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और जब गोपालगंज के छात्र नेता के घर कसार खाने पहुंचे लालू

जब लालू जी ने कसार के बहाने मेरे लिए अपने घर का दरवाजा खोल दिया... 
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अनूप नारायण सिंह 
13 जुलाई 2011 की बात है. आदरणीय लालू जी बाढ़ प्रभावित गोपालगंज का दौरा करने के लिए आये हुए थे. लालू जी गोपालगंज सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे, साथ में रामकृपाल यादव भी थे. शाम का वक्त था, मेरा युवा मन लालू जी की उपस्थिति से गदगद था.. प्रफुल्लित था.

कमरे में लालू जी के सानिध्य में मुझे भी उपस्थित होने का अवसर मिला था. उन दिनों मैं छात्र राजद का जिलाध्यक्ष था, आंदोलनों में लड़ना, भिड़ना लगा रहता था.. आखिर लालू जी के सच्चे सिपाही जनहित के लिए लड़ने से पीछे कैसे हट सकता है. चंद दिनों पहले एक माह जेल खट कर आया था, यह जेल भी छात्र आंदोलन को लेकर ही था.

यकीन मानिए तब मुझे लालू जी में अपनापन इसलिए भी लग रहा था क्योंकि लालू जी भी छात्र राजनीति की ही उपज है. वैसे लालू जी जैसे महान शख्सियत का सहज व्यवहार, आंचलिकता को समेटे हुए संवाद ऐसा ही कि उनकी डांट-फटकार का भी हम जैसे लोग बुरा नहीं मान सकते हैं.

लालू जी ने जिले संबंधित पदाधिकारियों को फोन लगाने को कहा.. 
"कलक्टर को फोन लगाओ.."

रामकृपाल जी नंबर के लिए मुंह देखें तो लोग डायरी खोजने लगे.

मुझे कलक्टर का नंबर याद था.. तपाक से बोला.. 

रामकृपाल जी ने फोन लगाया.. फिर लालू जी ने कलक्टर साहब को आवश्यक निर्देश दिए.

एसपी को लगाओ.. 

लोग डायरी के पन्ने पलटने में लगे कि मैं फिर तपाक से नंबर बिना देखें बताया.. 

सीओ को लगाओ... 

बिजली विभाग के एक्सक्यूटिव को लगाओ

मैं फटाफट नंबर बोलता गया रामकृपाल जी डायल करते रहे, मोबाईल देखें.. सटाक से नंबर बोला..

जिले के अन्य दो-तीन प्रतिष्ठित लोगों को भी नंबर डायल करने का हुक्म आया.. और मेरी जुबान से नंबर बेलाग लपेट के निकलते रहा.

चूंकि मुझे भी लगभग अपने संपर्क के सारे मोबाईल नंबर मुंहजबानी याद रहते हैं. 

फिर धीरे धीरे सब लोग कमरे से बाहर निकले. एक घंटे बाद पूर्व लोक अभियोजक रामनाथ साहू जी ने मुझे बताया कि लालू जी मेरे बारे में पूछ रहे हैं.

"ऐ रामनाथ, हऊ करिका लईकवा कवन ह हो, बड़ा तेज रहल हा, देखला हा.. सब नंबर मुहें पर याद रखले बा, कने बा, बोलाव$ त ओकरा"

रामनाथ चाचाजी ने मुझे बुलाया तो मेरी धड़कन तेज हो गई, मन में विभिन्न तरह के सवाल कि कहीं कोई गलती तो नहीं हो गया.

कमरे में घुसते ही प्रणाम किया

फिर लालू जी ने पूछा-

"का नाम ह रे तोर? "

'प्रदीप देव"

"बाबूजी का करें लन?"

- "मर गोईल बाड़न"

फिर बगल में बैठे रामनाथ चाचाजी ने बताया कि अति पिछड़ा वर्ग का ही है, कानू जाति से आता है.

फिर लालू जी ने कहा

"ऐ रामकृपाल, एकरा के पिछड़ा कोटा से एमएलसी बनावे के बा..कानू ह..देखला हा...बड़ा तेज बा"

"ई बताव.. काल्ह अपना घरें खाना खियईबे"

-ह खियाईब "

"का खियईबे?"

-मीट भात"

विशाल हृदय के लालूजी डांट कर बोले.. चुप..! 

"काल्ह तोरा घरे हम चूरा दही खाईब"

असल में लालू जी को यह भी ध्यान था कि गरीब का लड़का ज्यादा खर्च में मत पड़ें.

फिर रातों रात यदुवंशी भाईयों के घर पर मैंने सुबह दही इंतजाम करने के लिए कहावा भेजा. सुबह तक 20 दही की हांडी मेरे घर पर इंतिज़ाम हो गया. लालू जी 56 गाड़ियों के काफिले के साथ मेरे गांव, मेरे घर पर पहुँचे. मेरी तैयारी पूरी थी, लेकिन यह क्या लालू जी की तरफ से मात्र दो लोगों को खाने की अनुमति हुई, जिसका एकमात्र कारण कि वो चाहते थे कि गरीब के लड़का के उपर बोझ न आये. मुंशी प्रेमचंद ने सही लिखा है "जिसने पूस की रात नहीं देखा, वो हल्कू का दर्द क्या जानें "

लालू जी गरीबी देखा है, गरीबों का दर्द जानते हैं, ऐसा और कौन है यहाँ.

लालू जी और रामकृपाल जी ने मेरे घर-द्वार पर चूरा दही खाने पहुंचे.

डिनर सेट बर्तन में चूरा दही परोसना आरंभ किया, लालू जी खिसियाने लगे.

"स्टील के थाली ले आओ"

फिर स्टील की थाली में चूरा-दही, गुड़, आलू की भूजिया, मिर्ची का भरूँआ अचार खाये.

आशीर्वाद देने के लिए गरीबों के मसीहा बोले "तोरा दुआरी पर जूठ गिरा देनी, जो ते नेता बन गोईले"

"तोर माई कसार बांधत होईहें त ले के अईहें" 

फिर लालू जी विदा हुए.. दही हांडी साथ आये गाड़ियों में भरवा कर सर्किट हाउस के लिए मैंने भेजवा दिया.. ताकि साथ आये सुरक्षा कर्मी और अन्य लोग भी खा सकें.

मुझे मालूम है कि लालू जी कसार के लिए भूखे नहीं है.. उनका तो यह एक बहाना है कि मैं उनके सानिध्य में आता रहूँ. लालू जी गरीब अति पिछड़ा के लड़के के लिए अपना दरवाजा कसार के बहाने हमेशा के लिए खोल दिया.

लालू जी जब तक पटना में रहते मैं कसार लेकर जरूर जाता था.

ऐसा मसीहा ना कोई हुआ, ना कोई होगा. लालू जी के स्वस्थ जीवन की कामना करता हूँ, लालू जी की उपस्थिति ही हमारे लिए मसीहा की उपस्थिति है.

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