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निरहू से निरहुआ

अनूप नारायण सिंह 

नाम निरहुआ नही है, निरहू है। भोजपुरी भाषी क्षेत्र में हर जगह नाम के आगे आ लगाया जाता है, और ये नाम के आगे आ लगाने का अधिकार सबको नही होता, निरहू का निरहुआ लगना उस प्रेम की निशानी है जो भोजपुरी की जनता अपने गायक अपने हीरो से करती है, वो लगाव है जो दिनेश लाल यादव को अपना दोस्त यार छोटा भाई बेटा जैसा समझती है। 
जब छोटे थे तो अपने बाजार से गांव आने के लिए जीप चला करती थी, जीप कमांडर जिसमे तब तक सावरिया भरी जाती थी जब तक पीछे तीन सवारी और आगे ड्राइवर का आधा बदन बाहर न लटके। इस जीप भरो आंदोलन में अगर कोई शुरुआत में पहुंच जाए तो बैठे रहने की बोरियत चरम सीमा को छूती थी। एक राहत की बात होती थी वो है जीप वाले द्वारा बजाए गए गाने। बीच के दो तीन महीने का दौर ऐसा था जब जीप वाले ने एक ही गाना लगातार बजाए रखा, पब्लिक भी पसंद करती थी उस गाने को, बाजार से थके मांदे आए लोग उस गाने को सुनकर अपनी थकान भूल जाते थे और बूढ़ पुरानिया लोग बीच बीच में कह भी देते थे कि "सही कहत हौ निरहुआ"ये वो दौर था जब कैसेट की दुनिया अपने आखिरी मुकाम पर थी और लोग धीरे धीरे सीडी प्लेयर खरीदने की हिम्मत जुटाने लगे थे, लोगो को दहेज में मिल रहा था, जिसको को नही मिला तो वो लोग किराए पर लेकर आने लगे।ये भोजपुरी और निरहुआ का सबसे सुनहरा दौर था जब वो अपने गाने के जरिए से गवई समाज के हर छोटे बड़े से कनेक्ट हों गए थे। उस वक्त निरहुआ का सबसे हिट गाना था "निरहुआ सटल रहे" जिसकी वजह से निरहुआ को निरहुआ का नाम मिला। पर दिनेश लाल यादव की जिंदगी ने निरहुआ नाम हासिल करने से पहले बहुत संघर्ष किया,।19 साल की उम्र में अपने पिता को खोने के बाद घर के बड़े बेटे दिनेश लाल यादव की तरफ घर की जिम्मेदारियां मुंह खोले खड़ी थी। निरहुआ ने उस दौर में अपने खानदानी कला की तरफ खुद को समर्पित किया और एक एलबम रिलीज करने में कामयाब हो गए पर असल कामयाबी अभी भी दूर थी,जिंदगी में संघर्ष अभी भी जारी था, एक तरफ खेती बाड़ी देखते थे तो दूसरी तरफ शादियों में बारातियों के मनोरंजन के लिए गांव गांव फिरकर लोकगीत गाते थे।
कई बार निरहुआ के पास सिर्फ एक तरफ का किराया होता था और वो इस भरोसे गाने निकल पड़ते थे कि कार्यक्रम के बाद जो पैसा मिलेगा उस पैसे से गाड़ी करके वापस आ जायेंगे पर अक्सर निरहुआ को पैसे नही मिलते थे और निरहुआ सर पर बाजा हरमोनियम लाद कर पैदल घर आते थे। निरहुआ की जिंदगी का ये वो दौर था जब बराती उनसे रात में गाना बंद करने के लिए कहते थे क्युकी निरहुआ के गाने से उनकी नींद में खलल पड़ता था, निरहुआ ऐसे बारातियों से हाथ पैर जोड़कर विनती करते थे कि उन्हें गाने दिया जाए वरना उन्हें आयोजक की तरफ से पैसे नही मिलेंगे न गाने पर। संघर्ष के उस लंबे और कठिन दौर में जब निरहुआ हताश होते तो उन्हे अपने पिता की कही बात याद आती "न छोड़ा मत, लगल रहा, जेतना लोग तोहरा के आज अवॉइड करत बा, ई सब लोग एक दिन तोहसे मिले खातिर तरसी और मिल न पाई"।
