मिथिला हिन्दी न्यूज :- इस्लाम धर्म में ईद का त्योहार बहुत खास माना जाता है. साल में ईद दो बार आती है, एक बार मीठी ईद और इसके बाद बकरीद. मीठी ईद को Eid-ul-Fitr कहा जाता है, जबकि बकरीद को बकरा ईद, Eid-Ul-Zuha या Eid al-Adha कहा जाता है. रमजान के बाद मीठी ईद मनाई जाती है जिसमें सेवइयां खाने का चलन है, जबकि बकरीद पर बकरे की बलि दी जाती है.बकरीद को दुनियाभर में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मनाते हैं. बकरीद में भी लोग मीठी ईद की तरह सुबह नमाज अदा करते हैं, इसके बाद आपस में गले मिलकर एक दूसरे को ईद की बधाई देते हैं. आइए जानते हैं कि इस मौके पर बकरे की बलि का चलन कैसे शुरू हुआ.बकरीद को कुर्बानी का दिन कहा जाता है. इसको लेकर एक कहानी प्रचलित है. कहा जाता है कि हज़रत इब्राहिम अलैय सलाम की कोई संतान नहीं थी. काफी मन्नतें मांगने के बाद उन्हें एक पुत्र इस्माइल प्राप्त हुआ जो उन्हें बहुत प्रिय था. इस्माइल को ही आगे चलकर पैगंबर नाम से जाना जाने लगा. एक दिन इब्राहिम को अल्लाह ने स्वप्न में कहा कि उन्हें उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी चाहिए. इब्राहिम समझ गए कि अल्लाह उनसे उनके पुत्र की कुर्बानी मांग रहे हैं. अल्लाह के हुक्म के आगे वे अपने जान से प्यारे पुत्र की बलि देने को भी तैयार हो गए.
कुर्बानी देते समय इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उनकी ममता न जागे. जैसे ही उन्होंने छुरी उठाई, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने बिजली की तेजी से इस्माइल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटाकर एक मेमने को रख दिया. जब इब्राहिम ने अपनी पट्टी हटाई तो देखा कि इस्माइल खेल रहा हैं और मेमने का सिर कटा हुआ है. तभी से इस पर्व पर जानवर की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो गया.
कुर्बानी के हैं ये नियम
बकरीद पर कुर्बानी के लिए भी कुछ नियम हैं. इस दिन बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है. उस पशु को कुर्बान नहीं किया जा सकता जिसको कोई शारीरिक बीमारी या भैंगापन हो, जिसके शरीर का कोई हिस्सा टूटा हो. शारीरिक रूप से दुर्बल जानवर की भी कुर्बानी नहीं दी जा सकती, इसीलिए बकरीद से पहले ही जानवर को खिला पिलाकर हष्ट पुष्ट किया जाता है. कम-से-कम जानवर की उम्र एक साल होनी चाहिए.
कुर्बानी के बाद गोश्त के होते हैं तीन हिस्से
बकरीद पर कुर्बानी हमेशा ईद की नमाज अदा करने के बाद ही की जाती है. इस दौरान बलि किए गए बकरे के गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. एक हिस्सा खुद के परिवार के लिए, दूसरा हिस्सा सगे संबन्धियों और दोस्तों के लिए और तीसरा हिस्सा जरूरतमंद लोगों के लिए रखा जाता है. तमाम लोग इस मौके पर दान पुण्य भी करते हैं