पंकज झा शास्त्री
अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए विवाहित महिलाएं सालभर में कई व्रत-उपवास करती हैं। उन्ही में से एक है हरतालिका तीज. हिंदू धर्म में हरतालिका तीज को बहुत महत्वपूर्व व्रत माना गया है. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. इस साल हरतालिका तीज का व्रत 30 अगस्त 2022 को रखा जाएगा. हरतालिका तीज पर व्रतधारी महिलाएं पूरे दिन और रात में निराहार और निर्जल व्रत कर शिव की आराधना में मग्न रहती हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती भगवान शिव के वरण की कामना के लिए अन्न, जल त्यागकर हरतालिका तीज का व्रत किया था. भोलेनाथ मां पार्वती की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. मान्यता है इस दिन जो महिलाएं-लड़कियां विधि पूर्वक से व्रत का पालन करती हैं उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। साथ ही महादेव और माता पार्वती महिलाओं को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद हैं।
👉इस बार तिथियों के उलझन की वजह से गणेश चतुर्थी और चौठ चंद्र पर्व अलग-अलग दिन मनाया जा रहा है। मुख्य रूप से बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में मनाया जाने वाला चौठ चंद्र पर्व इस बार 30 अगस्त को मनाया जाएगा और उगते हुए चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा। इसी दिन कलंक चतुर्थी का पर्व भी मनाया जाएगा।
धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि को गणेशजी का जन्म दोपहर के समय हुआ था। इसलिए गणेश चतुर्थी पर गणेशजी की प्रतिमा की स्थापना और पूजन उस दिन किया जाता है जिस दिन दोपहर के समय चतुर्थी तिथि होती है। मिथिला क्षेत्रिय पंचांग अनुसार 30 अगस्त को चतुर्थी तिथि का आरंभ दोपहर में 02बजकर 40 मिनट के उपरांत हो रहा है। जबकि 31 अगस्त को चतुर्थी तिथि सूर्योदय से दिन के 02बजकर 04 मिनट तक है इसलिए 31 अगस्त का दिन गणेश प्रतिमा की स्थापना पूजन के लिए शास्त्र के अनुसार सही है और इसी दिन सिद्धि विनायक व्रत किया जाएगा।
लेकिन चौठ चंद्र और कंलक चतुर्थी का संबंध चंद्रमा से। 31 अगस्त को रात में चतुर्थी तिथि नहीं है जबकि 30 अगस्त को रात के समय चतुर्थी तिथि रहेगी। इसलिए 30 अगस्त को ही चौठ चंद्र और कलंक चतुर्थी के व्रत नियमों का पालन किया जाएगा।
मिथिला क्षेत्र में प्रसिद्ध चौठ चंद्र व्रत में महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं और तरह-तरह के पकवान बनाकर चंद्रमा की पूजा करती हैं। इसके बाद व्रती एवं परिवार के सभी लोग हाथों में फल, दही और पकवान लेकर चंद्रमा के दर्शन करते हैं। वेसे अपने अपने परम्परा अनुसार भी लोग इस त्यौहार को मनाते हैं। यह चौठ चंद्र का मुख्य प्रसाद होता है। मान्यता है कि इससे परिवार के लोग निरोग होते
और मान प्रतिष्ठा प्राप्त होती। झूठा कलंक भी नहीं लगता है।