पटना।सारण के लाल जिन्होंने असम को बनाया अपनी राजनीतिक प्रमुख भूमि बने केंद्रीय मंत्री
अनूप नारायण सिंह
पटना। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व मतंग सिंह की प्रथम पुण्यतिथि पर हम आपको बताने जा रहे हैं बिहार के छपरा जिले के तरैया विधानसभा क्षेत्र के अकुचक के मूल निवासी मतंग सिंह के जीवन के अनछुए पहलुओं को जो असम से राज्यसभा के सदस्य बने और पीवी नरसिम्हा राव में संसदीय कार्य मंत्री। राजा साहब के नाम से देश की राजनीति में मशहूर राजा मतंग सिंह संघर्ष का वह नाम था जिसने शून्य से शुरुआत कर शिखर तक का सफर तय किया और इस सफर में उनका खुद का परिश्रम ही उनके लिए सबसे बड़ा संभल संघर्षों के तौर से और निखरने वाले राजा मतंग सिंह ने असम को अपने राजनीतिक कार्य क्षेत्र के रूप में विकसित किया 1992 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय संसदीय राज्य मंत्री बनाया गया विलक्षण प्रतिभा के धनी राजा मतंग सिंह कई मीडिया हाउसों के संस्थापक थे सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में उनकी कोई सानी नहीं थी राजनीति में वह कांग्रेस में थे पर सभी दलों में उनके मित्र थे।
मतंग सिंह एक ऐसा नाम जो रहने वाला तो बिहार का था, लेकिन उसकी राजनीति असम के तिनसुकिया से लेकर गुवाहाटी और दिल्ली के राज दरबार तक चमकती रही।छपरा के रहने वाले मतंग सिंह ने असम से दिल्ली तक लहराया परचम।मतंग सिंह का जन्म असम के ही तिनसुकिया जिले में हुआ था। उनका जन्म 1962 में हुआ था। उनके पिता का नाम एसपी सिंह और माता का नाम रानी रुक्मिनी सिंह था। हालांकि कुछ लोग उनका जन्म बिहार के उनके गांव में भी होने का दावा करते हैं। दरअसल असम में मूल निवासी और बाहरी का विवाद इतना अधिक रहा है कि वहां रहने वाले बिहारियों को हमेशा यह साबित करना पड़ता है कि वे यहीं के रहने वाले हैं। वे असम में कई मीडिया कंपनियों और होटलों के मालिक थे।वे सारण जिले के तरैया प्रखंड के आकुचक गांव के मूल निवासी थे। मतंग सिंह असम की राजनीति में बड़ा चेहरा बन कर उभरे थे। पीवी नरसिंह राव सरकार में जब उन्हें संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाया गया तो पूरे देश के लोगों ने उन्हें जाना। नरसिंह राव की सरकार में उनकी ताकत और हैसियत अचानक बढ़ी। राजीव गांधी ने मतंग सिंह की सियासी संभावना को पहचाना था और उन्होंने ही पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार में उनको जगह दिलाई। मतंग को पीएमओ से जुड़ा मंत्रालय मिला वे प्रधानमंत्री के खासमखास बन गए। वे कई मौके पर नरसिम्हा राव के लिए संकट मोचक की भूमिका में भी रहे।पीवी नरसिंह राव की सरकार चली गई तो मतंग सिंह की राजनीति भी धीरे- धीरे सुस्त पड़ गई। लेकिन पीएमओ का मंत्रालय संभालते हुए उन्होंने जो पकड़ सिस्टम और अफसरशाही पर बनाई, मतंग सिंह की राजनीति असम के ही तिनसुकिया जिले से शुरू हुई। इसे मिनी बिहार भी कहा जाता है। अब यहां बिहारियों की तादाद पहले से कम हो गई है, लेकिन एक वक्त था कि यहां से बिहारी ही विधायक और मंत्री लगातार बनते थे। इसी सीट से विधायक और असम सरकार में परिवहन मंत्री रहे शिव शंभू ओझा मूलत: बिहार के भोजपुर (आरा) जिले के रहने वाले थे। इस बार लालू प्रसाद यादव की पाटी राजद ने इसी सीट से हीरा देवी चौधरी, जो मूलत: बिहार के भागलपुर की रहने वाली हैं, और शादी के बाद असम शिफ्ट हुईं, को अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि वह चुनाव हार गईं। वे कांग्रेस से जुड़ गए। 1990 से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत मानी जाती है। 1991 में उन्हें असम कांग्रेस मजदूर सेल का अध्यक्ष बनाया गया। राजीव गांधी से नजदीकी संबंध थे। 1992 में कांग्रेस ने उन्हें असम से राज्यसभा में भेज दिया।राजीव गांधी के बाद पीवी नरसिंह राव को कांग्रेस में पकड़ मजबूत बनाने में मतंग सिंह का खूब सहयोग मिला। दोनों करीब आए। इसके बाद नरसिंह राव ने उन्हें अपनी सरकार में मंत्री बनाया। वे 1994 से 1996तक केंद्र सरकार में मंत्री रहे। राव की सरकार के दौरान दिल्ली के सियासी गलियारे में उनका जलवा हुआ करता था। मतंग सिंह की धर्मपत्नी और चर्चित फिल्म अभिनेत्री ख्याति सिंह बताती हैं कि वह अपने क्षेत्र को लेकर काफी सजग रहते थे छपरा के सैकड़ों लोगों को उन्होंने अपने विभिन्न प्रतिष्ठानों में नौकरी आदि सामाजिक गतिविधियों में भी काफी एक्टिव रहते थे उनकी अंतिम इच्छा थी कि ख्याति से साधन की राजनीति में एक बड़ा चेहरा बने और इसको लेकर महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में कई सारे कार्यक्रम भी चलाए जा रहे थे को भी काल में उन्होंने अपने पटना स्थित मकान को बिहार सरकार को देने की पेशकश भी की थी उनकी प्रेरणा से सारण जिले के कई विधानसभा क्षेत्रों में लोगों की सहायता के लिए कार्य किए जा रहे थे पिछले वर्ष जब उनका निधन हुआ उस समय भी वे कई सारी योजनाओं को कार्य रूप देने में लगे हुए थे साथी सिंह कहती हैं कि उनके अधूरे सपनों को पूरा करना उनके जीवन का लक्ष्य राजा साहब भोज फिल्मों के निर्माण के क्षेत्र में भी उतरे थे और कई फिल्मों का निर्माण भी किया था चाहते थे कि स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले बिहार के लोगों को पलायन की पीड़ा नहीं झेलना पड़े।