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पितृ पक्ष मे श्राद्ध कर्म क्यों जरुरी?

पंकज झा शास्त्री 
9576281913
पितृ पक्ष मे श्राद्ध कर्म क्यों जरुरी,इस विषय पर हमने एक बहुत संक्षिप्त मे लेख के माध्यम से समझाने का प्रयत्न कर रहे है। आपका सुझाव भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। दुनिया के सभी धर्मों मे अपने अपने तरीको से अपने पूर्वजों (पितरो) के प्रति कृतज्ञता निभाने उन्हें याद करने कई परंपरा चली आ रही है। इसी तरह हमारे सनातन हिन्दू धर्मो मे भी अपने पितरो के प्रति कृतज्ञता निभाने की यह परम्परा सबसे अधिक प्राचीनतम है।
इस बार 2022 मे 10 सितम्बर 2022 को अगस्त्य मुनी को अर्घदान से साथ ही 11 सितम्बर 2022 से महालयारम्भ,पितृ पक्ष आरम्भ हो जाएगा जो 25 सितम्बर 2022 तक चलेगा।
 श्राद्ध का वेदो स्मृति पुराण उपनिषद् रामायण महाभारत सभी धर्म ग्रंथों में वरण है। आज के इस भौतिक युग में हमें श्राद्ध का किंचित मात्र भी विश्वास नही होता है। कैसे हम विश्वास करें कि हमने श्रद्धा पूर्वक जो कुछ भी किया वो सब क्या हमारे पूर्वजो को मिला या वे तृप्त हुये?

हमने आपकी इसी शंका के समाधन हेतु यह लेख लिखने का प्रयास किया है। आइये हम आपको बताते चले कि किस तरह आपकी श्रद्धापूर्वक की गई सभी क्रियाएं आपके पूर्वजो को प्राप्त हुई और वे तृप्त भी हुए हैं। इस प्रसंग को आगे बढाने से पहले मे कुछ प्राचीन धटनाओ का वर्णन करना चाहूंगा। रामायण काल में राम ने अपने पिता को स्मरण करते हुये जब ऋषियों को भोजन कराना प्रारम्भ किया तब वे यह देखकर चकित हो गये कि सीता किसी पेड़ की आड लेकर छिपी हुई हैं। उन्होंने कारण जानना चाहा तब सीताजी ने कहा कि उन्हें महाराजा दशरथ जी भोजन करते हुये दिखाई दिये। ऐसे ही महाभारत काल में जब भीष्म अपने पिता का श्राद्ध करने लगे तो गंगा किनारे पानी मे से राजा शांतुनु का हाथ पिण्ड लेने के लिये बाहर निकला। भीष्म ने पिण्डदान कुश पर रख कर अपने पिता का श्राद्ध किया।

यह सब मैंने अपनी धारणाओ को सरल करने के लिये बतलाया है। अब आप को आज के युग से सम्बंधित कुछ उदाहरण देकर प्रयास कर रहा हूं। कैसे श्रद्धा पूर्वक आपका हव्य पितरों को पहुंचता है। आजकल आप एसएमएस/ ई-मेल/फेसबुक/ट्विटर आदि सभी से पूरी तरह परिचित तो होंगे ही। क्या आपने सोचा ये सब कैसा होता होगा? आपका जवाब होगा कि यह सब तो सूक्ष्म तरंगो के मध्यम से होता है। तो आप सूक्ष्म तरंगों से परिचित हैं।

यह मेरा मानना है तो आइये आप यहा भी उन्ही सूक्ष्म किरणो का विचार करें। जब आप श्रद्धापूर्वक अपने पितरो का श्राद्ध के लिये आह्वान करते है तो वे आत्माएं भोजन हेतु जो ब्राह्मण बैठे हुए हैं उनमे समाविष्ट होकर आप द्वारा करा गया सभी कुछ प्राप्त कर तृप्त होते है। माना तो यह जाता है कि आत्माए तो सूक्ष्म होती है उसका कोई स्वरूप नही होता है फिर उन्हें कैसे पता चलता है आप ही उन्हे स्मरण कर बुला रहे है और वही आत्मा ब्राह्मण के साथ भोजन ले रही है। इसके लिये मेरा निवेदन है कि मान लो मेने अपने परिवार के लिये अमेरिका से कुछ डॉलर्स पोस्टऑफिस के माध्यम से भेजे हैं तो भारत में मेरे परिवार को वह डॉलर्स में नही भारतीय रूपयों में ही दिये जाएंगे।

यहां यह समझना है कि द्रव्य का परिवर्तित रूप हुआ है। इसी तरह श्राद्ध भी एक तरह से भोजन करा कर ब्राह्मण को संतुष्ट कराने पर सूक्ष्म रूप में आपके पूर्वजों को तृप्त करना हुआ। आप द्वारा किया गया श्रद्धा पूर्वक यही श्राद्ध आपके पितरों को तृप्त करता हुआ आपको परिवार सहित शुभकामना भी देता है।

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