मिथिला हिन्दी न्यूज :- साल 1964 में जब 27 मई को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ तब उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था. देश की नई व्यवस्था में उत्तराधिकारी पहले से तय करने की कोई परंपरा या सिद्धांत नहीं था. ऐसे में नेहरू के निधन के बाद देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनने के कई दावेदार या उम्मीदवार थे. ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री का प्रधानमंत्री बन जाना पहले से तय नहीं था और ना ही वे कोई बहुत ज्यादा ताकतवर दावेदार थे.शास्त्री का प्रधानमंत्री बनना संयोग भले ही नहीं कहा जाए. लेकिन उनका नेहरू का उत्तराधिकारी बनना स्वाभाविक भी नहीं था. वे एक गांधीवादी नेता थे. लेकिन उनका पार्टी में शीर्ष नेताओं के बीच प्रमुखता से छा जाना अचानक नहीं हुआ. कहा जाता है कि नेहरू ने अपने अंतिम दिनों में प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री को काफी जिम्मेदारियां सौंपनी शुरू कर दीं थीं, जिससे पार्टी में ये संदेश गया कि वो उन्हें अगले प्रधानमंत्री के रूप में तैयार कर रहे हैं. 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक वे प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहे। 'जय जवान, जय किसान' का नारा शास्त्रीजी ने ही दिया था। वे छोटे कद के महान राजनेता थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध में शास्त्रीजी के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था।