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लोक कलाकार की दर्द भरी दास्तां

संवाद 

भिखारी ठाकुर के नाच मंडली के अग्रणी सदस्य रहे पद्म श्री रामचंद्र मांझी के निधन के बाद भी खामोशी नहीं टूटी है जो लोग भोजपुरी लोक कलाकारों को लेकर लंबे चौड़े वादे करते हैं जन आंदोलनों की बात करते हैं उन लोगों ने पिछले 5 दिनों में तिल तिल कर पटना के आईजीएमएस में मरते रामचंद्र को जाकर देखना तक मुनासिब नहीं समझा रामचंद्र माझी को पद्मश्री शायद ही मिल पाता अगर उन्हीं के पंचायत के जैनेंद्र दोस्त जैसे सजग युवा लगे नहीं होते। जो आया है उसका जाना निश्चित है कुछ लोग इतिहास में नाम दर्ज करा कर जाते हैं और कुछ लोग अनाम गुमनाम ही चले जाते हैं जब 10 साल की बाल्यावस्था में समाज के पिछड़े और दलित जाति से आने वाले रामचंद्र ने लौंडा नाच सीखना शुरू किया उस समय उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि रोजी रोटी के लिए शुरू किया गया यह काम उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाएगी।बिहार के मशहूर लौंडा नाच के प्रसिद्ध कलाकार रामचंद्र मांझी सारण जिले के नगरा, तुजारपुर के रहने वाले थे। रामचंद्र मांझी को संगीत नाटक अकादमी अवार्ड 2017 से भी नवाजा जा चुका है। रामचंद्र मांझी 94 वर्ष के होने के बाद भी मंच पर जमकर थिरकते और अभिनय करते थे। रामचंद्र मांझी ने मृत्यु से काफी पहले एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने 10 साल की उम्र में ही गुरु भिखारी ठाकुर के साथ स्टेज पर पांव रख दिया था। इसके बाद वो 1971 तक भिखारी ठाकुर की छाया तले ही कला का प्रदर्शन करते रहे। भोजपुरी के शेक्सपीयर के निधन के बाद रामचंद्र मांझी ने गौरीशंकर ठाकुर, शत्रुघ्न ठाकुर, दिनकर ठाकुर, रामदास राही और प्रभुनाथ ठाकुर के नेतृत्व में काम किया। कई मौके आए जब आमने-सामने इस लोक कलाकार से बात करने का मौका मिला भूख गरीबी गुमनामी ने इस कलाकार को तो काफी पहले ही मार दिया था बाद के दिनों में जैनेंद्र दोस्त ने एक अभियान चलाया और रामचंद्र माझी को छपरा के उनके झोपड़ी से निकालकर दिल्ली के रंगमंच तक पर ले गए उसके बाद देश दुनिया ने जाना कि लौंडा नाच क्या चीज होती है सिर्फ भिखारी ठाकुर के नाम पर लाखों करोड़ों लूटने वाले लोगों ने कभी भी लौंडा नाच की ब्रांडिंग नहीं कि वह खुद की जेब भरते रहे रामचंद्र माझी जैसे कलाकारों की सुधि नहीं ली। भोजपुरी को अश्लीलता मुक्त करने के लिए अभियान चलाने वाले मुरैठा बांधे लोगों ने भी कभी भोजपुरी के इस कलाकार को उचित मान सम्मान नहीं दिया राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद भी रामचंद्र माझी इस आस में टकटकी लगाए थे कि पोते की शायद सरकारी नौकरी लग जाए पोती की शादी कैसे हो घर कैसे चले यह दर्द सिर्फ उनका नहीं उन तमाम कलाकारों का भी था जो आजीवन तो अपनी कला का जलवा बिखेरते रहे पर वृद्धावस्था में उन्हें कोई पूछने वाला नहीं सिर्फ चांदी का तमगा दे दिए जाने से कलाकार का दर्द कम नहीं होता उसे भी भूख लगती है और बीमारी होती है और जब वह मरणासन्न होता है तो उसके घर में दवा खरीदने तक का पैसा नहीं होता। पद्मश्री मिल जाने के बाद लोगों ने रामचंद्र माझी को गूगल पर सर्च किया और उनकी कहानियों को देखा सुना पर जो ब्रांडिंग होनी चाहिए वह नहीं हो सकी आईजीएमएस में जब 5 दिन पहले रामचंद्र माझी को गंभीर अवस्था में एडमिट करवाया गया तब लगा कि शायद राजधानी पटना के रंगकर्मी और कला जगत से जुड़े लोग उनके लिए मदद के हाथ बढ़ाएंगे पर किसी ने उस कलाकार को जाकर देखने तक की जहमत नहीं उठाई। जिस विधानसभा क्षेत्र के वो रहने वाले थे वहां के स्थानीय विधायक को बिहार में 15 दिन पहले कला संस्कृति मंत्री बनाया गया है उन्होंने जरूर मदद की।पद्म श्री रामचंद्र मांझी के निधन के बाद कई सारे लोग घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं पर यह सोचने का विषय है कि जिंदा रहते हम अपने धरोहरों लोक कलाकारों को क्यों नहीं बचाते समय उनके मदद के लिए हाथ क्यों नहीं बढ़ाते। यह पहला मौका नहीं है कि पद्म श्री से सम्मानित रामचंद्र माझी सिस्टम के भेंट चढ़ गए इससे पहले आइंस्टाइन के सिद्धांत को चुनौती देने वाले पद्मश्री डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह का दर्द भी पूरी दुनिया ने देखा जब उनके निधन के बाद पीएमसीएच में एंबुलेंस तक नसीब नहीं हुआ हालांकि इस बार सिस्टम थोड़ा दुरुस्त था। आज सवाल देश दुनिया में रचे बसे 18 करोड़ भोजपुरी भाषा भाषी लोगों से भी है जो अपनी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाना चाहते हैं अश्लीलता मुक्त करना चाहते हैं पर रामचंद्र मांझी जैसे कलाकारों के लिए मदद का हाथ नहीं बढ़ाते भोजपुरी सिनेमा से जुड़े लोगों से भी सवाल है जो मीडिया के कैमरे के सामने बड़े-बड़े दावे करते हैं पर उस जड़ को कटने से नहीं बचा पाते जो है तो उनका वजूद है। पदम श्री रामचंद्र मांझी के गुरु भिखारी ठाकुर के परिवार की स्थिति भी किसी से छुपी हुई नहीं है वहां भी भूख गरीबी आज भी ज्यों की त्यों है। व्यवस्था बदलने के लिए सभी को एकजुट होना होगा और आगे आना होगा।
(लेखक अनूप नारायण सिंह फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य हैं)

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