आज से 76 साल पहले 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी. ये दिन पूरी दुनिया में भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर जाना जाता है. लेकिन, आप ये जानकर हैरान होंगे इसी देश में कहीं पर 16 अगस्त को भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. जानें, इसके पीछे की रोचक कहानी.
मिथिला हिन्दी न्यूज :- पूरा भारत हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाता है, लेकिन बिहार के बक्सर स्थित डुमरांव में जश्न-ए-आजादी 16 अगस्त को भी मनायी जायेगी। यहां के लिए इस दिन के कार्यक्रम का महत्व स्वतंत्रता दिवस के महत्व से कम नहीं है। इस दिन पूरे नगर के लोग आजादी समारोह मनाते हैं और अपने शहर के क्रांतिकारी वीरों को याद करते हैं।स्वतंत्रता दिवस के अगले दिन यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। 16 अगस्त की सुबह प्रभातफेरी से शुरू होने वाला कार्यक्रम देर रात सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ संपन्न होता है। डुमरांव के लोगों की मांग पर दो साल पहले बिहार सरकार ने यहां स्वतंत्रता दिवस के अगले दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को राजकीय समारोह का दर्जा प्रदान किया है।1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में पूरे देश के साथ डुमरांव में भी इसकी ज्वाला धधक उठी थी। उसी साल 15 अगस्त की शाम में डुमरांव के क्रांतिकारियों ने थाना पर तिरंगा फहराने का फैसला लिया। अगले दिन शाम में कपिल मुनी के नेतृत्व में हजारों आंदोलनकारी मुख्य बाजार में इकट्ठा हुए और जुलूस की शक्ल में थाने की ओर कूच कर गए। वहां, भीड़ ने थाने पर कब्जा कर मुख्य गुंबद पर तिरंगा लहरा दिया।अचानक थाना भवन पर तिरंगा लहराते देख अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस सन्न रह गई। थाने के तत्कालीन दारोगा देवनाथ ने ओपन फायरिंग का आदेश दे दिया। इसमें कपिल मुनि कमकर के साथ गोपाल कहार, रामदास सोनार व रामदास लोहार घटनास्थल पर ही शहीद हो गए। जबकि, भीखी लाल, अब्दुल रहीम, प्रदुमन लाल, बिहारी लाल, सुखारी लोहार, साधू शरण अहीर व बालेश्वर दूबे गोली आदि कई लोग गोली से घायल हो गए।76 साल पूर्व हुई उस घटना की याद में यहां एक शहीद स्मारक बनाया गया है। आजादी के बाद कई सालों तक अपने क्रांतिवीरों को नमन करने के लिए डुमरांव वासी अपने स्तर से इस दिन कार्यक्रम आयोजित करते रहे। इसके लिए नागरिकों ने शहीद स्मारक समिति का गठन किया। दो साल पहले राज्य सरकार ने शहादत दिवस को राजकीय समारोह घोषित किया है।