अनूप नारायण सिंह
(चर्चित चिकित्सक डॉ राणा एसपी सिंह से वरिष्ठ पत्रकार अनूप नारायण सिंह की खास बातचीत)
अभी के मौसम में बदलाव के साथ ही डेंगू का प्रकोप बढ़ने लगा है. मौसमी बीमारियों और डेंगू के बीच अंतर कर पाना काफी मुश्किल होता है. कई बार ये भूल सेहत के लिए खतरनाक हो जाता है. आजकल बिना लक्षण के भी डेंगू (Dengue) होने का खतरा बढ़ गया है.
कई बार लोग डेंगू को वायरल फीवर समझ लेते हैं और उसी के अनुसार इलाज करने लगते हैं. ऐसी भूल करने से बचना चाहिए. हर किसी की सलाह लेने की बजाय आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए. ताकि सही ट्रीटमेंट हो सके. आइए जानते हैं डेंगू और वायरल फीवर में अंतर. ताकि आप इलाज में लापरवाही बरतने से बच सकें..
👉डेंगू जानलेवा है
बीते कुछ दिनों से देश की अलग-अलग जगहों पर डेंगू के मामले लगातार बढ़ते हुए देखे जा रहे हैं. हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, मौसम बदलने की वजह से वायरल फीवर होने के साथ-साथ डेंगू बुखार के मामले भी लगातार आ रहे हैं. मच्छरों के काटने से होने वाला डेंगू बुखार किसी को भी हो सकता है. डेंगू का मामला गंभीर होने पर जानलेवा भी हो सकता है. इसलिए, सभी लोगों को मच्छरों के काटने से बचने के तरीके जरूर अपनाने चाहिए.
👉बिना लक्षणों के भी हो सकता है डेंगू
आम तौर पर, डेंगू बुखार के मामले में मरीज में लक्षण कुछ दिनों में ही दिखने लगते हैं, लेकिन अक्सर डेंगू का संक्रमण बिना किसी लक्षण के भी शिकार बना सकता है. हमारे पास डेंगू और वायरल फीवर के बीच का अंतर पहचानने की समझ होना बेहद ज़रूरी है. क्योंकि, समय से सही इलाज मिलने पर डेंगू का खतरा कम किया जा सकता है और मरीज की जान बचाई जा सकती है.
🤔डेंगू और वायरल फीवर का कैसे पहचानें
डेंगू और वायरल फीवर के कई लक्षण बिल्कुल एक जैसे ही होते हैं. जैसे- सर्दी होना, खांसी की दिक्कत, सिरदर्द से परेशानी, शरीर में दर्द होना, और बुखार आना. इन लक्षणों की वजह से ही अक्सर लोग डेंगू और वायरल फीवर को पहचान नहीं पाते हैं. हालांकि, डेंगू होने के मामले में, इसके कुछ लक्षण मरीज के शरीर पर बिल्कुल साफ तौर पर दिखते हैं. इन दोनों के बीच कुछ लक्षण शुरुआती हैं, इसलिए समय रहते ही इनका इलाज करा लेना चाहिए..
डेंगू के शिकार हुए मरीजों के शरीर पर खून के थक्के जैसे चकत्ते बन जाते हैं.
वायरल फीवर में शरीर का तापमान 101 डिग्री फारेनहाइट के बीच रहता है, जबकि डेंगू से मरीजों में बुखार 103 से104 डिग्री फारेनहाइट तक रहता है.
डेंगू के हर मरीज तेज बुखार के साथ अन्य लक्षण भी दिखें, ऐसा ज़रूरी नहीं है. कुछ लोगों में वायरल फीवर के लक्षण जैसे बुखार आना, ठंड लगना, सिरदर्द होने पर डेंगू भी हो सकता है.
अगर मरीज को करीब 3-4 दिनों से फीवर बना हुआ है और दवा देने के बाद भी ठीक नहीं हो रहा है, तो ऐसे में डॉक्टर से मिलना चाहिए.
👉जानलेवा हो सकता है डेंगू
अगर डेंगू का सही समय पर इलाज न किया जाए, तो मरीज की हालत गंभीर हो सकती है और उसकी जान को भी खतरा हो सकता है. एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में मरीजों की मौत की एक बड़ी वजह डेंगू ही है. गंभीर मामलों में डेंगू की वजह से मरीज में बहुत ज़्यादा रक्तस्राव, ब्लड प्रेशर में अचानक उतार-चढ़ाव होने जैसी में समस्या भी हो सकती है। अगर सही समय पर डेंगू का इलाज किया जाए तो मरीज को बचाया जा सकता है.