निरहुआ ने अपने गांव के माहौल का जायजा लेना शुरू किया, और उन्होंने सोचा कि अब वो गांव के लोगो की मनोदशा, माहौल और परिस्थिति के बारे में गायेंगे, गांव देहातो में ये माहौल हुआ करता था कि लड़के शादी के बाद अपने कमरे और घर में जाने से कतराते थे, पर निरहुआ ने देखा कि अब माहौल बदल चुका है और नई नई शादी वाले लड़के अब अपने कमरे और घर से निकलना ही नही चाहते थे। निरहुआ के दो एलबम रिलीज हो चुके थे और निरहुआ ने स्टेज शो करते करते एक और एलबम रिकॉर्ड करवाया, इस एलबम के पीछे निरहुआ ने उस वक्त के बीस हजार रुपए खर्च किए थे और जिस कंपनी को वो एलबम देना था उस कंपनी ने एलबम लेने से मना कर दिया। कुछ दिन हताशा और निराशा में गुजारने के बाद निरहुआ टी सीरीज के ऑफिस गए और अपने एलबम को रिलीज करने की बात कही। निरहुआ वो कैसेट टी सीरीज को देकर अपने गांव आए और एलबम वाली बात भूल कर अपनी खेती बाड़ी में रम गए। तीन चार महीने बाद निरहुआ को अगले प्रोग्राम के लिए बिहार जाना हुआ,प्रोग्राम के लिए थोड़ा लेट हो चुके निरहुआ जब रास्ते में थे तो उन्हे एक जगह बहुत भीड़ दिखी, एक आदमी उनकी गाड़ी को उस भीड़ की तरफ मोड़ने का इशारा कर रहा था, निरहुआ ने उस आदमी से कहा कि "भाई हमको जाने दीजिए एक प्रोग्राम में जाने में देरी हो रही है"
उस आदमी ने निरहुआ से कहा कि यही प्रोग्राम है आपका और ये भीड़ आपको सुनने के लिए आई है।
निरहुआ ने स्टेज पर जाकर गाना शुरू किया और पच्चीस पचास की भीड़ आज उनके सामने हजारों की भीड़ में बदल चुकी थी, लोग बार बार उनसे एक ही गाने "निरहुआ सटल रहे" की फरमाइश कर रहे थे।
टी सीरीज को दिया हुआ उनका एलबम बहुत बड़ा हिट हो चुका था और ये भीड़ उसी को सुनकर निरहुआ को देखने सुनने आई थी। उस एलबम के हिट होने के बाद निरहुआ के पुराने एलबम भी लोगो ने सुनने लगे।
उस दौर में निरहुआ के गानों के हिट होने की वजह ये थी कि निरहुआ लोगो के दिल की बाते अपने गानों में पिरोने में कामयाब हो गए थे, उनके गाने एक कन्वर्सेशन की तरह होते थे, जिसमे दो पक्ष होते थे और निरहुआ दोनो पक्ष को अपनी बात रखने देते थे अपने गानों में।
निरहुआ सटल रहे गाने में जहा शुरुआत में उन लड़कों को ताना दिया गया था जिनकी नई नई शादी हुई थी तो दूसरी तरफ गाने का एक हिस्सा ऐसा भी था जिसमे नई बहू कहती है "निरहू हऊये हमार हमसे सटल रहे"
इसके अलावा एक गाना था जिसमे निरहू गांव में पनप रहे कोल्ड ड्रिंक के बारे में बोलते है, "बुढ़िया मलाई खाले बुढ़वा खाला लपसी, केहू से काम न पतोहिया पिए पेप्सी"
इसी गाने में एक लाइन है जहा पतोह (बहू) निरहू के ताने के जवाब में कहती है "बाप पिए गांजा और बेटा पिए दारू"। निरहू के गाने इसलिए लोगो की जुबान पर चढ़े क्युकी वो उस दौर की हकीकत थी, वो गाने ढोलक की ताल और लय के बीच एक बात चीत की तरह थे जो लोगो के मन की वो बाते कहती थी जो वो कह नहीं पाते थे।
उस दौर में निरहुआ ने एक गाना गवई शादीशुदा जोड़े की नोकझोक पर गाया था जिसमे पत्नी अपने पति से महकने वाले तेल की फरमाइश कर रही थी, जिस दौर में शहर आगे बढ़ रहा था उस दौर की ये हकीकत थी कि गांव के लोगो के लिए महकने वाला तेल भी बहुत बड़ी बात थी।
