अनूप नारायण सिंह
बिहार एनडीए में टूट की संभावना जतायी जा रही है। विगत तीन दिनों से जदयू में जारी हलचल केवल जदयू तक सीमित नहीं है। कभी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष, नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे कद्दावर नेता आर सी पी सिंह के साथ इस पूरी हलचल की तार जरूर जुड़ी दिख रही है मगर इसका सूत्र सीधे तौर पर बीजेपी से भी जुड़ा है। इन तीन दिनों में आरोप-प्रत्यारोप के साथ "चिराग" और "एकनाथ शिंदे" मॉडल की चर्चा भी शुरू हुई है। यहां वाजिब सवाल है कि क्या हालिया राजनीतिक उथल-पुथल और एनडीए में टूट की संभावनाओं का राज इन्हीं दो मॉडलों में छुपा हुआ है।
2020 के विधान सभा चुनाव के बाद से ही "चिराग" मॉडल की चर्चा जोर पकड़ने लगी थी। जदयू का सीधा आरोप था कि उसकी की सभी सीटों पर चिराग पासवान द्वारा उम्मीदवार खड़ा करने और भाजपा द्वारा लोजपा उम्मीदवारों को वोट ट्रांसफर कराने का ही नतीजा रहा कि जदयू मात्र 43 सीटों पर सिमट कर रह गया। इस खुन्नस से अभी जदयू बाहर निकल भी नहीं पाया था तभी केंद्र की सरकार में जदयू कोटे से मंत्री बने आर सी पी के जरिए बीजेपी के एक नेता द्वारा की जा रही चालबाजियों से जदयू नेतृत्व के कान खड़े हो गए। जदयू ने तत्काल इस पर एतराज जताते हुए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को अवगत कराया और पार्टी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव के कार्यकलापों पर अपनी नाराजगी व्यक्त किया। माना जाता है कि जदयू नेतृत्व के दबाव पर ही चुपके से बीजेपी ने श्री यादव की जगह केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को बिहार का जिम्मा सौंपा दिया।
मगर बात यहां भी थमी नहीं। श्री प्रधान और मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के बीच बंद कमरे में मुलाकात के बावजूद बिहार बीजेपी के एक महत्वाकांक्षी केंद्रीय मंत्री के आर सी पी से सांठगांठ और जदयू विधायकों को तोड़ कर सरकार के अंदर नेतृत्व परिवर्तन की कोशिश के खेला से जदयू नेतृत्व परेशान हो गया।
आर सी पी सिंह की इन गतिविधियों का खुलासा होने के बाद जदयू के सामने अपना घर और कुर्सी दोनों बचाने की चुनौती खड़ी हो गई। इसी चुनौती के मुकाबले के लिए आर सी पी को दुबारा राज्यसभा नहीं भेजने का निर्णय और फिर बाद में उन्हें निपटाने की जुगत भिड़ाई गई।
चार दिन पहले आर सी पी पर अवैध सम्पत्ति अर्जित करने का आरोप, पार्टी द्वारा आरोपों के बाबत जवाब की मांग, आर सी पी द्वारा मनगढंत आरोप बताते हुए इस्तीफा देने और फिर जदयू नेतृत्व की ओर से प्रेस कांफ्रेंस कर हमला को तीखा करने के पीछे की कहानी की कोख में ही कथित "एकनाथ शिंदे" मॉडल का बीज छुपा हुआ है।
जदयू का अब खुला आरोप सामने आया है कि बीजेपी आर सी पी को महाराष्ट्र की तर्ज पर "एकनाथ शिंदे" बना कर बिहार में भी खेला करने की फिराक में थी। जदयू सूत्रों का दावा है कि इस साजिश का पुख्ता प्रमाण जदयू नेतृत्व के पास उपलब्ध है। जदयू इसे बीजेपी के "आत्मनिर्भर भाजपा" के अभियान का हिस्सा बताते हुए यह कहने में भी संकोच नहीं कर रही है कि ऐसे में गठबंधन धर्म का निर्वाह कैसे होगा?
इधर आर सी पी को निपटाने के बाद जदयू की चिंता अपने विधायकों की एकजुटता को लेकर है। बीजेपी से बढ़ी दूरी को फिलहाल पाटना आसान नहीं दिख रहा है। दल और सरकार बचाने की जुगत में जदयू के नेतृत्व ने सत्ता-समीकरण के पड़ताल के साथ ही नए साथियों की तलाश भी तेज कर दिया है। ऐसे में बिहार की सत्ता और राजनीति में फिर एकबार "खेला होबे" तो कोई आश्चर्य नहीं।