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इंद्र पुज्नोत्सव् आज से आरम्भ

पंकज झा शास्त्री 

ज़िला एवं आसपास के कई क्षेत्रों में इंद्र पुज्नोत्सव् आज से प्रारम्भ हो चुकी है। इंद्र दरबार पूरी तरह से सज कर तैयार है। कई जगह लोगों के मनोरंजन हेतु मेला,खेल तमाशा का भी आयोजन किया गया है।

माना जाता है कि इंद्रपद पर आसीन देवता किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देता था इसलिए वह कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता था तो कभी राजाओं के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े चुरा लेता है। जिस कारण भगवान् इंद्र की पूजा वर्जित माना जाता रहा है।
कहा जाता है कि एक इन्द्र 'वृषभ' (बैल) के समान था। असुरों के राजा बली भी इंद्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इंद्रपद हासिल कर लिया था। 

 इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इंद्र की पत्नी इंद्राणी कहलाती है।

इन्द्र् पुज्नोत्सव् को लेकर् मिथिलांचल के कुछ क्षेत्रो मे एक अलग मान्यता है। 19वीं सदी के उत्तरा‌र्द्ध में तत्कालिन दरभंगा महाराज द्वारा इन्द्र पूजा की शुरूआत दरभंगा राज परिसर की गई थी जो आज भी जारी है। बाद में इन्द्र पूजा का विस्तार धीरे-धीरे ग्रामीण स्तर पर शुरू हो गया।

मधुबनी जिला मुख्यालय स्थित सूड़ी स्कूली मैदान में छह दशक पूर्व इन्द्र पूजा अनुष्ठान प्रारंभ किया गया। वहीं ढाई दशक से काली मंदिर गंगासागर तालाब परिसर स्थित इन्द्र पूजनोत्सव अनुष्ठान धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी इन्द्र पूजा का आयोजन धीरे-धीरे बढ़ता चला गया।

एक् लोगों के बीच मान्यता के मुतविक भगवान कृष्ण के पहले 'इंद्रोत्सव' नामक उत्तर भारत में एक बहुत बड़ा त्योहार होता था।

 ऋग्वेद के तीसरे मण्डल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इंद्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इंद्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्तिशाली देव है। ऐसे माना जाता है कि इंद्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।

वैदिक समाज जहां देवताओं की स्तुति करता था, वहीं वह प्राकृतिक शक्तियों की भी स्तुति करता था और वह मानता था कि प्रकृति के हर तत्व पर एक देवता का शासन होता है। उसी तरह वर्षा या बादलों के देवता इंद्र हैं तो जल (समुद्र, नदी आदि) के देवता वरुण हैं। शहर के जाने माने पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि अबतक स्वर्ग पर राज करने वाले 14 इंद्र माने गए हैं।
इन्द्र के युद्ध कौशल के कारण आर्यों ने पृथ्वी के दानवों से युद्ध करने के लिए भी इन्द्र को सैनिक नेता मान लिया। इन्द्र के पराक्रम का वर्णन करने के लिए शब्दों की शक्ति अपर्याप्त है। वह शक्ति का स्वामी है, उसकी एक सौ शक्तियां हैं। चालीस या इससे भी अधिक उसके शक्तिसूचक नाम हैं तथा लगभग उतने ही युद्धों का विजेता उसे कहा गया है। वह अपने उन मित्रों एवं भक्तों को भी वैसी विजय एवं शक्ति देता है।

पंकज झा शास्त्री ने कहा इन्द्र और वरुण नामक दोनों देवता एक दूसरे की सहायता करते हैं। वरुण शान्ति का देवता है, जबकि इन्द्र युद्ध का देव है एवं मरूतों के साथ सम्मान की खोज में रहता है।

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