बचाव है जरूरी, सावधानी बरतें
बीते दिनों में डेंगू के मामले लगातार बढ़ने से, लोगों को इससे बचने के तरीके अपनाना बेहद ज़रूरी है. मच्छरों से दूरी बनाकर रखें, लंबी बाह के कपड़े पहनें, अपने घर के अंदर और बाहर दवाइयों का छिड़काव करें और पानी जमा होने से रोकें. छोटे-छोटे तरीके अपनाने से डेंगू से बचा जा सकता है. सबसे खास बात सही पर इलाज कराना बेहद ज़रूरी है. दर्द निवारक दवाएं न लें। अभी के माहौल में बुखार होने पर पारासिटामोल की गोली लें। भरपूर पानी पीना है, अनार चबा कर खाईये एक किलो रोज l एक डाभ पीना है और किसी क्वालिफाईड चिकित्सक से ही दिखाने जाये।
🕵डेंगू की बीमारी वायरस के कारण होती है यह वायरस rna वायरस है जो flavi viridae परिवार का वायरस होता है ,और एडीज ग्रुप के मच्छर के काटने से मनुष्य के अंदर प्रवेश करता है। मच्छर जहाँ पानी का कलेक्शन हो जैसे गमले, टायर ,छोटे बर्तन ,कूलर आदि जगह पनपता है।मच्छर के काटने के बाद जब वायरस शरीर मे प्रवेश करता तब आम तौर पर 5 से 14 दिन के अंदर डेंगू के लच्छन उतपन्न होने लगते हैं। डेंगू वायरस के भी 4 serotype हैं जिन्हें denv1 ,denv 2,denv 3,तथा denv 4 कहा जाता है। जब डेंगू के लक्छण जब मनुष्य में आने लगते हैं तो इलाज और मॉनिटरिंग के सुभिधा की दृष्टि से इसे 4 कैटोगरी में बांटा गया है (1) dengue fever without warning signs (2) dengue fever with warning signs (3)dengue haemorrhagic fever (4)dengue shock syndrome. अब पहली कैटेगरी - जिसमे अधिकतर मरीज होते हैं ,उसके लक्षण हैं अचानक आया हुआ हाई फीवर, आंख के पिछले हिस्से में दर्द, जोड़ो में दर्द,मसल में दर्द ,गिल्टी हो जाना , डायरिया, गले मे दर्द खांसी , macular rash (blanching ) , positive capillary fragility test ये सब होता है । blood test करवाने पर leukopenia , sgpt ,sgot का बढ़ना ,प्लेटलेट काउंट का माइल्ड कम होना देखा जाता। इसका इलाज सरल है , पेरासिटामोल की गोली ,ors के घोल ,बेडरेस्ट , प्रॉपर डाइट और हाइड्रेशन को मेन्टेन करना तथा मच्छर से बचाव करना।। 95 प्रतिशत लोग इस मे ठीक हो जाते हैं। दूसरी कैटेगरी है डेंगू फीवर विथ वार्निंग साइन , इस कैटेगरी में मरीज को भर्ती की जरूरत होती है ,इसमे मरीज को पेट दर्द ,उल्टी , बैचैनी , blood test में हेमाटोक्रिट का वैल्यू बढ़ जाना ,प्लेटलेट का वैल्यू 1 लाख से कम।हो जाना ,छाती में पानी (pleural effusion ) या पेट मे पानी ( ascites )होने लगना , ये सब लक्छण आने लगते हैं, फीवर कभी कभी रहता और कभी कभी नही भी रहता है। इस के इलाज में मरीज को एडमिट करना चाहिए । लगातार मॉनिटरिंग bp ,यूरिन आउटपुट , सांस की गति ,धड़कन की गति आदि की करती रहनी चाहिए । iv fluid के रूप में ns ,या R L का इस्तेमाल करना चाहिए । हाफ ns या स्टेरॉयड , एस्पिरिन , ibuprofen ये सब का प्रयोग वर्जित है। hematocrit value चेक करते रहना चाहिए ,इसका घटना बतलाता है कि bleeding बॉडी में हो रही , इसका बढ़ना बतलाता है कि vascular लीकेज हो रही है।