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किसानों का पशु मेला आधुनिक युग में धीरे धीरे खत्म होने लगे

अनूप नारायण सिंह 
छपरा के भेल्दी थाना क्षेत्र के बांसडीह में पशुमेला आज भी जीवित है। इस मेले का स्थापना 1981 में हुआ था। गांव के ही काशीनाथ सिंह जो अमनौर प्रखंड में 1993-94 में B.A.O के पद पर स्थापित थे। नौकरी की समय से ही पशुओं के प्रति काफी लगाव था। यही कारण है कि जब उन्होंने नौकरी कर रहे थे तभी से गांव के लोगों के साथ एक बैठक कर कमेटी बनाएं। जिसमें 21 लोग कमेटी में शामिल थे। और धीरे-धीरे मेला का विस्तार करना शुरू कर दिए। जिसके बाद जिला के अलग-अलग क्षेत्रों से पशु का आना चालू हो गया। यह मेला प्रत्येक सप्ताह के शनिवार को लगता था। लेकिन जैसे ही आधुनिक युग में तरह-तरह के मशीन किसानों के लिए निकली गई। तब से मेला का स्थिति 2013 तक ठीक रहा। लेकिन उसके बाद से मेला का स्थिति धीरे-धीरे खराब होने लगा। और जो पशु हजारों की संख्या में आते थे वह धीरे-धीरे कम होने लगे, लेकिन आज भी पुराने सभ्यता के पालन करने वाले किसान बैल से खेती करते है। और आज भी जागरूक है। इस मेला की खूबसूरती पोखरे के भिंड पर ब्रह्मा बाबा के स्थान, भोलेनाथ के मंदिर, विशाल धर्मशाला, आज भी यह सब मेला का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यही कारण है कि बिहार के अलग-अलग जिलों से पशुओं के व्यापारी खरीद बिक्री करने के लिए आते थे। वही किसानों का कहना है कि जब से सरकार तरह-तरह के मशीन का अविष्कार किया। तब से लोग मेहनत भी करना कम कर दिये। यही कारण रहा कि आज पशु मेला बदहाली का आशु बहा रहा है। वही इस विषय में मेला के कमेटी के सदस्य काशीनाथ सिंह ने बताया कि मेला में जो भी बाहरी व्यापारी आते थे। उनकी सुरक्षा के लिए कमेटी का गठन किया गया था। और स्थानीय थाना भी मेला में गस्ती करते थे। यही कारण है कि दूसरे राज्य से व्यापारी से छपरा के बांसडीह में पशुमेला में लाखों रुपया लेकर आते थे। और मेला के धर्मशाला में रहते थे, उनके सुरक्षा के लिए मेला की कमिटी रात दिन तैनात रहती थी। लेकिन धीरे-धीरे यह सारे चीज खत्म होने लगे, और यही कारण रहा कि आज मेला की स्थिति काफी दयनीय दिख रही हैं।

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