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17 या 18 सितंबर, कब है जितिया व्रत? यहां जानें सही तिथि और मुहूर्त

पंकज झा शास्त्री
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संतान की दिर्घायु के लिए की जाने वाली कठिन व्रत जितिया,जो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है,इसबार मिथिला क्षेत्रीय पंचांग अनुसार 17 सितम्बर को जितिया(जीमूतवाहन)व्रत दिन रात रखा जाएगा। 18 सितम्बर को व्रत का पारण होगा। इस पर्व की शुरुआत सप्तमी तिथि को नहाय् खाय से शुरू होती है जो 16 सितम्बर को होगी,इस दिन स्त्रियों के लिए विशेष भोजन मरुआ आंटा का रोटी और नुनी साग या चुरा दही बहुत प्रसिद्द माना गया है।

 अष्टमी तिथि के दिन स्नान करके माताएं प्रदोष काल में जीमूत वाहन देवता की भी पूजा करती है तथा तेल खैर चढ़ाती है। बताया जाता है कि देव को दीप, धूप, अक्षत, रोली, लाल और पीली रूई से सजाया जाता है और फिर उन्हें भोग लगाते हैं।
इसके अलावा, मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है और उन्हें लाल सिंदूर लगाया जाता है, वेसे कई जगह अपने अपने परम्पराओं के अनुसार भी पूजा करती है। इस दौरान जीवित्पुत्रिका की कथा पढ़ी जाती है।वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्रों से भगवान की पूजा की जाती है।
 पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि जिनको लंबे समय से संतान नहीं हो रही है उनके लिए जितिया का व्रत एक वरदान की तरह है। संतान की दीर्घायु और सुख समृद्धि की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है।इस निर्जला व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। इस व्रत में नहाय खाय की परंपरा होती है. कई राज्यों में इसे ‘जिउतिया’ भी कहते हैं. यह व्रत उत्तर प्रदेश समेत बिहार,झारखंड और पश्चिम बंगाल में खूब अच्छे से मनाया जाता है. यह व्रत आसान नहीं होता।
 माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस उपवास में महिलाएं जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करतीं हैं। कहा जाता है किसी कारण वश जिनको यह ब्रत छूट या टूट जाता है तो पुनः यह व्रत नहीं किया जाता।
शहर के जाने माने पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि जिनको शरीर की असमर्थता या किसी कारण वश औषधि का सेवन करना आवश्यक हो उन्हें यह व्रत नहीं करना चाहिए।पूजा उपरांत ईश्वर से क्षमा मांगते हुए इस व्रत को सोप देना चाहिये।

एक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।

16 सितम्बर को स्त्रीनां विशेष भोजन,ओठगन रात्रियंते रा 03:40 से 04:35 तक।

17 सितम्बर को दिवारात्रौ जितिया व्रत।

18 सितम्बर को जितिया व्रत पारण दिन के 04:49 के उपरांत।

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