बुखार होने पर पेरासिटामोल सबसे सेफ है। यह स्टेज आमतौर पे 24 से 48 घण्टे तक रहता है। तीसरा कैटेगरी है डेंगू हेमो राजिक फीवर का यह खतरनाक स्टेज होता है ,ये आमतौर पर उन मरीज को होता जिन्हें एक बार डेंगू हुआ किसी serotype के वायरस के इन्फेक्शन से ,और पुनः वो दूसरी बार फिर मच्छर के कांटेक्ट में आये और इन्फेक्ट हुए दूसरे serotype के वायरस से , तो ये ज्यादा खतरनाक होता है इसमे platelet 50 हजार से कम।होते साथ ही ब्लीडिंग के लक्षण दिखने लगते नाक से खून , मसूड़ो से खून ,लिवर और किडनी प्रभावित होने लगते ,पुनः बुखार जो एक बार आकर जा चुका था वो फिर आ जाता , इसके इलाज में whole blood या prbc को ट्रांसफ्यूज़ किया जाता है यदि hematocrit का वैल्यू कम हो रहा हो तब । हेमाटोक्रिट अगर बढ़ रहा हो तब iv fluid ns/rl का जुडिसियस इस्तेमाल किया जाता अन्य supprtive दवाओं के साथ । डेंगू की कोई स्पेसिफिक दवा या कारगर वैक्सीन अभी तक उपलब्ध नही है। चौथी कैटेगरी जो सबसे खतरनाक है जिसे डेंगू शॉक सिंड्रोम कहा जाता इसमे मरीज की bp कम हो जाती सांस की दिक्कत हो जाती इस मे मरीज को icu में एडमिट किया जाता अगर ns/rl ( 3 से 4 बोतल तक) से bp और hemodyamics मेन्टेन नही हो तब iv एल्ब्यूमिन 20ml पर kg एक घण्टे में intra venous चढ़ाया जाता । hematocrit कमहोने पर blood या prbc चढ़ाया जाता है। अगर प्लेटलेट काउंट 10 हजार से कम हो तथा ब्लीडिंग के सबूत मिल रहे हो तब platelet transfuse किया जाता है।इसलिए हमेशा याद रखे इलाज मरीज का करें ना कि प्लेटलेट काउंट का। ये कुछ जरूरी जानकारी डेंगू के संदर्भ में सभी के लिए है
📌अगर डेंगू का समय रहते इलाज और निदान न हो पाए तो इसकी स्थिति गंभीर और जानलेवा भी हो सकती है। गंभीर डेंगू मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। गंभीर मामलों में डेंगू रक्तस्रावी बुखार का भी कारण बन सकता है जिसमें आपको गंभीर रक्तस्राव, रक्तचाप में अचानक गिरावट की समस्या भी हो सकती है। अगर समय रहते डेंगू का पता लगाकर इलाज शुरू कर दिया जाए तो रोग के गंभीर रूप लेने और रोगी की जान बचने की संभावना बढ़ जाती है।
📌डेंगू बुखार के अधिकांश मामले एक सप्ताह के भीतर दूर हो जाते हैं और इससे कोई स्थायी समस्या नहीं होती है। यदि किसी व्यक्ति में रोग के गंभीर लक्षण हैं, या यदि बुखार उतर जाने के बाद पहले या दो दिनों में लक्षण बदतर हो जाते हैं, तो तुरंत चिकित्सा देखभाल प्राप्त करें। यह डीएचएफ का संकेत हो सकता है, जो एक मेडिकल इमरजेंसी है।
📌यह रोग डेंगू वायरस के कारण होता है जिसके चार सीरोटाइप होते हैं: डेंगू 1, डेंगू 2, डेंगू 3 और डेंगू 4 । प्राथमिक संक्रमण आमतौर पर मामूली बीमारी का परिणाम होता है, जबकि अधिक गंभीर बीमारी अलग-अलग सीरोटाइप के साथ बार-बार संक्रमण के मामलों में होती है।
📌मरीजों को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहने और एस्पिरिन (एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड), एस्पिरिन युक्त दवाओं और अन्य नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं (जैसे इबुप्रोफेन) से बचने की सलाह दी जानी चाहिए क्योंकि उनके थक्कारोधी गुण हैं।