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चांदी का तमगा मिलने से नहीं मिटती है भूख भिखारी ठाकुर से लेकर रामचंद्र माझी तक

संवाद 

आपको क्या लगता है कि आप सरकार के द्वारा भुला दिए गए किसी महापुरुष या कलाकार को बचा लीजिएगा सोशल मीडिया मेंस्ट्रीम मीडिया में बड़े-बड़े आलेख लिखकर लोगों के अंदर सहानुभूति जुटा लीजिएगा तो यह आपका भ्रम है तीन साल पहले तिल तिल कर महान गणितज्ञ डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह गुजर गए मरने के बाद पीएमसीएच में उन्हें एंबुलेंस तक नहीं मिला वर्षों तक गुमनामी के अंधेरे में खोए रहे किसी ने सुध नहीं ली अगर बिहार के नहीं होते तो जाहिर सी बात है कि कई सारी संस्थाएं कई सारे लोग उनके मदद के लिए आते अगली कड़ी में पद्म श्री रामचंद्र माझी हैं जिनका निधन दो दिन पहले हुआ रामचंद्र मांझी एक ऐसी कला के संवाहक थे इस कला को आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता है भोजपुरिया इलाके में पुरुष स्त्री का रूप धारण कर लौंडा नाच करते हैं आमतौर पर पिछड़ी जाति के लोग बरसों से इस परंपरा को निभा रहे हैं कलाकारों को क्या सम्मान मिलता है इस बात को आप इसी से समझ सकते हैं कि शादी ब्याह या किसी समारोह में जब यह कलाकार नाचने के लिए जाते हैं तो लोग तालियां तो खूब मारते हैं पर इन्हें आज भी भोजन सबसे अंत में और जहां जानवरों को बांधा जाता है वहां बैठा कर कराया जाता है। भिखारी ठाकुर के इस परंपरा के कई सारे कलाकार रहे जिसमें पद्म श्री रामचंद्र माझी एकमात्र जीवित ऐसे कलाकार थे जिन्होंने 30 वर्षों तक भिखारी ठाकुर के नाच मंडली में लौंडा नाच किया अंतिम कडी के कलाकार
#लखिचन्द_माँझी ( इटहियाँ) तथा #रामचंद्र_माँझी_छोटे (सिरिपुर). ने भी भिखारी ठाकुर के साथ काम किया है और आज जीवित पर उनकी दुर्दशा देखने वाला कोई नहीं। भिखारी ठाकुर के साथ काम कर चुके और बाद में खुद की नाच मंडली चलाने वाले रामाज्ञा राम भी है जिनकी सुध कोई नहीं लेता कभी-कभार 110 वर्ष की अवस्था में किसी मंच में टनाटन गाते दिख जाते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बड़ा सम्मान भर दे देने से ऐसे कलाकारों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं होता सरकार और संस्थाओं का मीडिया में जरूर चेहरा चमक जाता है पर कलाकार को भूख गरीबी और मुफलिसी से आजादी नहीं मिल पाती घर के छत से आज भी बारिश की बूंदे टपकती है दोनों शाम चूल्हा कैसे जलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं होता घर की जवान बेटियों के हाथ कैसे पीले होंगे बेरोजगार बेटे पोते का परिवार कैसे चलेगा इस दर्द से कलाकार की कला भी कुंठित हो जाती है और सीधे मूल विषय पर आते हैं पद्म श्री रामचंद्र मांझी के मरने के बाद कई सारे लोग घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं पर जो लोग लौंडा नाच के नाम पर बिहार सरकार और भारत सरकार की फेलोशिप खा रहे हैं उन लोगों को थोड़ी सी भी शर्म नहीं है कि वह भिखारी ठाकुर और रामचंद्र माझी के परिवारों की सुध ले 5 दिनों तक पटना के आईजीएमएस में पड़े रामचंद्र माझी को देखने बिहार का कोई कलाकार नहीं आया मंचों से सुनिए लंबी-लंबी भाषण देते हैं भोजपुरी को बचाने को लेकर लौंडा नाच को बचाने को लेकर को भिखारी ठाकुर का शिष्य बताते हैं पर इनमें शर्मा को थोड़ी सी भी शर्म नहीं आती कि भिखारी ठाकुर के साथ 30 वर्षों तक उस कला को संरक्षित करने वाला कलाकार चंद सिक्कों के अभाव में अपना इलाज नहीं करवा पाता और इस दुनिया को छोड़ जाता है सरकार से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती सत्ता किसी के हाथ में हो जब तक जनता का दबाव नहीं पड़ेगा तब तक ऐसे कलाकारों और युग पुरुषों के संरक्षण के लिए कोई आगे नहीं आएगा यह कहानी बार-बार दोहराई जाएगी बिहार के लोग काफी भावुक होते हैं भावनाओं में बह जाते हैं जात धर्म का खेल भी यहां बहुत होता है पर जरूर सोचिएगा क्या रामचंद्र मांझी दोबारा लौटकर आएंगे क्या वशिष्ट सिंह जैसा महान गणितज्ञ फिर बिहार में होगा क्या आप और हम दोषी नहीं हैं ऐसी व्यवस्था से चुपचाप सब कुछ सहन कर लेने को लेकर। रामचंद्र मांझी जी को जब पद्मश्री मिला तब लगा कि अब लौंडा नाच को एक बड़ी पहचान मिल पाएगी इससे जुड़े कलाकार अब सम्मान से भरा जीवन जी पाएंगे सही मायने में उन कलाकारों को सरकारी अनुदान देंगी जो बरसों से लौंडा नाच करते आ रहे हैं पर पटना और दिल्ली में बैठे तथाकथित कलाकार आज जो खुद को इस नृत्य शैली का संरक्षक बताते हैं सारा फंड खुद खा जाते हैं आज भी गांव में जो कलाकार लौंडा नृत्य करता है उसे जलालत भरी जिंदगी जीनी पड़ती है समाज उसे तिरस्कृत नजरों से ही देखता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भिखारी ठाकुर की परंपरा को छपरा जिले में बाद में ऊंची जाति के लोगों ने भी आगे बढ़ा है इस कड़ी में एक बड़ा नाम था टूकर सिंह का जिनकी नाच मंडली आज भी चल रही है। कई साल पूर्व उनकी मृत्यु हो गई पूरे भोजपुरिया इलाके में नगाड़ा के इतने बढ़िया वादक कोई नहीं हुआ करते थे जाति से राजपूत होने के बावजूद समाज की तमाम आलोचनाओं को सहने के बावजूद उन्होंने अपनी लौंडा नाच की मंडली स्थापित की थी जिसे आज उनके पुत्र संचालित कर रहे हैं। छपरा सीवान गोपालगंज मोतिहारी बेतिया में अभी भी 15 से ऐसी नाच मंडलिया है जहां लौंडा नाच की परंपरा को आगे बढ़ाया जा रहा है अब बिहार के कलाकारों से ज्यादा नेपाल के नर्तक इसमें नजर आते हैं। 
@अनूप

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