्ता तो जुटे मगर पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं गया.वह भी जो दिन-रात आरसीपी सिंह की दरबारी करते थे.उन्होंने भी किनारा कर लिया.आहिस्ता-आहिस्ता आरसीपी की पार्टी में हैसियत कम करने के बाद नीतीश कुमार निर्णायक फैसला लेने के मूड में आ गये हैं.यदि आरसीपी को राज्यसभा भेजना होता तो कल हंगामी बैठक बुलाने की जरूरत नहीं थी.पूर्व में बिना बैठक के आरसीपी को राज्यसभा भेजा जाता रहा है.मगर,अभी भी यह फैसला इतना आसान नहीं है.आरसीपी को ना . . . मतलब भाजपा से कुट्टी.मतलब बिहार में सरकार पलट भी सकती है?
शुक्रवार को लालू प्रसाद के सत्रह ठिकानों पर सीबीआई छापा के बाद भी जदयू और राजद के हालिया रिश्तों में कोई बदलाव नहीं दिख रहा.इफ़्तार पार्टी से बढ़ी नज़दीकियां अभी भी पटरी पर हैं.जातीय जनगणना को लेकर बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि नीतीश के लिए अब पीछे हटना मुश्किल है.यही वजह है कि छापामारी पर जहां भाजपा लालू परिवार पर आक्रामक है,वहीं जदयू ने चुप्पी साध रखी है.अशोक चौधरी ने बयान दिया भी तो बच बचाव करके.सारी बातों के अलावा,कहा जा रहा है कि घुमा फिरा कर नीतीश आरसीपी को ही राज्यसभा भेज देंगे.ऐसा होने पर राजग गठबंधन पर कोई आंच नहीं आने वाली. . .

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