उस दौर में निरहुआ के गाने हमेशा लोगो के सुख दुख उनकी समस्यायों की बात करते थे। निरहुआ का गाना जो मेरा सबसे फेवरेट है वो एक व्यंग्य था, और राजनीति और नेताओं पर इतनी सरल और चुटीले शब्दो के तीखा व्यंग्य निरहुआ के बाद शायद ही किसी भोजपुरी गायक ने किया हो। ये गाना एक नेता जी और एक आम लड़की के बीच का संवाद था जिसमे लड़की नेता जी के भ्रष्ट और चुनाव बाद पलट कर न देखने के नेचर पर ताने कस रही थी और नेता जी उसे अपने तरीके से जवाब दे रहे थे, वो गाना, वो संवाद जनता और वो नेता आने वाले कई सालो तक समाज की समस्याओं का प्रतिनिधित्व करता रहेगा। उस गाने में निरहुआ के एक्सप्रेशन बहुत फनी होने के साथ साथ असल भी लगते है। कई सालो पहले नेता और राजनीति पर तंज करने वाला ये लोकगायक आज दूसरी बार पर्चा भरने जा रहा है। निरहुआ जिन लोगो के बीच जिन लोगो के लिए चुनाव लड़ रहा है वो उनकी जमीनी हकीकत से वाकिफ है, उन्हे पता है की किसान किस दशा में काम करते है, उन्हे मालूम है कि उनके क्षेत्र के लोग किस परिस्थिति किन समस्याओं से गुजर रहे है, कहते है की समस्या का पता चलना समस्या का आधा हल होता है, जिन्होंने निरहुआ के गाने सुने है, वो जानते है कि वो पूर्वी क्षेत्र को और क्षेत्र के लोगो को किस कदर बारीकी से जानते और समझते है। गायकी से निकलकर अभिनय तक पहुंचने तक निरहुआ भोजपुरी जगत को भोजपुरी इंडस्ट्री बना चुके थे, इंडस्ट्री फायदे नुकसान पर चलती है, जिससे कई घरों के चूल्हे जलते है, तो वहा आप या तो आदर्श बचा सकते है या इंडस्ट्री बचा सकते है, भोजपुरी पर रोज लगते हुए अश्लीलता के तमाम अरोपो के बीच निरहुआ ने बिदेसिया बनाई, रंग दे बसंती चोला बनाई, ऐसी फिल्म बनाई जिससे टिकट खिड़की चलती रहे, इंडस्ट्री फलती फूलती रहे, को लोग इंडस्ट्री से जुड़े हुए है उनकी जिंदगी बेहतर से बेहतर होती जाए। पर निरहुआ को हमेशा इस बात की फिक्र थी की मुझे भोजपुरी को नंबर वन बनाना है, अपने करियर में स्टारडम के पीक पर होने के बावजूद निरहुआ ने उज्जवल पांडे की शॉर्ट फिल्म कुक्कुर की, को मौजूदा वक्त में भोजपुरी पर लगे क्वालिटी से ज्यादा क्वांटिटी के आरोप की धज्जियां उड़ाती है, ये फिल्म।एक संदेश के साथ भोजपुरी के गौरव को वापस लाने के लिए प्रयास करती है, इस फिल्म से आर्थिक तौर पर निरहुआ को की फायदा नही हुआ है पर ये फिल्म उन्हे आत्म संतुष्टि देती है कि उन अपनी माटी अपनी भाषा के लिए प्रयास किया है और आगे भी करते रहेंगे। भोजपुरी में अश्लीलता खत्म करने के नाम पर कुछ लोग भोजपुरी "इंडस्ट्री" खत्म करना चाहते है, वो ये नही समझ पाते कि सार्थक फिल्मे तो हर भाषा में कमाने के नाकामयाब होती आई है ऐसे में इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगो की जीविका के साथ खिलवाड़ करना बेवकूफी होगी, जिन्हे फिक्र है जिन्हे भोजपुरी की चिंता है, वो कुक्कूर जैसी फिल्म से जुड़ेंगे या उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे, जैसा कि निरहुआ कर रहे है, आर्थिक और सामाजिक तौर पर भोजपुरी को आगे बढ़ाने का निरहुआ का ये समानांतर प्रयास काबिल ए तारीफ है।

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